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मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015

धरती पर आकाश बिछेगा

गुस्से के मारे
सारे के सारे
आसमान के तारे
टूट पड़े धरती के ऊपर
झर-झर-झर-झर अगर
तो बतलाओ क्या होगा?

धरती पर आकाश बिछेगा
किरणों से हर कदम सिंचेगा
चंदा तक चढ़ने का
मतलब नहीं बचेगा
रूस बढ़ा या अमरीका
बढ़ने का मतलब नहीं बचेगा|

मगर एक मुश्किल आऐगी
कब जाएगी रात और
दिन कब आएगा?
कब मुर्गा बोलेगा
कब सूरज आएगा
कब बाज़ार भरेगा
कब हम जाएँगे सोने
कब जाएँगे लोग,
बढ़ेंगे कब किसान बोने
कब मां हमें उठाएगी
मूंह हाथ धुलेगा
जल्दी जल्दी भागेंगे हम यों कि
अभी स्कूल खुलेगा?

नाहक हैं सारे सवाल ये
हम सब चौबीसों घंटों
जागेंगे कूदेंगे खेलेंगे
हर तारे से बात करेंगे!

मगर दूसरे लोग-
बात उनकी क्या सोचें
उनसे कुछ भी नहीं बना
तो पापड़ बेलेंगे!
-भवानीप्रसाद मिश्र


FROM SAFALTA KI RAAH

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