Translate

गुरुवार, 14 अप्रैल 2016

Story

सोचिये अगर केवल संगति से ही सारी अच्छाइयां आ जातीं तो गन्ने के साथ साथ उगने वाले पौधों में भी मीठा रस क्यों नहीं होता??

केवल अच्छी संगति रखने से ही कोई व्यक्ति विद्वान या साधु नहीं बन जाता। संगत से सकारात्मक बातें सीखकर उन्हें अपने जीवन में व्यावहारिक रूप से उतारने पर ही संगत की सार्थकता होगी अन्यथा सब मरघटिया वैराग्य ही साबित होगा।

गन्ने ने खुद में धरती से रस खींचकर खुद को मीठा बना लेने की क्षमता विकसित कर ली हुई है इसलिये वह मीठा बन जाता है परन्तु उसके साथ ही उगनेवाली घास-फूस एवँ अन्य झाड़ियाँ रूखी ही रह जाती हैं….!! क्यूंकि वह उसके साथ रहकर भी उसकी अच्छाइयां नहीं सीख पायीं।

अच्छी संगति केवल आपके व्यवहार में बदलाव ला सकती है। असली काम तो आपको खुद ही करना होता है, आप अपने मन को एकाग्रचित करके अपने जीवन को नकारात्मकता से सकारात्मकता की ओर ले जा सकते हैं, नहीं तो आप के लिए अच्छी संगत का कोई तात्पर्य ही नहीं है- फिर तो आपने केवल प्रवचन को सुना है, गुणा नहीं है। यदि आप गुण लेते हो तो जीवन में गन्ने के रस से भी ज्यादा मिठास होगी, वरना कडवाहट की तो कोई कमी है ही नहीं।

तो दोस्तों अच्छी संगति रहना, अच्छी किताबें पढ़ना निश्चित ही आपकी सफलता में सहायक सिद्ध होगा लेकिन आपको इनसे मिली शिक्षा को अपने जीवन में उतारना होगा, तभी संगति का फायदा होगा!!!!!!

कोई टिप्पणी नहीं: