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गुरुवार, 19 सितंबर 2019

👉 *आत्म-चिंतन*

*एक मालन को रोज़ राजा की सेज़ को फूलों से सजाने का काम दिया गया था। वो अपने काम में बहुत निपुण थी। एक दिन सेज़ सजाने के बाद उसके मन में आया की वो रोज़ तो फूलों की सेज़ सजाती है, पर उसने कभी खुद फूलों के सेज़ पर सोकर नहीं देखा था।*

कौतुहल-बस वो दो घड़ी फूल सजे उस सेज़ पर सो गयी। उसे दिव्य आनंद मिला। ना जाने कैसे उसे नींद आ गयी।

*कुछ घंटों बाद राजा अपने शयन कक्ष में आये। मालन को अपनी सेज़ पर सोता देखकर राजा बहुत गुस्सा हुआ। उसने मालन को पकड़कर सौ कोड़े लगाने की सज़ा दी।*

मालन बहुत रोई, विनती की, पर राजा ने एक ना सुनी। *जब कोड़े लगाने लगे तो शुरू में मालन खूब चीखी चिल्लाई, पर बाद में जोर-जोर से हंसने लगी।*

राजा ने कोड़े रोकने का हुक्म दिया और पूछा - *"अरे तू पागल हो गयी है क्या? हंस किस बात पर रही है तू?"*

मालन बोली - "राजन! मैं इस आश्चर्य में हंस रही हूँ कि *जब दो घड़ी फूलों की सेज़ पर सोने की सज़ा सौ कोड़े हैं, तो पूरी ज़िन्दगी हर रात ऐसे बिस्तर पर सोने की सज़ा क्या होगी?"*

राजा को मालन की बात समझ में आ गयी, वो अपने कृत्य पर बेहद शर्मिंदा हुआ और जन कल्याण में अपने जीवन को लगा दिया।

*सीख - हमें ये याद रखना चाहिये कि जो कर्म हम इस लोक में करते हैं, उससे परलोक में हमारी सज़ा या पुरस्कार तय होते हैं...*

सोमवार, 16 सितंबर 2019

👉 *इष्ट की उपासना का मर्म*

*दिन ढल रहा था। रात तथा दिन फिर से बिछुड़ जाने को कुछ क्षणों के लिये एक दूसरे में विलीन हो गये थे। रम्य वनस्थली में एक पर्णकुटी में से कुछ धुआँ सा उठ रहा था।
कुटीर में निवास करने वाले दो ऋषि- शनक तथा अभिप्रतारी अपना भोजन तैयार कर रहे थे। वनवासियों का भोजन ही क्या? कुछ फल तोड़ लाये-कुछ दूध से काम चल गया-हाँ, कन्द-मूलों को अवश्य आँच में पकाना होता था। भोजन लगभग तैयार हो चुका था और उसे कदलीपत्रों पर परोसा जा रहा था।*

तभी बाहर किसी आगन्तुक के आने का शब्द हुआ। दोनों ने जानने का प्रयत्न किया। बाहर एक युवा ब्रह्मचारी खड़ा था। 

*ऋषि ने प्रश्न किया- 'कहो वत्स! क्या चाहिए?' युवक विनम्र वाणी में बोला- 'आज प्रातः से अभी तक मुझे कुछ भी प्राप्त नहीं हो सका है। मैं क्षुधा से व्याकुल हो रहा हूँ। यदि कुछ भोजन मिल जाता, तो बड़ी दया होती।'*

कुटीर निवासी कहने को वनवासी थे, हृदय उनका सामान्य गृहस्थों से भी कहीं अधिक संकीर्ण था। मात्र सिद्धान्तवादी थे वे- व्यावहारिक वेदाँती नहीं थे। सो रूखे स्वर में कहा- 'भाई तुम किसी गृहस्थ का घर देखो। हम तो वनवासी हैं। अपने उपयोग भर का ही भोजन जुटाते हैं नित्य।'

*ब्रह्मचारी को बड़ी ही निराशा हुई। यद्यपि वह अभी ज्ञानार्जन कर ही रहा था-तथापि कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य का व्यावहारिक बोध था उसे। निराश इस बात से नहीं था वह कि उसे भोजन प्राप्त नहीं हो सका था। उसकी मानसिक पीड़ा का कारण यह था कि यदि कोई साँसारिक मनुष्य इस प्रकार का उत्तर देता तो फिर भी उचित था। वह उसके भौतिकतावादी-मोह से भरे दृष्टिकोण का परिचायक होता। किन्तु ये वनवासी जो अपने आपको ब्रह्मज्ञान का अधिकारी अनुभव करते हैं- उनके द्वारा इस प्रकार का उत्तर पाकर यह क्षुब्ध हो उठा।*

तब चुपचाप चले जाने की अपेक्षा उस युवक ने यही उचित समझा कि इन अज्ञान में डूबे ज्ञानियों को इनकी भूल का बोध करा ही देना चाहिए।

*उसने पुनः उनको पुकारा। बाहर से भीतर का सब कुछ स्पष्ट दीख रहा था। झुँझलाते हुए शनक तथा अभिप्रतारी दोनों बाहर आये। तब युवक बोला- 'क्या मैं यह जान सकता हूँ कि आप किस देवता की उपासना करते हैं?'*

उपनिषद् काल में-जिस समय की यह घटना है-विभिन्न ऋषि-मुनि विभिन्न देवता विशेष की साधना करते थे।

*उन ऋषियों को तनिक क्रोध आ गया। व्यर्थ ही भोजन को विलम्ब हो रहा था। पेट की जठराग्नि भी उधर को ही मन की रास मोड़ रही थी।*

झुँझलाहट में कहा- 'तुम बड़े असभ्य मालूम होते हो। समय-कुसमय कुछ नहीं देखते। अस्तु! हमारा इष्टदेव वायु है, जिसे प्राण भी कहते हैं।'

*अब वह ब्रह्मचारी बोला- 'तब तो आप अवश्य ही यह जानते होंगे कि यह प्राण समस्त सृष्टि में व्यापक है। जड़-चेतन सभी में।'*

ऋषि बोले- 'क्यों नहीं! यह तो हम भली-भाँति जानते हैं।'

*अब युवक ने प्रश्न किया- 'क्या मैं यह जान सकता हूँ कि यह भोजन आपने किसके निमित्त तैयार किया है?'*

ऋषि अब बड़े गर्व से बोले- 'हमारा प्रत्येक कार्य अपने उपास्य को समर्पित होता है।'

*ब्रह्मचारी ने मन्द स्मिति के साथ पुनः कहा- 'यदि प्राण तत्व इस समस्त संसार में व्याप्त है, तो वह मुझमें भी है। आप यह मानते हैं?'*

ऋषि को अब ऐसा बोध हो रहा था कि अनजाने ही वे इस युवा के समक्ष हारते चले जा रहे हैं। तली में जैसे छेद हो जाने पर नाव पल-पल अतल गहराई में डूबती ही जाती है युवक की सारगर्भित वाणी में उनका अहं तथा अज्ञान वैसे ही धंसता चला जा रहा था। आवेश का स्थान अब विनम्रता लेती जा रही थी।

*शनक धीमे स्वर में बोले- 'तुम सत्य कहते हो ब्रह्मचारी! निश्चय ही तुम्हारे अन्दर वही प्राण, वही वायु संव्याप्त है, जो इस संसार का आधार है।'*

ब्रह्मचारी संयत स्वर में अब भी कह रहा था-'तो हे महामुनि ज्ञानियों! आपने मुझे भोजन देने से मना करके अपने उस इष्टदेव का ही अपमान किया है जो कण-कण में परिव्याप्त है। चाहे विशाल पुँज लगा हो, चाहे एक दाना हो- परिणाम में अन्तर हो सकता है- किन्तु उससे तत्व की एकता में कोई अन्तर नहीं आता। आशा है मेरी बात का आप कुछ अन्यथा अर्थ न लगायेंगे।' ब्रह्मचारी का उत्तर हृदय में चला गया था। सत्य में यही शक्ति होती है। दोनों ऋषि अत्यन्त ही लज्जित हुए खड़े थे। किन्तु साधारण मनोभूमि के व्यक्तियों में तथा ज्ञानियों में यही तो अन्तर होता है। ये अपनी त्रुटियों को भी अपनी हठधर्मी के समक्ष स्वीकार नहीं करते और ये अपनी भूल का बोध होते ही, उसे सच्चे हृदय से स्वीकार कर लेते हैं तथा तत्क्षण उसके सुधार में संलग्न हो जाते हैं।

*अभिप्रतारी ने अत्यन्त ही विनम्र वाणी में कहा- 'हम से बड़ी भूल हो गई ब्रह्मचारी! लगता है तुम किसी बहुत ही योग्य गुरु के पास शिक्षा ग्रहण कर रहे हो। धन्य हैं वे। तुम उम्र में हमसे कहीं छोटे होते हुए भी तत्वज्ञानी हो। अब कृपा करके हमारी कुटी में आओ और भोजन ग्रहण करके हमें हमारी भूल का प्रायश्चित्त करने का अवसर दो।'*

और दोनों सादर उस ब्रह्मचारी युवक को ले गये। उसे पग पाद प्रक्षालन हेतु शीतल जल दिया तथा अपने साथ बैठकर सम्मानपूर्वक भोजन कराया।
उस दिन से वे अपनी कुटी में ऐसी व्यवस्था रखते कि कोई भी अतिथि अथवा राहगीर कभी भी आये, वे उसे बिना भोजन किये न जाने देते। इष्ट की उपासना का मर्म-सच्चा स्वरूप अब उनकी समझ में आ गया था।

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Story....

👉 *शर्मिंदा*

*फ़ोन की घंटी तो सुनी मगर आलस की वजह से रजाई में ही लेटी रही। उसके पति राहुल को आखिर उठना ही पड़ा।* दूसरे कमरे में पड़े फ़ोन की घंटी बजती ही जा रही थी।इतनी सुबह कौन हो सकता है जो सोने भी नहीं देता, इसी चिड़चिड़ाहट में उसने फ़ोन उठाया। "हेल्लो, कौन" तभी दूसरी तरफ से आवाज सुन सारी नींद खुल गयी।
"नमस्ते पापा।" "बेटा, बहुत दिनों से तुम्हे मिले नहीं सो हम दोनों ११ बजे की गाड़ी से आ रहे है। *दोपहर का खाना साथ में खा कर हम ४ बजे की गाड़ी वापिस लौट जायेंगे। ठीक है।" "हाँ पापा, मैं स्टेशन पर आपको लेने आ जाऊंगा।"*

फ़ोन रख कर वापिस कमरे में आ कर उसने रचना को बताया कि मम्मी पापा ११ बजे की गाड़ी से आरहे है और दोपहर का खाना हमारे साथ ही खायेंगे।

*रजाई में घुसी रचना का पारा एक दम सातवें आसमान पर चढ़ गया। "कोई इतवार को भी सोने नहीं देता, अब सबके के लिए खाना बनाओ। पूरी नौकरानी बना दिया है।" *गुस्से से उठी और बाथरूम में घुस गयी। राहुल हक्का बक्का हो उसे देखता ही रह गया। जब वो बाहर आयी तो राहुल ने पूछा "क्या बनाओगी।" गुस्से से भरी रचना ने तुनक के जवाब दिया "अपने को तल के खिला दूँगी।" राहुल चुप रहा और मुस्कराता हुआ तैयार होने में लग गया, स्टेशन जो जाना था। *थोड़ी देर बाद ग़ुस्सैल रचना को बोल कर वो मम्मी पापा को लेने स्टेशन जा रहा है वो घर से निकल गया।* 

रचना गुस्से में बड़बड़ाते हुए खाना बना रही थी।
*दाल सब्जी में नमक, मसाले ठीक है या नहीं की परवाह किए बिना बस करछी चलाये जा रही थी। कच्चा पक्का खाना बना बेमन से परांठे तलने लगी तो कोई कच्चा तो कोई जला हुआ। आखिर उसने सब कुछ ख़तम किया, नहाने चली गयी।*

नहा के निकली और तैयार हो सोफे पर बैठ मैगज़ीन के पन्ने पलटने लगी।उसके मन में तो बस यह चल रहा था कि सारा संडे खराब कर दिया। बस अब तो आएँ , खाएँ और वापिस जाएँ। थोड़ी देर में घर की घंटी बजी तो बड़े बेमन से उठी और दरवाजा खोला। दरवाजा खुलते ही उसकी आँखें हैरानी से फटी की फटी रह गयी और मुँह से एक शब्द भी नहीं निकल सका। सामने राहुल के नहीं उसके अपने मम्मी पापा खड़े थे जिन्हें राहुल स्टेशन से लाया था। 

*मम्मी ने आगे बढ़ कर उसे झिंझोड़ा "अरे, क्या हुआ। इतनी हैरान परेशान क्यों लग रही है। क्या राहुल ने बताया नहीं कि हम आ रहे हैं।" जैसे मानो रचना के नींद टूटी हो "नहीं, मम्मी इन्होंने तो बताया था पर…. रर… रर। चलो आप अंदर तो आओ।" राहुल तो अपनी मुसकराहट रोक नहीं पा रहा था।* 

कुछ देर इधर उधर की बातें करने में बीत गया। थोड़ी देर बाद पापा ने कहाँ "रचना, गप्पे ही मारती रहोगी या कुछ खिलाओगी भी।" यह सुन रचना को मानो साँप सूँघ गया हो। क्या करती, *बेचारी को अपने हाथों ही से बनाए अध पक्के और जले हुए खाने को परोसना पड़ा।* मम्मी पापा खाना तो खा रहे थे मगर उनकी आँखों में एक प्रश्न था जिसका वो जवाब ढूँढ रहे थे। *आखिर इतना स्वादिष्ट खाना बनाने वाली उनकी बेटी आज उन्हें कैसा खाना खिला रही है।* 

रचना बस मुँह नीचे किए बैठी खाना खा रही थी। मम्मी पापा से आँख मिलाने की उसकी हिम्मत नहीं हो पा रही थी। खाना ख़तम कर सब ड्राइंग रूम में आ बैठे। राहुल कुछ काम है अभी आता हुँ कह कर थोड़ी देर के लिए बाहर निकल गया। *राहुल के जाते ही मम्मी, जो बहुत देर से चुप बैठी थी बोल पड़ी "क्या राहुल ने बताया नहीं था की हम आ रहे हैं।"*

*तो अचानक रचना के मुँह से निकल गया "उसने सिर्फ यह कहाँ था कि मम्मी पापा लंच पर आ रहे हैं, मैं समझी उसके मम्मी पापा आ रहे हैं।"* 

फिर क्या था रचना की मम्मी को समझते देर नहीं लगी कि ये मामला है। बहुत दुखी मन से उन्होंने रचना को समझाया *"बेटी, हम हों या उसके मम्मी पापा तुम्हे तो बराबर का सम्मान करना चाहिए। मम्मी पापा क्या, कोई भी घर आए तो खुशी खुशी अपनी हैसियत के मुताबिक उसकी सेवा करो। बेटी, जितना किसी को सम्मान दोगी उतना तुम्हे ही प्यार और इज़्ज़त मिलेगी। जैसे राहुल हमारी इज़्ज़त करता है उसी तरह तुम्हे भी उसके माता पिता और सम्बन्धियों की इज़्ज़त करनी चाहिए। रिश्ता कोई भी हो, हमारा या उसका, कभी फर्क नहीं करना।"* 

*रचना की आँखों में ऑंसू आ गए और अपने को शर्मिंदा महसूस कर उसने मम्मी को वचन दिया कि आज के बाद फिर ऐसा कभी नहीं होगा..!*


*डीएल-आरसी नहीं दिखाने पर तत्काल चालान नहीं काट सकती ट्रैफिक पुलिस सुप्रीम कोर्ट*



सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट विनय कुमार गर्ग और एडवोकेट रोहित श्रीवास्तव के अनुसार सेंट्रल मोटर व्हीकल रूल्स के नियम 139 में प्रावधान किया गया है कि वाहन चालक को दस्तावेजों को पेश करने के लिए 15 दिन का समय दिया जाएगा. ट्रैफिक पुलिस तत्काल उसका चालान नहीं काट सकती है.

