आषाढ़ मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी
एकादशी कहा जाता है। सोमवार (27 जुलाई 2015)
को देवशयनी एकादशी है। भगवान विष्णु इस दिन शयन के लिए चले जाते
हैं और चार मास बाद जागते हैं।
उस दिन को प्रबोधिनी एकादशी कहते हैं। 22 नवंबर
2015 (रविवार) को प्रबोधिनी एकादशी होगी।
देवशयनी एकादशी भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा
के पश्चात आती है। इसके बाद भगवान विष्णु 4 मास
तक शयन करते हैं।
क्या कहता है ज्योतिष
इस तिथि का दूसरा नाम पद्मनाभा भी है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सूर्य के मिथुन राशि में
प्रवेश पर इस एकादशी का आगमन होता है। इसी दिन
चातुर्मास की शुरुआत होती है। भगवान विष्णु
क्षीरसागर में शयन करते हैं और चार माह बाद जब
सूर्यदेव तुला राशि में आते हैं तो वे जागते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, चार मास तक
विष्णुजी पाताल में राजा बलि के द्वार निवास
करते हैं। चूंकि ये भगवान का शयन काल माना जाता
है इसलिए इस अवधि में विवाह, यज्ञ, गृहप्रवेश,
प्राण-प्रतिष्ठा, यज्ञोपवीत संस्कार और समस्त शुभ
कार्यों का प्रारंभ वर्जित माना जाता है।
ज्योतिष तथा चिकित्सा शास्त्र के अनुसार, इस
दौरान सूर्य व चंद्र का तेज पृथ्वी पर कम पहुंचता है,
जल की बहुलता होती है, शरीर में पित्त की अग्नि
मंद पड़ जाती है और वातावरण में अनेक जीव-जंतु
उत्पन्न हो जाते हैं। इस दौरान विभिन्न रोगों का
भी प्रकोप होता है।
एक अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार, देवशयनी
एकादशी को ही भगवान ने शंखासुर दैत्य का संहार
किया था। इसके बाद वे चार मास के लिए शयन करने
चले गए थे।
ऐसे करें देवशयनी एकादशी व्रत
एकादशी के दिन प्रातः दैनिक कार्यों से निवृत्त
होने के बाद घर में पवित्र जल का छिड़काव करें।
आराधना स्थल पर भगवान विष्णु की प्रतिमा
स्थापित करें। इसके बाद उसका षोडशोपचार सहित
पूजन-वंदन करें। भगवान का यथोचित शृंगार करें और
कथा सुनें।
कथा के पश्चात आरती करें और प्रसाद का वितरण
करें। पूजन संपन्न होने पर भगवान को श्वेत चद्दर-
वस्त्रादि से सज्जित शैया पर शयन कराएं।
इन वस्तुओं का करें त्याग
इस दिन व्यवहार में गुड़, तेल, पुष्प आदि का त्याग करें।
गुड़ मधुर स्वभाव के लिए, तेल दीर्घायु, शत्रुनाश,
सौभाग्य और वंशवृद्धि के लिए त्यागना चाहिए।
इसी प्रकार एकादशी के दिन शहद, दही, चावल,
बैंगन, मूली आदि का त्याग करना चाहिए। मांस-
मदिरा जैसे तामसी पदार्थों का कभी सेवन नहीं
करना चाहिए। ये चीजें व्रत के प्रभाव को समाप्त
कर देती हैं।
यहां निवास करते हैं सभी तीर्थ
इन चार महीनों में तपस्वी भ्रमण नहीं करते। वे एक ही
स्थान पर रहकर चातुर्मास करते हैं। इस अवधि में केवल
ब्रज की यात्रा की जा सकती है। पौराणिक
मान्यता के मुताबिक, चार महीनों में पृथ्वी के सभी
तीर्थ ब्रज में आकर निवास करते हैं।
हरी हरी ॐ🙏🙏🙏
एकादशी कहा जाता है। सोमवार (27 जुलाई 2015)
को देवशयनी एकादशी है। भगवान विष्णु इस दिन शयन के लिए चले जाते
हैं और चार मास बाद जागते हैं।
उस दिन को प्रबोधिनी एकादशी कहते हैं। 22 नवंबर
2015 (रविवार) को प्रबोधिनी एकादशी होगी।
देवशयनी एकादशी भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा
के पश्चात आती है। इसके बाद भगवान विष्णु 4 मास
तक शयन करते हैं।
क्या कहता है ज्योतिष
इस तिथि का दूसरा नाम पद्मनाभा भी है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सूर्य के मिथुन राशि में
प्रवेश पर इस एकादशी का आगमन होता है। इसी दिन
चातुर्मास की शुरुआत होती है। भगवान विष्णु
क्षीरसागर में शयन करते हैं और चार माह बाद जब
सूर्यदेव तुला राशि में आते हैं तो वे जागते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, चार मास तक
विष्णुजी पाताल में राजा बलि के द्वार निवास
करते हैं। चूंकि ये भगवान का शयन काल माना जाता
है इसलिए इस अवधि में विवाह, यज्ञ, गृहप्रवेश,
प्राण-प्रतिष्ठा, यज्ञोपवीत संस्कार और समस्त शुभ
कार्यों का प्रारंभ वर्जित माना जाता है।
ज्योतिष तथा चिकित्सा शास्त्र के अनुसार, इस
दौरान सूर्य व चंद्र का तेज पृथ्वी पर कम पहुंचता है,
जल की बहुलता होती है, शरीर में पित्त की अग्नि
मंद पड़ जाती है और वातावरण में अनेक जीव-जंतु
उत्पन्न हो जाते हैं। इस दौरान विभिन्न रोगों का
भी प्रकोप होता है।
एक अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार, देवशयनी
एकादशी को ही भगवान ने शंखासुर दैत्य का संहार
किया था। इसके बाद वे चार मास के लिए शयन करने
चले गए थे।
ऐसे करें देवशयनी एकादशी व्रत
एकादशी के दिन प्रातः दैनिक कार्यों से निवृत्त
होने के बाद घर में पवित्र जल का छिड़काव करें।
आराधना स्थल पर भगवान विष्णु की प्रतिमा
स्थापित करें। इसके बाद उसका षोडशोपचार सहित
पूजन-वंदन करें। भगवान का यथोचित शृंगार करें और
कथा सुनें।
कथा के पश्चात आरती करें और प्रसाद का वितरण
करें। पूजन संपन्न होने पर भगवान को श्वेत चद्दर-
वस्त्रादि से सज्जित शैया पर शयन कराएं।
इन वस्तुओं का करें त्याग
इस दिन व्यवहार में गुड़, तेल, पुष्प आदि का त्याग करें।
गुड़ मधुर स्वभाव के लिए, तेल दीर्घायु, शत्रुनाश,
सौभाग्य और वंशवृद्धि के लिए त्यागना चाहिए।
इसी प्रकार एकादशी के दिन शहद, दही, चावल,
बैंगन, मूली आदि का त्याग करना चाहिए। मांस-
मदिरा जैसे तामसी पदार्थों का कभी सेवन नहीं
करना चाहिए। ये चीजें व्रत के प्रभाव को समाप्त
कर देती हैं।
यहां निवास करते हैं सभी तीर्थ
इन चार महीनों में तपस्वी भ्रमण नहीं करते। वे एक ही
स्थान पर रहकर चातुर्मास करते हैं। इस अवधि में केवल
ब्रज की यात्रा की जा सकती है। पौराणिक
मान्यता के मुताबिक, चार महीनों में पृथ्वी के सभी
तीर्थ ब्रज में आकर निवास करते हैं।
हरी हरी ॐ🙏🙏🙏
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