घुप्प अंधेरा, रौशनी का कोई नामो निशान नहीं, ऐसे रास्तों पर एक-दो दिन तो दूर की बात है शायद आप 1-2 घंटे भी न चल पाएं. उनकी कैसी मजबूरी थी कि अपनी मर्जी से वे 3 महीने तक मीलों एक ऐसे ही रास्ते पर चलते रहे जहां रौशनी का एक कतरा भी नहीं था. कोई कैंडल, कोई दीया नहीं, 24 घंटे उनके लिए किसी अमावस्या की रात की तरह होते थे लेकिन चलना उनकी मजबूरी थी क्योंकि जो जिंदगी उन्हें मिली थी उसमें जीना इससे भी कहीं ज्यादा भयानक था. ये अंधेरे रास्ते ही दुनिया में एकमात्र रास्ता थे जो उन्हें इंसानों का जीवन दे सकता थे. वे कैसे चले यह तो सिर्फ वही बता सकते हैं लेकिन जहां-जहां लोगों ने उनकी मदद के लिए उन्हें रुकवाया, कहते हैं उनकी आत्माएं आज भी वहां रहती हैं.
पकड़े जाने पर सजा के डर से कई गुलाम नहीं भी भागे लेकिन हर 5 में एक गुलाम ने आजादी पाने के लिए भागने का रास्ता अपनाया. इस तरह 5 लाख गुलाम सम्मिलित रूप से कनाडा या मैक्सिको भाग आए. यह 'अमेरिकन सिविल वार' से पहले की बात है जब यूएस में गुलामी प्रथा को मान्यता प्राप्त थी. वहां की सरकार राज्य विस्तार के लिए गुलामों को लड़ने या अन्य इस्तेमाल के लिए रखा करते थे. राज्य में उन्हें कोई नागरिक अधिकार प्राप्त नहीं थे, न ही उनकी मदद के लिए किसी तरह का कोई कानूनी संरक्षण था.
इससे भी बुरा था उनके लिए बना 'फ्यूगिटिव स्लेव एक्ट, 1850 जिसमें भगोड़े गुलाम और भागने में उनकी मदद करनेवालों के लिए कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान था. इसलिए 1830 से 1960 के बीच गुलामों ने सम्मिलित रूप से नॉर्थ कंट्रीज (अधिकांशत: कनाडा या मैक्सिको) भागने का प्लान बनाया क्योंकि यहां गुलामी प्रथा कानूनन अपराध थी. इसलिए पकड़े जाने पर यहां वे अपने मालिक के पास दुबारा जाने के लिए बाध्य नहीं किए जा सकते थे.
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शुक्रवार, 6 मार्च 2015
सालों से ये रूहें अपनी मौत की वजह तलाश रही हैं....पढ़िए सैंकड़ों लोगों की मौत की दर्दनाक कहानी
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