नया मोटर व्हीकल एक्ट लागू होने के बाद से वाहन का रजिस्ट्रेशन सर्टीफिकेट (आरसी), इंश्योरेंस सर्टीफिकेट, पॉल्यूशन अंडर कंट्रोल सर्टिफिकेट, ड्राइविंग लाइसेंस और परमिट सर्टिफिकेट तत्काल नहीं दिखाने पर ताबड़तोड़ चालान करने की खबरें आ रही हैं. 

हालांकि सेंट्रल मोटर व्हीकल रूल्स के मुताबिक अगर आप ट्रैफिक पुलिस को मांगने पर फौरन रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (आरसी), इंश्योरेंस सर्टिफिकेट, पॉल्यूशन अंडर कंट्रोल सर्टिफिकेट, ड्राइविंग लाइसेंस (डीएल) और परमिट सर्टिफिकेट नहीं दिखाते हैं, तो यह जुर्म नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट विनय कुमार गर्ग और एडवोकेट रोहित श्रीवास्तव ने बताया कि सेंट्रल मोटर व्हीकल रूल्स के नियम 139 में प्रावधान किया गया है कि वाहन चालक को दस्तावेजों को पेश करने के लिए 15 दिन का समय दिया जाएगा. ट्रैफिक पुलिस तत्काल उसका चालान नहीं काट सकती है. इसका मतलब यह हुआ कि अगर चालक 15 दिन के अंदर इन दस्तावेजों को दिखाने का दावा करता है, तो ट्रैफिक पुलिस या आरटीओ अधिकारी वाहन का चालान नहीं काटेंगे. इसके बाद चालक को 15 दिन के अंदर इन दस्तावेजों को संबंधित ट्रैफिक पुलिस या अधिकारी को दिखाना होगा.

रविवार, 15 सितंबर 2019

Good information

एक तनख्वाह से कितनी बार टेक्स दूं और क्यों...जबाब है???
मैनें तीस दिन काम किया, 
तनख्वाह ली - टैक्स दिया
मोबाइल खरीदा - टैक्स दिया--'
रिचार्ज किया - टैक्स दिया
डेटा लिया - टैक्स दिया
बिजली ली - टैक्स दिया
घर लिया - टैक्स दिया
TV फ्रीज़ आदि लिये - टैक्स दिया
कार ली - टैक्स दिया
पेट्रोल लिया - टैक्स दिया
सर्विस करवाई - टैक्स दिया
रोड पर चला - टैक्स दिया
टोल पर फिर - टैक्स दिया
लाइसेंस बनाया - टैक्स दिया
गलती की तो - टैक्स दिया
रेस्तरां मे खाया - टैक्स दिया
पार्किंग का - टैक्स दिया
पानी लिया - टैक्स दिया
राशन खरीदा - टैक्स दिया
कपड़े खरीदे - टैक्स दिया
जूते खरीदे - टैक्स दिया
कितबें ली - टैक्स दिया
टॉयलेट गया - टैक्स दिया
दवाई ली तो - टैक्स दिया
गैस ली - टैक्स दिया
सैकड़ों और चीजें ली ओर - टैक्स दिया, कहीं फ़ीस दी, कहीं बिल, कहीं ब्याज दिया, कहीं जुर्माने के नाम पर तो कहीं रिश्वत के नाम पर पैसा देने पड़े, ये सब ड्रामे के बाद गलती से सेविंग मे बचा तो फिर टैक्स दिया----
सारी उम्र काम करने के बाद कोई सोशल सेक्युरिटी नहीं, कोई पेंशन नही, कोई मेडिकल सुविधा नहीं, बच्चों के लिये अच्छे स्कूल नहीं, पब्लिक ट्रांस्पोर्ट नहीं, सड़कें खराब, स्ट्रीट लाईट खराब, हवा खराब, पानी खराब, फल सब्जी जहरीली, हॉस्पिटल महंगे, हर साल महंगाई की मार, आकस्मिक खर्चे व् आपदाएं , उसके बाद हर जगह लाइनें।।।।
सारा पैसा गया कहाँ????
करप्शन में , 
इलेक्शन में ,
अमीरों की सब्सिड़ी में ,
माल्या जैसो के भागने में
अमीरों के फर्जी दिवालिया होने में ,
स्विस बैंकों में ,
नेताओं के बंगले और कारों मे,    
और हमें झण्डू बाम बनाने मे।
अब किस को बोलूं कौन चोर है???
आखिर कब तक हमारे देशवासी यूंही घिसटती जिन्दगी जीते रहेंगे?????
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कृपया इसे हरेक नागरिक को भेजें.
साला इतना लगान तो अंग्रेज भी नहीं लेते थे

🌹🌹🙏🏻🌹🌹

शुक्रवार, 13 सितंबर 2019

*वायरल फीवर*

*वायरल फीवर* 
*स्वस्थ भारत की और छोटा सा कदम.......*की और छोटी सी पेशकश आज कल या जब भी मौसम परिवर्तन होता है तो परिवार में  यह नाम सुनाई देता है कि वायरल फीवर हो गया है और डॉक्टर्स और हॉस्पिटल मैं एक लंबी कतार होती है इस बीमारी को ठीक करने के लिये और डॉ जांच और कुछ एंटीबायोटिक और साल्ट लेकर हम ठीक होते हो जाते है और जब तक  जेब से करीब 500 ₹ तक खर्च हो जाते है । 
और आपकी रसोई घर की ताकत का एक छोटा सा उधारहण नीचे पढ़े।
आज कल *वाइरल fever*  बहुत फैला हुआ है और उसका कोई इलाज भी नहीं है। वाइरस अपना चक्र पूरा करता ही करता है।
इसके लिये आप 
*१ छोटा चम्मच सादा सफ़ेद नमक*को तवे पर तब तक भूनें जब तक ये अपना रंग न बदलने लगे, रंग बदलते(हल्का भूरा या हल्का सा कालिमा लिए हुए) ही इसे तवे से उतार लें और इसमें तुरंत १ चम्मच *अजवाइन* भून लें (ध्यान रखें भूनें पर जले न)।
इस मिश्रण को इक ग्लास पानी में घोल कर उसमें इक पूरा नींबू निचोड़ कर पी लें !
एक दिन में ही बुखार छू मंतर होते देखा है !
ये नुस्ख़ा *टाइफ़ॉड और malaria*में भी उतना ही कारगर है !

यह मैसेज अगर आपको अच्छा लगे या समझ में आये की यह किसी के लिया रामबाण की तरह काम आएगा ✍

*सुबह-सुबह टहलने से होने वाले फायदे*



सुबह-सुबह ताजी ठंडी हवा में टहलने से आपकी फिटनेस तो बरकरार रहती ही है साथ ही आप कई गंभीर बीमारियों से भी दूर रहते हैं।नियमित रुप से की जाने वाली मार्निंग वॉक से आप हृदय रोग और गैस की समस्या के अलावा ऐसी ही कई बीमारियों से भी दूर रह सकते हैं।

1. टहलने से बेहतर कुछ नहीं:- लोग स्वस्थ व फिट रहने के लिए कई चीजें करते हैं। जैसे एक्सरसाइज करते हैं, जिम जाते हैं और योगा भी करते हैं। लेकिन मेडिकल साइंस और बुजुर्गों के अपने अनुभव बताते हैं कि शरीर को स्वस्थ व फिट रखने के लिए सुबह या शाम टहलने का और कोई बेहतर विकल्प नहीं।

2. मधुमेह से बचाए:- नियमित रुप से टहलना मदुमेह रोगियों के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है। मधुमेह के कई मरीज सुबह की सैर के बाद अपने ब्लड सुगर के स्तर में कमी पाते हैं। इन मरीजों के लिए इन्सुलिन के बजाय सुबह की सैर अच्छा विकल्प होता है। इससे आप मधुमेह के खतरे सेभी बच सकते हैं।

