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बुधवार, 4 मार्च 2015

भानगढ़ - सूरज ढलते ही दिखाई देता है खौफनाक मंजर

भूत-प्रेत की कहानियां पढ़ने और सुनने में तो बहुत रोमांचक लगती हैं लेकिन जरा सोचिए अगर ऐसे ही कुछ वास्तव में आपके साथ घटित हो जाए तो क्या फिर भी आप उतने रोमांचित रहेंगे या डर के मारे थर-थर कांपने लगेंगे? किसी पारलौकिक शक्ति या प्रेत आत्मा का आसपास होने का अहसास भी शरीर में एक अजब सी सिरहन पैदा कर देता है तो ऐसे में जाहिर सी बात है जब आपका सामना ऐसी किसी ताकत से हो जाएगा तो आपका रोमांच भी वहीं दम तोड़ देग
वैसे तो कहने को बहुत सी ऐसी जगह हैं जहां यह माना जाता है कि यहां आत्माओं का वास है. कोई वीरान और अकेला घर हो या एक लंबे समय से खाली पड़ी इमारत, इसके अलावा वह स्थान जहां किसी दुर्घटना की वजह से किसी की जान चली गई हो उसे भी रहने योग्य नहीं माना जाता क्योंकि लोगों का मानना है कि जिन लोगों की जान दुर्घटना में जाती है उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती और वे भटकते रहते हैं. कहने को तो बहुत सी जगहों को हॉंटेड या भूतहा कहा जा सकता है लेकिन भारत में एक स्थान ऐसा है जहां प्रमाणिक तौर पर यह कहा जा सकता है कि उस स्थान में कुछ ना कुछ गड़बड़ तो जरूर है और वह स्थान है राजस्थान स्थित भानगढ़ किला. यह वह स्थान है जिसे पुरातत्व वैज्ञानिकों ने भी सामान्य नहीं माना है. तभी तो राज्य सरकार द्वारा भानगढ़ किले के बाहर चेतावनी के तौर एक बोर्ड लगा हुआ है जिसमें यह साफ-साफ लिखा है कि सूर्योदय होने से पहले और सूर्यास्त होने के बाद कोई भी उस किले में ना तो रुकेगा और
आखिर भानगढ़ में ऐसा क्या है जो आम जन को वहां रात के समय जाने से रोकता है. अगर कुछ है तो उसके पीछे का कारण क्या है. हालांकि कोई भी पुख्ता तौर पर वहां घटने वाली दुर्घटनाओं का कारण नहीं बता पाया लेकिन स्थानीय लोगों के बीच प्रचलित कुछ कहानियां है जो यह साबित करती हैं कि हां वहां कुछ तो जरूर हो सकता है.
तांत्रिक का श्राप: लोगों का मानना है कि बहुत समय पहले इस स्थान पर रत्नावती नाम की बहुत सुंदर राजकुमारी रहती थी जिस पर काला जादू करने वाले तांत्रिक की कुदृष्टि थी. तांत्रिक ने अपने जादू से राजकुमारी को अपने वश में कर उसका शारीरिक शोषण किया. लेकिन एक दुर्घटना के चलते उस तांत्रिक की मृत्यु हो गई और आज भी उस तांत्रिक की आत्मा वहीं भटकती रहती है. तांत्रिक के श्राप के अनुसार वह स्थान कभी भी बस नहीं सकता. वहां रहने वाले लोगों की मृत्यु हो जाती है लेकिन उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती.!
बाबा बालकनाथ का श्राप: तपस्वी बाबा बालकनाथ को राजी कर माधो सिंह नाम के राजा ने इस किले का निर्माण किया. लेकिन बाबा बालकनाथ ने राजा को पहले ही यह हिदायत दे दी थी कि जिस पल तुम्हारे महल की छाया मुझपर या मेरी झोपड़ी पर पड़ी उसी पल तुम्हारा राज और यह महल सब समाप्त हो जाएगा. माधो सिंह ने उन्हें यह वचन दिया कि वह अपने महल को इतना ऊंचा नहीं करेंगे कि उसकी छाया कभी भी तपस्वी बाबा की झोपड़ी पर पड़े. लेकिन माधो सिंह के देहांत के बाद उनके पौत्र अजब सिंह ने महल का निर्माण करवाया और उसे उतनी ऊंचाई दे दी जिसकी वजह से सूर्य की किरणों की वजह से साधु के आवास पर महल की छाया पड़ने लगी. उसी पल साधु का श्राप समूचे राज्य को अपनी चपेट में ले गया और उस स्थान पर कभी ना समाप्त होने वाली कयामत का साया पड़ गया

FROM SAFALTA KI RAAH

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