मरने के बाद भी उसे सुकून नहीं मि
आपने किस्से-कहानियों में तो कई बार देखा और सुना होगा कि जब भी किसी ने मरने के बाद इंसानों की दुनिया से मोह रखा है उसके इस मोह और लगाव का खामियाजा उसे नहीं बल्कि उन लोगों को भुगतना पड़ा है जिनके साथ उस व्यक्ति का संबंध था. यह कहानी भी ऐसे ही एक बच्चे की है जो अपनी मां से बहुत प्यार करता था इतना कि उनके बिना एक दिन भी नहीं रह पाता था. दस वर्ष की उम्र में सौरव को उसके पिता जी ने हॉस्टल भेज दिया लेकिन वह अपनी मां से दूर नहीं जाना चाहता था.
सौरव को हॉस्टल भेजने का एक कारण उसका हर समय डरना और आत्मनिर्भर ना बन पाना था. सौरव अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था इसीलिए उसके अभिभावक उसे सारी खुशियां देना चाहते थे लेकिन सौरव का व्यवहार उन्हें बहुत परेशान करता था. वह किसी से बात नहीं करता था और अकेला ही रहता था. इसीलिए उसे हॉस्टल भेज दिया गया.
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सौरव अनमने ढंग से हॉस्टल जाने के लिए तैयार हो गया. माता-पिता की जबरदस्ती उसे बिल्कुल पसंद नहीं आ रही थी लेकिन फिर भी हॉस्टल जाना उसकी मजबूरी बन गया. उसके माता-पिता उसे छोड़ने हॉस्टल तक भी आए लेकिन उन्हें बाय कहते समय भी सौरव का चेहरा उदास था. सौरव की मां ने तो अपने दिल पर पत्थर रखकर बेटे को अलविदा कहा
खैर दिन बीतने लगे लेकिन दिन बीतने के साथ-साथ सौरव का अपनी मां से अलगाव और दुखदायी होने लगा. वह अपनी क्लास के बच्चों से घुलमिल नहीं पा रहा था और शिक्षकों का सख्त व्यवहार उसे बहुत परेशान किए हुए था. वह दिन-रात रोता रहता और अपनी मां को फोन पर सब बताता.
सौरव की मां अपने इकलौते बच्चे को बहुत मिस करती थी वहीं सौरव भी अपने घर को बहुत याद करता था. हॉस्टल के नियम बहुत कड़े थे इसीलिए सौरव अपनी मां से ज्यादा देर तक बात भी नहीं कर पाता था.
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सौरव को कई बार रात को डर लगता था. घर पर तो वह अपनी मां के पास सोने चला जाता था लेकिन यहां तो ऐसा कुछ संभव नहीं था. उस रात भी वहीं हुआ. दिन में सौरव के सीनियर्स ने उसे कुछ मनगढ़ंत भूतहा किस्से यह कहकर सुनाए थे कि यह सब सच है. बेचारे सौरव ने भी उनकी बातों पर विश्वास कर लिया.
रात को जब सौरव सोने गया तो उसने अपने बेड पर एक अजीब सी लिखावट देखी. वह उसे पढ़ नहीं पा रहा था. उसने महसूस किया कि उसके कमरे में कुछ तो बहुत अजीब है. पहले उसे बदबू आने लगी और बाद में उसे अपनी चीजें इधर-उधर जाती दिखाई दीं. किसी तरह उसने अपनी आंखें बंद की और कब उसे नींद आ गई पता नहीं चला. लेकिन रात को करीब 3 बजे एक खौफनाक आवाज ने उसकी नींद खोल दी.
कोई उसका नाम ले कर तेज-तेज चिल्ला रहा था. उसे यह आवाज अपने ही कमरे में से आ रही थी. सौरव का दिल बहुत कमजोर था. लेकिन फिर भी हिम्मत कर वह इधर-उधर देखने लगा कि कौन है. लेकिन उसे कोई नजर नहीं आया.
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अचानक उसे अपना बेड हिलता हुआ महसूस हुआ. वह चीखने लगा लेकिन किसी ने उसकी मदद नहीं की. वह बेड से उतरा और फिर उसी आवाज का पीछा करने लगा. उसे महसूस हुआ कि यह आवाज उसकी अलमारी में से आ रही है. अलमारी जोर-जोर से खटक रही थी. सौरव डर से कांपने लगा लेकिन उसने जैसे ही अलमारी खोली सामने उसे एक भयानक सा व्यक्ति नजर आया. उस खौफनाक चेहरे को देखकर वह डर के मारे बेहोश हो गया और फिर कभी नहीं उठा. डॉक्टरों का कहना था कि दिल का दौरा पड़ने से सौरव की मौत हो गई. उसके सभी सीनियर और क्लासमेट्स को अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ. शायद उन्हें नहीं पता था कि यह छोटा सा मजाक सौरव की जान ले लेगा.
जब सौरव की मां को उसके मरने की खबर दी गई तो वह बिल्कुल पत्थर बन गई. वह ना रोती थी और ना ही कोई हरकत करती थी. बस एक जिन्दा लाश की तरह बैठी रहती थी. लेकिन एक दिन वह बहुत खुश थी. वह ना सिर्फ हंस रही थी बल्कि उसने सौरव के पसंद का खाना भी बनाया था.
जब सौरव के पिता ने उससे पूछा कि वह यह सब क्या कर रही है तो उसने बोला सौरव आया है ना इसीलिए उसकी पसंद का खाना बना रही हूं.
पहले उन्हें लगा कि सौरव के जाने का गम ने सौरव की माता को मानसिक रूप से परेशान कर दिया है. लेकिन जब उन्हें भी घर में किसी तीसरे के होने का अहसास हुआ तो वह हैरान रह गए. सौरव का कमरा बिल्कुल वैसा था जैसा सौरव के समय होता था. सौरव की आवाजें सुनाई देने लगीं और कभी-कभी तो उसकी छवि भी उसके पिता देख लेते. सौरव की मां बहुत खुश थी क्योंकि उनका बेटा अब कभी ना जाने के लिए उनके पास आ गया है. वह रात को उसी के कमरे में सोती और पहले की ही तरह उसके पसंद का ध्यान रखती. उसके टी.वी. देखने का टाइम और खेलने का टाइम सब फिक्स था. जिसका अनुसरण आज भी किया जाता था. फर्क बस इतना था कि अब सौरव अपनी मां के साथ ही खेलता और उन्हीं के हाथ से खाता क्योंकि और कोई उसे देख नहीं पाता था ना .......!!
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सोमवार, 23 फ़रवरी 2015
मरने के बाद भी उसे सुकून नहीं
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