3. स्वस्थ हृदय:- बढ़ती उम्र में अगर हर रोज कम से कम दो मील पैदल चला जाए तो मांसपेशियों का अच्छा व्यायाम हो जाता है। ऐसे लोगों को हृदयाघात होने का खतरा भी कम हो जाता है। तेज गति से टहलने से हृदय की धड़कनें तेज होती हैं जिससे शरीर में गर्मी पैदा होती है। इस दौरान शरीर में ऑक्सीजन का बेहतर असर होता है जो बिना थके आपको हमेशा फिट रखता है।

4. वजन कम करें:- वजन घटाने के लिए हर रोज तेज रफ्तार से आधा घंटा टहलना काफी फायदेमंद होता है। आधे घंटे में तय की गई दूरी में 150 कैलोरी ऊर्जा खर्च होती है। इस तरह से शरीर के वजन को नियंत्रित किया जा सकता है।

5. तनाव कम करे:- टहलना न सिर्फ एक्सरसाइज है बल्कि यह आपके मूड को भी अच्छा कर देता है, क्योंकि इस दौरान स्ट्रेस कम हो जाता है और आंतरिक शक्ति में इजाफा होता है। शुरुआत के कुछ दिनों में यह आपको थकान भरा लग सकता है लेकिन धीरे-धीरे आपको इसकी आदत हो जाएगी।

6. अर्थराइटिस से बचाए:- शरीर के जोड़ों को मजबूत और फिट रखने में नियमित रूप से टहलना एक अचूक उपाय है। ऑर्थराइटिस और हड्डियों के फ्रैक्चर होने की समस्या में यह काफी राहत पहुंचाता है। जो महिलाएं रजोनिवृत्ति के दौर में पहुंच चुकी होती हैं, वह अगर हर दिन लगभग एक मील चलने की आदी हैं तो उनके शरीर की हडि्डयों का घनत्व अधिक होता है।

7. लंबी उम्र का राज:- हर रोज तेज गति से टहलने पर आपकी उम्र बढ़ती है। एक नए शोध के मुताबिक सिर्फ 75 मिनट तेज स्पीड से टहलने से ही आपकी उम्र 1.8 साल बढ़ सकती है। यदि कोई अपनी दिनचर्या में शारीरिक गतिविधियों को थोड़ी मात्रा में भी शामिल करता है जैसे यदि वह हर सप्ताह केवल 75 मिनट तेज गति टहले तो ऐसा न करने वालों की तुलना में वे दीर्घायु हो सकते हैं।

8. स्तन कैंसर से बचाए:- एक नए अध्ययन के अनुसार रजोनिवृत्ति के पश्चात प्रतिदिन एक घंटा टहलने से महिलाओं में स्तन कैंसर की आशंका में काफी कमी आती है। 'दि अमेरिकन कैंसर सोसाइटी' की टीम का कहना है कि अगर महिलाएं टहलने को हर रोज अपनी दिनचर्या में शामिल करें तो वे स्तन कैंसर के खतरे से काफी हद तक बच सकती हैं।

9. मानसिक स्वास्थ्य:- जो लोग हर रोज टहलते उनकी याददाश्त अन्य लोगों के मुकाबले अच्छी होती है। टहलने से याददाश्त के साथ ध्यान केंद्रित करने की क्षमता में भी बढ़ोतरी होती है। टहलते समय प्रकृति के करीब होने से तन-मन रिलैक्स हो जाता है और चिंतन करने की क्षमता सहज ही बढ़ जाती है। अवसादग्रस्त और नकारात्मक सोच वाले लोगों के लिए टहलना काफी फायदेमंद है।

10. कोलेस्ट्रोल कम करें:- शरीर में कोलेस्ट्रोल का स्तर बढ़ने से हृदय रोग, रक्तचाप का खतरा बढ़ जाता है लेकिन यदि आप हर रोज तीस मिनट की वॉक करते हैं तो शरीर में गुड कोलेस्ट्रोल का स्तर बढ़ता है जो शरीर के जरूरी और फायदेमंद भी होता

*Diebetes / शुगर* *एक नंगा सच.. जानिये.!* 👌👌👌👌

*Diebetes /  शुगर*
*एक नंगा सच.. जानिये.!*
👌👌👌👌

*लूट मचाने के लिए दवा कंपनियाँ किस हद तक गिर सकती आप अनुमान भी नहीं लगा सकते..*

*अभी कुछ समय पूर्व स्पेन मे शुगर की दवा बेचने वाली बड़ी-बड़ी कंपनियो की एक बैठक हुई है ,दवाओ की बिक्री बढ़ाने के लिए एक सुझाव दिया गया है कि अगर शरीर मे सामान्य शुगर का मानक 120 से कम कर 100 कर दिया जाये तो शुगर की दवाओं की बिक्री 40 % तक बढ़ जाएगी*

आपकी जानकारी के लिए बता दूँ *बहुत समय पूर्व शरीर मे सामान्य शुगर का मानक 160 था दवाओ की बिक्री बढ़ाने के लिए ही इसे कम करते-करते 120 तक लाया गया है जिसे भविष्य मे 100 तक करने की संभावना है!*

ये *एलोपेथी दवा कंपनियाँ लूटने के लिए किस स्तर तक गिर सकती है ये इसका जीता जागता उदाहरण है आज मैडीकल साईंस के अनुसार शरीर मे सामान्य शुगर का मानक 80 से 120 है*

अब मान लो दवा कंपनियो के साथ मिलीभगत कर इन्होने कुछ फर्जी शोध की आड़ मे नया मानक 70 से 100 तय कर दिया, अब अच्छा भला व्यक्ति शुगर टेस्ट करवाये और शुगर का सतर 100 से 110 के बीच आए ,तो डाक्टर आपको शुगर का रोगी घोषित कर देगा,

*भय के कारण आप शुगर की एलोपेथी दवाएं लेना शुरू कर देंगे, अब शुगर तो पहले से सामान्य थी आपने जो भय के कारण शुगर कम करने की दवा ली तो उल्टा शरीर मे और कमजोरी महसूस होने लगेगी*
और 
*आप फिर इस अंधी खाई मे गिरते चले जाएंगे*

और मान लो आप जैसे 2 -3 करोड़ लोग भी इस साजिश का शिकार हुए तो ये एलोपेथी दवा कंपनियाँ लाखो करोड़ का व्यापार कर डालेंगी
*एक नंगा सच.. जानिये.! क्या आप जानते हैं.....* 

*1997 से पहले fasting diebetes की limit 140 थी।*
*फिर fasting sugar की limit 126 कर दी गयी।*
इससे *World Population में 14% diebetec लोग अचानक बढ़ गए।*
उसके बाद *2003 में WHO ने फिर से fasting sugar की limit कम करके 100 कर दी।*
याने *फिर से total Population के करीबन 70% लोग Diebetec माने जाने लगे।*

दरअसल diebetes ratio या limit तय करने वाली कुछ pharmaceutical कंपनियां थीं जो WHO को घूस खिलाकर अपने व्यापार को बढ़ाने के लिये ये सब करवा रही थीं।

और अपना बिज़नेस बढ़ाने के लिए ये किया जाता रहा।

लेकिन क्या *आपको पता है कि
हकीकत में डायबिटीज को कैसे जांचना चाहिए ?*

कैसे पता चलेगा कि आप डायबिटीज के शिकार हैं भी या नहीं ?

पुराने जमाने के इलाज़ के हिसाब से
*डायबिटीज चेक करने का एक सरल उपाय है :-*
*आप की उम्र और + 100*
*जी हाँ यही एक सचाई है*

अगर आपकी उम्र 65 है तो आपका सुगर लेवल खाने के बाद 165 होना चाहिये।
*अगर आपकी age 75 है तो आपका नॉर्मल सुगर लेवेल खाने के बाद 175 होना चाहिए।*
अगर ऐसा है तो इसका मतलब आपको डायबिटीज नहीं है।

ये होता है age के हिसाब से यानी.. 
So now you can count your diebetec limit as 100 + your age.

*अगर आपकी उम्र 80 है तो फिर आपकी डायबिटिक लिमिट खाने के बाद 180 काउंट की जानी चाहिये।*
मतलब अगर आपका सुगर लेवल इस उम्र में भी 180 है तो आप डायबिटिक नहीं हैं।
आपकी गिनती नॉर्मल इंसान जैसी होनी चाहिये।

लेकिन W.H.O. को अपने कॉन्फिडेंस में लेकर बहुत सारी फार्मा कम्पनियों ने अपने व्यापार के लिये सुगर लेवेल में उथल पुथल कर दी और आम जनता उस चक्रव्यूह में फंस गई।

No Doctor can guide u.
No one will advice u.
But its a bitter truth.!

उसके साथ साथ एक सच ये भी है कि--

अगर आपकी पाचन शक्ति उत्तम है तो आपको कोई टेंशन लेने की कोई जरूरत नहीं है
या फिर आप अपने जीवन में कोई टेंशन नहीं लेते।
आप अच्छा खाना खाते हो
आप जंक फूड, ज्यादा मसालेदार या तैलीय भोजन या फ़्राईड फूड नहीं खाते
आप रेगुलर योगा या कसरत करते हैं
और आपका वजन आपकी हाइट के हिसाब के बराबर है
तो आपको डायबिटीज हो ही नहीं सकती।
यही सत्य है, बस टेंशन न लें अच्छा खाना खाएं, एक्सरसाइज करते रहें।

*पोस्ट को शेयर करना मत भूलिए ...* 

*जागो और दूसरों को जगाओ !*
🎯🎯🎯

🌷🌷संशोधित
वराछा , सूरत के एक ही घर के पॉच सदस्यो को एक साथ केंसर हो गया  सभी परेशान की ये कैसे हुआ?   
खाने की कई चीजो को लेबोटरी मै जॉच के लिए भेजा गया , रिपोर्ट मै पाया की मटर (वटाणा) जो डीप फ्रीज मै रखा हुआ था, उसमे जो जींव पैदा हुए हैं उन जींवो के कारण केंसर हुआ है । 
बात करने से पत्ता चला की सीजन मै डीप फ्रिज मै मटर के दाने निकाल कर रख देते हैं और पुरे साल चलाते हैं। सभी महिलाऔ से अनुरोध है कि सब्जी व फल ताजा लाये व रासायन व किट नाशक दवाऔ से बचने के लिए पानी में एक चम्मच खाने का सोडा डालकर 20-30 मिनट भिगोकर रखे बाद मै साफ पानी से धोकर साफ कपड़े से पोंछ कर काम में लें।
संशोधित🌷🌷

👉 *आध्यात्मिक तेज का प्रज्वलित पुंज होता है चिकित्सक

👉 *आध्यात्मिक तेज का प्रज्वलित पुंज होता है चिकित्सक (भाग ६६)*
👉 *आध्यात्मिक चिकित्सा की प्रथम कक्षा- रेकी*

*प्राण चिकित्सा ऋषि भूमि भारत की प्राचीन परम्परा है। वेदों, उपनिषदों एवं पुराण कथाओं में इससे सम्बन्धित कई कथानक पढ़ने को मिलते हैं।* तप व योग की अनेकों ऐसी रहस्यमय प्रक्रियाएँ हैं, जिनके द्वारा विश्वव्यापी प्राण ऊर्जा से अपना सम्पर्क बनाया जा सकता है। इन प्रक्रियाओं द्वारा इस प्राण ऊर्जा को पहले स्वयं ग्रहण करके फिर इच्छित व्यक्ति में इसे सम्प्रेषित किया जाता है। फिर यह व्यक्ति दूर हो अथवा पास इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। *प्राण विद्या का यही रूप इन दिनों 'रेकी' नाम से प्रचलन में है। रेकी जापानी भाषा का शब्द है। इसका मतलब है- विश्वव्यापी जीवनीशक्ति।* रेकी शब्द में 'रे' अक्षर का अर्थ है विश्वव्यापी तथा 'की' का मतलब है जीवनीशक्ति। यह विश्वव्यापी जीवनीशक्ति समस्त सृष्टि में समायी है। *सही रीति से इसके नियोजन एवं सम्प्रेषण के द्वारा विभिन्न रोगों का उपचार किया जा सकता है।* 

प्राण चिकित्सा की प्राचीन विधि को नवजीवित करने का श्रेय जापान के डॉ. मेकाओ उशी को है। *डॉ. मेकाओ उशी जापान के क्योटो शहर में ईसाई विद्यालय के प्रधान थे। एक बार उनके एक विद्यार्थी ने उनसे सवाल किया कि ईसामसीह जिस प्रकार किसी को छूकर किसी रोगी को रोगमुक्त कर देते थे वैसा आजकल क्यों नहीं होता है?* क्या आप वैसा कर सकते हैं? डॉ. उशी इस सवाल का उस समय कोई जवाब नहीं दे सके, लेकिन उन्हें यह बात लग गई। *वे इस विधि की खोज में अमेरिका के शहर शिकागो पहुँचे, वहाँ उन्होंने अध्यात्म विद्या में डॉक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त की। किन्तु अनेकों ईसाई एवं चीनी ग्रंथों के पन्ने पलटने के बावजूद उन्हें इस सवाल का कोई जवाब नहीं मिला। इसके बाद वे उत्तर भारत आये, यहाँ उन्हें कतिपय संस्कृत ग्रंथों में कुछ संकेत मिले।* 

*इन सूत्रों व संकेतों के आधार पर साधना करने के लिए डॉ. उशी अपने शहर से १६ मील दूर स्थित कुरीयामा नाम की एक पहाड़ी पर गये। यहाँ इन्होंने अपनी आध्यात्मिक साधना की। इस एकान्त स्थान पर २१ दिन का उपवास रखकर ये तप साधना में लग गये।* साथ ही उन संस्कृत मंत्रों का जप भी करते रहे। बीस दिनों तक इनको कोई खास अनुभूति नहीं हुई। लेकिन इक्कीसवाँ दिन इन्हें एक तेज प्रकाश पुञ्ज तीव्र गति से उनकी ओर बढ़ता हुआ दिखाई दिया। *यह प्रकाश पुञ्ज ज्यों- ज्यों उनकी ओर बढ़ता था, त्यों- त्यों बड़ा होता जाता था। अन्त में वह उनके सिर के मध्य में टकराया। इन्होंने सोचा कि अब तो मरना निश्चित है। फिर अचानक उन्हें विस्फोट के साथ आकाश में कई रंगों वाले लाखों चमकीले सितारे दिखाई दिये।* तथा एक श्वेत प्रकाश में उन्हें वे संस्कृत के श्लोक दिखाई दिये, जिनका वे जप करते थे। यहीं से उन्हें विश्वव्यापी प्राण ऊर्जा के उपयोग की विधि प्राप्त हुई, जिसे उन्होंने रेकी का नाम दिया। 

.... *क्रमशः जारी*
✍🏻 *डॉ. प्रणव पण्ड्या*
📖 *आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ ९१*

👉 *जैसी आपकी सोच, वैसे आपके कर्म*

👉 *जैसी आपकी सोच, वैसे आपके कर्म*

*समय बड़ा विचित्र है न ये समय। कहा जाय तो एक भाव है, एक संख्या है, एक विषय है, अब देखिये न, सूर्योदय सबका एक साथ होता है, है न?* किसी का आगे किसी का पीछे तो नहीं होता न? *सूर्यास्त भी सबका एक साथ होता है?* अब सोचिये यही समय सबके लिये भिन्न-भिन्न है। *किसी के लिये यही समय अच्छा है, तो किसी के लिये यही समय बुरा है।* अभी इसी क्षण किसी के मुख पर सफलता का तेज है, तो किसी के मुख पर असफलता की निराशा। भला ऐसा क्यों ? *क्यों ये समय किसी के लिये श्रेष्ठ है, क्यों ये समय किसी को निराश कर रहा है? इसका उत्तर है, आपकी सोच, आपके कर्म। जैसी आपकी सोच, जैसे आपके कर्म।* उसी  के अनुरूप होगा आपका ये सब। 

आपके जीवन में सुख तभी मिलेगा जब आप किसी के जीवन में आशा की मुस्कान ला दो। *आपको प्रसन्नता तभी मिलेगी, जब जीवन में आप किसी को प्रसन्न कर दो।* हाँ ये हर बार नहीं कि आप किसी को प्रसन्नता दे पाओ। किन्तु ये तो *आपके वश में है कि किसी को आप दुःख न पहुँचाओ, आप किसी को नाराज न करो?* और आपका ये किसी को दुःख न पहुँचाने का प्रयास भी आपका कर्म ही तो है, और आपको इस शुभकर्म का फल प्रकृति आपको अवश्य देगी। *स्मरण रखियेगा अच्छा समय उसी का आता है,  जो कभी किसी का बुरा न चाहे।*


गुरुवार, 12 सितंबर 2019

👉 *आध्यात्मिक तेज का प्रज्वलित पुंज होता है चिकित्सक


👉 *आसन, प्राणायाम, बंध एवं मुद्राओं से उपचार*

*प्राणायाम के अलावा बन्ध हठयोग की अन्य महत्त्वपूर्ण विधि है। इसे अन्तः शारीरिक प्रक्रिया कहा गया है।* इनके अभ्यास से व्यक्ति शरीर के विभिन्न अंगों तथा नाड़ियों को नियंत्रित करने में समर्थ होता है। इनके द्वारा शरीर के आन्तरिक अंगों की मालिश होती है। रक्त का जमाव दूर होता है। *इन शारीरिक प्रभावों के साथ बन्ध सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त विचारों एवं आत्मिक तरंगों को प्रभावित कर चक्रों पर सूक्ष्म प्रभाव डालते हैं।* यहाँ तक कि यदि इन का अभ्यास विधिपूर्वक जारी रखा जाय तो *सुषुम्रा नाड़ी में प्राण के स्वतन्त्र प्रवाह में अवरोध उत्पन्न करने वाली ब्रह्मग्रन्थि, विष्णुग्रन्थि व रुद्रग्रन्थि खुल जाती है और आध्यात्मिक विकास का पथ प्रशस्त होता है।* 

*हठयोग की एक अन्य विधि के रूप में मुद्राएँ सूक्ष्म प्राण को प्रेरित, प्रभावित व नियंत्रित करने वाली प्रक्रियाएँ हैं।* इनमें से कई मुद्राएँ तो ऐसी हैं जिनके द्वारा अनैच्छिक शरीरगत प्रक्रियाओं पर नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है। *मुद्राओं का अभ्यास साधक को सूक्ष्म शरीर स्थित प्राण- शक्ति की तरंगों के प्रति जागरूक बनाता है। अभ्यास करने वाला इन शक्तियों पर चेतन रूप से नियंत्रण प्राप्त करता है।* फलतः व्यक्ति अपने शरीर के किसी अंग में उसका प्रवाह ले जाने या अन्य व्यक्ति के शरीर में उसे पहुँचाने की क्षमता प्राप्त करता है। 

*हठयोग की ये सभी विधियाँ जीवन व्यापी प्राण के स्थूल व सूक्ष्म रूप को प्रेरित, प्रभावित, परिशोधित व नियंत्रित करती हैं।* इनके प्रभाव से प्राण प्रवाह में आने वाले व्यतिक्रम या व्याघात को समाप्त किया जा सकता है। इसके लाभ अनगिनत है। ऐसे ही एक लाभ का उदाहरण हम यहाँ पर दे रहे हैं। जिनसे इन पंक्तियों के पाठक इन विधियों के महत्त्व को जान सकेंगे। *उन दिनों यहाँ से एक योग विशेषज्ञ अमेरिका के एक विश्वविद्यालय में गए थे। वहाँ उनका एक योग विषय पर व्याख्यान था। जिस विश्वविद्यालय में उन्हें व्याख्यान देना था, वहाँ उन दिनों विद्यार्थियों को द्रुत शिक्षण व प्रशिक्षण पर कुछ प्रयोग सम्पन्न किए जा रहे थे।* इसे उन लोगों ने साल्ट नाम दिया था। साल्ट यानि कि सिस्टम ऑफ एक्सीलरेटेड लर्निंग् एण्ड ट्रेनिंग। 

*उस प्रयोग के दौरान जब बात होने लगी तो यहाँ पहुँचे योग विशेषज्ञ ने अपनी चर्चा में कहा, मस्तिष्क एवं मन की ग्रहणशीलता का सम्बन्ध श्वास से होता है। योग इस बात को स्वीकार करता है।* इस बात को सुनते ही प्रयेागकर्त्ता वैज्ञानिक प्रसन्न हो गए और उन्होंने कहा, आप तो भारत से आए हैं क्यों नहीं हमारे विद्यार्थियों पर प्रयोग करते। इस बात ने एक लघुप्रयोग का सिलसिला जुटाया। *आचार्य श्री द्वारा बताए गए प्राणायाम की सरलतम विधि प्राणाकर्षण प्राणायाम को विद्यार्थियों को सिखाया गया। और प्रयोग प्रारम्भ हो गया। एक महीने तक यह सिलसिला चलता रहा। एक महीने के बाद पाया गया कि विद्यार्थियों की ग्रहणशीलता तीस से चालीस प्रतिशत तक बढ़ गयी।* उनके तनाव, दुश्चिन्ता आदि भी समाप्त हुए। इस प्रयोग से वहाँ के वैज्ञानिक समुदाय को हठयोग की विधियों के महत्त्व का भान हुआ। उन्होंने अनुभव किया कि इन विधियों का केन्द्रीभूत तत्त्व प्राण चिकित्सा है।

.... *क्रमशः जारी*
✍🏻 *डॉ. प्रणव पण्ड्या*
📖 *आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति 

Motivational Story...

👉 *मूर्ख कौन?*

*ज्ञानचंद नामक एक जिज्ञासु भक्त था। वह सदैव प्रभुभक्ति में लीन रहता था। रोज सुबह उठकर पूजा- पाठ, ध्यान-भजन करने का उसका नियम था। उसके बाद वह दुकान में काम करने  जाता। दोपहर के भोजन के समय वह दुकान बंद कर देता और फिर दुकान नहीं खोलता था।*

बाकी के समय में वह साधु- संतों को भोजन करवाता, गरीबों की सेवा करता, साधु- संग एवं दान-पुण्य करता। व्यापार में जो भी मिलता उसी में संतोष रखकर प्रभुप्रीति के लिए जीवन बिताता था। 

*उसके ऐसे व्यवहार से लोगों को आश्चर्य होता और लोग उसे पागल समझते। लोग कहतेः  "यह तो महामूर्ख है। कमाये हुए सभी पैसों को दान में लुटा देता है। फिर दुकान भी थोड़ी देर के लिए ही खोलता है। सुबह का कमाई करने का समय भी पूजा- पाठ में गँवा देता है। यह तो पागल ही है।"*

एक बार गाँव के नगरसेठ ने उसे अपने पास बुलाया। उसने एक लाल टोपी बनायी थी। *नगरसेठ ने वह टोपी ज्ञानचंद को देते हुए कहाः  "यह टोपी मूर्खों के लिए है। तेरे जैसा महान् मूर्ख मैंने अभी तक नहीं देखा, इसलिए यह टोपी तुझे पहनने के लिए देता हूँ।* इसके बाद यदि कोई तेरे से भी ज्यादा बड़ा मूर्ख दिखे तो तू उसे पहनने के लिए दे देना।"

ज्ञानचंद शांति से वह टोपी लेकर घर वापस आ गया। एक दिन वह नगर सेठ खूब बीमार पड़ा। ज्ञानचंद उससे मिलने गया और उसकी तबीयत के हालचाल पूछे। नगरसेठ ने कहाः "भाई ! अब तो जाने की तैयारी कर रहा हूँ।"

ज्ञानचंद ने पूछाः   "कहाँ जाने की तैयारी कर रहे हो? वहाँ आपसे पहले किसी व्यक्ति को सब तैयारी करने के लिए भेजा कि नहीं? आपके साथ आपकी स्त्री, पुत्र, धन, गाड़ी, बंगला वगैरह आयेगा कि नहीं?"

*"भाई ! वहाँ कौन साथ आयेगा? कोई भी साथ नहीं आने वाला है। अकेले ही जाना है। कुटुंब-परिवार, धन-दौलत, महल-गाड़ियाँ सब छोड़कर यहाँ से जाना है ।आत्मा-परमात्मा के सिवाय किसी का साथ नहीं रहने वाला है।"

सेठ के इन शब्दों को सुनकर ज्ञानचंद ने खुद को दी गयी वह लाल टोपी नगरसेठ को वापस देते हुए कहाः "आप ही इसे पहनो।"

नगरसेठः  "क्यों?"

*ज्ञानचंदः  "मुझसे ज्यादा मूर्ख तो आप हैं। जब आपको पता था कि पूरी संपत्ति, मकान, परिवार वगैरह सब यहीं रह जायेगा, आपका कोई भी साथी आपके साथ नहीं आयेगा, भगवान के सिवाय कोई भी सच्चा सहारा नहीं है, फिर भी आपने पूरी जिंदगी इन्हीं सबके पीछे बरबाद कर दी?"*


👉 *अंडा खाइये और लकवा बुलाइये*

👉 *अंडा खाइये और लकवा बुलाइये*

*इधर मूर्ख नेताओं वाले देश भारतवर्ष में तृतीय पंचवर्षीय योजना देश भर में मुर्गी पालन और अण्डा उत्पादन का अभियान चला रही थी उधर फ्लोरिडा अमेरिका का कृषि विभाग 'अण्डों का स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है' उसकी शोध और परीक्षण कर रहा है। अट्ठारह महीनों के परीक्षण के बाद 1967 की हेल्थ बुलेटिन ने बताया- अण्डों में डी.डी.टी. विष पाया जाता है जो स्वास्थ्य के लिये अत्यधिक हानिकारक है।*

कैलीफोर्निया के विश्व विख्यात डॉ. कैथेराइन निम्मो डी.सी.आर.एन. तथा डॉ. जे. एमन विल्किन्ज ने एक सम्मिलित रिपोर्ट में बताया- *एक अण्डे में लगभग 4 ग्रेन 'केले स्टरोल' नामक अत्यन्त विषैला तत्व पाया जाता है। यह विष हृदय रोगों का मुख्य कारण है।* इतनी सी मात्रा से ही हाई ब्लडप्रेशर, पित्ताशय में पथरी, गुर्दों की बीमारी तथा रक्त में जाने वाली धमनियों में घाव हो जाते हैं 'इस स्थिति में अण्डों से स्वास्थ्य की बात सोचना मूर्खता ही है।'

इन डाक्टरों की यह रिपोर्ट पढ़कर विश्वभर के डॉक्टर चौंके और तब सारे संसार की प्रयोगशालाओं में परीक्षण होने लगे। उन परीक्षणों में न केवल उपरोक्त तथ्य पुष्ट हुये वरन् कुछ नई जानकारियाँ मिलीं जो इनसे भी भयंकर थीं।

*उदाहरण के लिये इंग्लैंड के डॉ. राबर्ट ग्रास, इविंग डैविडसन तथा प्रोफेसर ओकड़ा ने कुछ पेट के बीमारों का- अण्डे खाने और अण्डे खाना छोड़ देने इन, दोनों परिस्थितियों में परीक्षण किया और पाया कि जब तक वे मरीज अण्डे खाते रहे तब तक उनका पाचन बिगड़ा रहा, पेचिश हुआ और ट्यूबर कुलैसिस बैक्टीरिया (टी.बी.) जन्म लेता दिखाई दिया।'*

अमेरिका के डॉ. ई.वी.एम.सी. कालम ने तो इन तथ्यों का विधिवत प्रचार किया उन्होंने *अपनी पुस्तक 'न्यूअर नॉलेज आफ न्यूट्रिन पेज 171 में लिखा है' अण्डों में कार्बोहाइड्रेट्स तथा कैल्शियम की कमी होती है। अतः यह पेट में सड़ाँद उत्पन्न करते हैं, यह सड़न ही अपच, मन्दाग्नि और अनेक रोगों के रूप में फूटती है* साथ ही स्वभाव में चिड़चिड़ापन- थोड़े में क्रुद्ध हो जाना जैसी बुराइयाँ उत्पन्न करता है।

*'दि नेचर ऑफ डिसीज' पत्रिका के द्वितीय वाल्यूम पेज 194 में चेतावनी देते हुए डॉ. जे.ई.आर.एम.सी. डोनाह एफ.आर.सी.पी. (इंग्लैंड) लिखते हैं- 'कैसा पागलपन है कि जो अंडा आँतों में विष और घाव उत्पन्न करता है आज उन्हीं अण्डों की उपज में वृद्धि करने की व्यावसायिक योजनाएं तैयार की जा रही हैं।'*

धार्मिक आध्यात्मिक और जीव दया जैसी अत्यधिक आवश्यक बातें उपेक्षित भी की जा सकती हैं पर क्या इन डाक्टरी निष्कर्षों को भी ठुकराया जा सकता है। अण्डा किसी भी अर्थ में स्वास्थ्य वर्धक नहीं। *इंग्लैण्ड के डॉ. आर. जे. विलियम्स का कथन है आज जो लोग अण्डे खाकर स्वस्थ होने की कल्पना करते हैं वहीं कल जब एक्जिमा और लकवे जैसे भयंकर रोग से शिकार होंगे- तब पश्चाताप करेंगे कि घास की रोटी खा लेती तो अच्छा था अण्डा खाकर आत्मघात जैसा दुर्भाग्य तो सिर पर न पड़ता।*

📖 *अखण्ड ज्योति, 

बुधवार, 4 सितंबर 2019

👉 *"मर्द"..आज के..*



*आज हमेंशा की तरह ट्रेन में कम भीड़ थी,पुष्पा ने खाली जगह पर अपना ऑफिस बैग रखा और खुद बगल में बैठ गई। पूरे डिब्बे में कुछ मर्दों के अलावा सिर्फ पुष्पा ही थी। रात का समय था सब उनींदे से सीट पर टेक लगाये या तो बतिया रहे थे या ऊंघ रहे थे। *

अचानक डिब्बे में 3-4 तृतीय लिंगी तालियां बजाते हुए पहुंचे और मर्दों से 5-10 रूपये वसूलने लगे कुछ ने चुपचाप दे दिए और कुछ उनींदे से बड़बड़ाने लगे- क्या मौसी रात को तो छोड़ दिया करो ये हफ्ता वसूली... वह सभी पुष्पा की तरफ रुख न करते हुए सीधा आगे बढ़ गए, फिर ट्रेन कुछ देर रुकी और कुछ लड़के चढ़े, फिर दौड़ ली आगे की ओर।

*पुष्पा की मंजिल अभी 1 घंटे के फासले पर थी वे 4-5 लड़के पुष्पा के नजदीक खड़े हो गए और उनमे से एक ने नीचे से उपर तक पुष्पा को ललचाई नजरो से देखा और बोला -मैडम अपना ये बैग तो उठा लो सीट बैठने के लिए है, सामान रखने के लिए नहीं।*

साथी लड़कों ने वीभत्स हंसी से उसका साथ दिया, पुष्पा ने अपना बैग उठाया और सीट पर सिमट कर बैठ गई। वे सारे लड़के पुष्पा के बगल में आकर बैठ गए।

*पुष्पा ने कातर नजरों से सामने बैठे 2-3 पुरुषों की ओर देखा पर वे ऐसा जाहिर करने लगे मानो पुष्पा का कोई अस्तित्व ही ना हो। तभी पास बैठे लड़के ने पुष्पा की बांह पर अपनी ऊंगली फेरी तो बाकी लड़कों ने फिर उसी वीभत्स हंसी से उसका उत्साहवर्धन किया।*

ओ मिस्टर थोड़ा तमीज में रहिये- पुष्पा सीट से उठ खड़ी हुई और ऊंची आवाज में बोली। डिब्बे के सभी मर्द अब भी अपनी अपनी मोबाइल में विचरण कर रहे थे। किसी के मुंह से कुछ नहीं निकला।

*अरे..अरे मैडम तो गुस्सा हो गईं,अरे बैठ जाइये मैडम आपकी और हमारी मंजिल अभी दूर है तब तक हम आपका मनोरंजन करते रहेंगे,कत्थई दांतों वाला लड़का पुष्पा का हाथ पकड़कर बोला।*

डिब्बे की सारीं सीटों पर मानो पत्थर की मूर्तियां विराजमान थी। तभी...अरे तूं क्या मनोरंजन करेगा? हम करतें हैं तेरा मनोरंजन।

*शबाना उठा रे लहंगा, ले इस चिकने को लहंगे में बड़ी जवानी चढ़ी है इसे। आय हाय मुंह तो देखो सुअरों का,कुतिया भी ना चाटे। इनके बदन में बड़ी मस्ती चढ़ी है,अरे वो जूली उतारो इनके कपड़े,पूरी मस्ती निकालते हैं इन कमीनों की।*

*जूली नाम का भयंकर डीलडौल वाला तृतीय लिंगी जब उन लड़कों की तरफ बढ़ा तो सभी लड़के डिब्बे के दरवाजे की ओर भाग निकले और धीमे चलती ट्रेन से बाहर कूद पड़े।
पुष्पा की भीगी आंखों ने अपनी सुरक्षा करने के लिए सिर झुकाकर उन सभी तृतीय लिगिंयों का अभिवादन किया और फिर नजर जब डिब्बे के कथित मर्दों की तरफ पड़ी जो अपनी आंखे झुकाएं अपनी मोबाइल में व्यस्त थे।*

*और असली मर्द तालियां बजाते आगे की ओर बढ़ गये।*
कौन है असली मर्द??


मंगलवार, 3 सितंबर 2019

*गलत विश्वास*



*वैज्ञानिको ने एक प्रयोग में  एक बड़े से टैंक में एक शार्क मछली को रखा। और उसके साथ ही कुछ छोटी मछलियों को भी उसी टैंक में डाल दिया।* स्वाभाविक रूपसे शार्कने तुरंत ही उन सारी मछलियों का सफाया कर दिया इसके बाद वैज्ञा निको ने टैंक में एक बहुत ही मजबूत फैबर ग्लास  लगा दिया। और टैंक के दो हिस्से कर दिए। एक हिस्से में शार्क थी। और दुसरे हिस्से में उसने फिर से छोटी मछलियों को डाला। *जैसे ही शार्क की नज़र उन पर पड़ी। वो उन्हें खाने के लिए लपकी। पर इस बार बीच में फैबर ग्लास  होने की वजह से शार्क उससे जा टकराई।* एक बार टकराने के बाद भी शार्क ने हार नहीं मानी। वो हर कुछ समय के अंतराल के बाद उस दिशा में बढती जहा मछलिया थी,और टकरा के फिर पलट आती। *इस दौरान छोटी मछलिया आसानी से और आज़ादी से तैर रही थी। और कुछ एक डेढ़ घंटे के बाद शार्क ने हार मान ली।* 

*ये प्रयोग पुरे हफ़्ते भर में कई बार किया गया। धीरे धीरे शार्क के हमले कम होते गए। और वो ज्यादा जोर भी नहीं लगाती थी।* बार बार कोशिश करते रहने से, पर फिर भी मछलियों तक न पहुँचपाने से शार्क ने थक कर हार मान ली। और प्रयास करना छोड़ दिया। कुछ दिनों के बाद वैज्ञानिको ने बिच के फैबर ग्लास को हटा दिया। पर इसके बाद भी शार्क ने कभी हमला नहीं किया। *शार्क को पिछले कुछ हफ्तों में विश्वास हो गया था की वो उन मछलियों तक नहीं पहुँच सकती। और दूसरी छोटी मछलिया बिना किसी नुकसान के तैरने लगी। शार्क उन तक पहुँचने के कोशिश भी नहीं करती थी।* पूर्वानुभव के कारण धारणा दृढ़ बन गईऔर पूर्वाग्रह के कारण वस्ताविकता को समझना असंभव बना।

इस प्रसंग की सीख यह है कि* जब हम किसी काम के लिए लगातार प्रयास करते हैं और हर बार असफल होते हैं तो हमारी सोच नकारात्मक हो जाती है।* धीरे-धीरे प्रयास करना ही बंद कर देते हैं और सफलता हासिल नहीं कर पाते हैं। *अगर हम सफल होना चाहते हैं तो हमें लगातार प्रयास करते रहना चाहिए और कोशिश करना नहीं छोड़ना चाहिए, जब तक कि हम सफल नहीं हो जाते हैं।
From Deshpriya mourya m-7974858416 
👉 *झूठा अभिमान*

*एक मक्खी एक हाथी के ऊपर बैठ गयी। हाथी को पता न चला मक्खी कब बैठी।* मक्खी बहुत भिनभिनाई आवाज की, और कहा, 'भाई! तुझे कोई तकलीफ हो तो बता देना। वजन मालूम पड़े तो खबर कर देना, मैं हट जाऊंगी।' लेकिन हाथी को कुछ सुनाई न पड़ा। *फिर हाथी एक पुल पर से गुजरने लगा बड़ी पहाड़ी नदी थी, भयंकर गङ्ढ था, मक्खी ने कहा कि 'देख, दो हैं, कहीं पुल टूट न जाए! अगर ऐसा कुछ डर लगे तो मुझे बता देना। मेरे पास पंख हैं, मैं उड़ जाऊंगी।'* 

*हाथी के कान में थोड़ी-सी कुछ भिनभिनाहट पड़ी, पर उसने कुछ ध्यान न दिया। फिर मक्खी के बिदा होने का वक्त आ गया।* उसने कहा, 'यात्रा बड़ी सुखद हुई, साथी-संगी रहे, मित्रता बनी, अब मैं जाती हूं, कोई काम हो, तो मुझे कहना, तब मक्खी की आवाज थोड़ी हाथी को सुनाई पड़ी, उसने कहा, *'तू कौन है कुछ पता नहीं, कब तू आयी, कब तू मेरे शरीर पर बैठी, कब तू उड़ गयी, इसका मुझे कोई पता नहीं है।* लेकिन मक्खी तब तक जा चुकी थी सन्त कहते हैं, 'हमारा होना भी ऐसा ही है। इस बड़ी पृथ्वी पर हमारे होने, ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता। 

*हाथी और मक्खी के अनुपात से भी कहीं छोटा, हमारा और ब्रह्मांड का अनुपात है । हमारे ना रहने से क्या फर्क पड़ता है?* लेकिन हम बड़ा शोरगुल मचाते हैं। वह शोरगुल किसलिये है? वह मक्खी क्या चाहती थी? *वह चाहती थी हाथी स्वीकार करे, तू भी है; तेरा भी अस्तित्व है, वह पूछ चाहती थी। हमारा अहंकार अकेले तो नहीं जी सक रहा है। दूसरे उसे मानें, तो ही जी सकता है।* इसलिए हम सब उपाय करते हैं कि किसी भांति दूसरे उसे मानें, ध्यान दें, हमारी तरफ देखें; उपेक्षा न हो।

*सन्त विचार- हम वस्त्र पहनते हैं तो दूसरों को दिखाने के लिये, स्नान करते हैं सजाते-संवारते हैं ताकि दूसरे हमें सुंदर समझें।* धन इकट्ठा करते, मकान बनाते, तो दूसरों को दिखाने के लिये। दूसरे देखें और स्वीकार करें कि तुम कुछ विशिष्ट हो, ना की साधारण।

तुम मिट्टी से ही बने हो और फिर मिट्टी में मिल जाओगे, *तुम अज्ञान के कारण खुद को खास दिखाना चाहते हो वरना तो तुम बस एक मिट्टी के पुतले हो और कुछ नहीं।* अहंकार सदा इस तलाश में है–वे आंखें मिल जाएं, जो मेरी छाया को वजन दे दें।

याद रखना *आत्मा के निकलते ही यह मिट्टी का पुतला फिर मिट्टी बन जाएगा इसलिए अपना झूठा अहंकार छोड़ दो* और सब का सम्मान करो क्योंकि जीवों में परमात्मा का अंश hai.