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बुधवार, 29 मई 2019

🌹🌹 *दिल को छूने वाली घटना* 🌹🌹

🌹🌹 *दिल को छूने वाली घटना* 🌹🌹

एक बुजुर्ग आदमी बुखार से ठिठुरता और भूखा प्यासा शिव मंदिर के बाहर बैठा था

तभी वहां पर नगर के सेठ अपनी सेठानी के साथ एक बहुत ही लंबी और मंहगी कार से उतरे

उनके पीछे उनके नौकरों की कतार थी

एक नौकर ने फल पकडे़ हुए थे
दूसरे नौकर ने फूल पकडे़ थे
तीसरे नौकर ने हीरे और ज़वाहरात के थाल पकडे़ हुए थे
चौथे नौकर ने पंडित जी को दान देने के लिए मलमल के 3 जोडी़ धोती कुरता पकडे़ हुए थे
और पांचवें नौकर ने मिठाईयों के थाल पकडे़ थे

पंडित जी ने उन्हें आता देखा तो दौड़ के उनके स्वागत के लिए बाहर आ गए

बोले आईये आईये सेठ जी, आपके यहां पधारने से तो हम धन्य हो गए

सेठ जी ने नौकरों से कहा जाऔ तुम सब अदंर जाके थाल रख दो

हम पूजा पाठ संपन्न करने के बाद भगवान शिव को सारी भेंट समरपित करेंगें

बाहर बैठा बुजुर्ग आदमी ये सब देख रहा था

उसने सेठ जी से कहा मालिक दो दिनों से भूखा हूं थोडी़ मिठाई और फल मुझे भी दे दो खाने को

सेठ जी ने उसकी बात को अनसुना कर दिया

बुजुर्ग आदमी ने फिर सेठानी से कहा, ओ मेम  साहब थोडा़ कुछ खाने को मुझे भी दे दो मुझे भूख से चक्कर आ रहे हैं

सेठानी चिढ़ के बोली बाबा, ये सारी भेटें को भगवान को चढानें के लिये हैं

तुम्हें नहीं दे सकते, अभी हम मंदिर के अंदर घुसे भी नहीं हैं और तुमने बीच में ही टोक लगा दी

सेठ जी गुस्से में बोले, लो पूजा से पहले ही टोक लग गई, पता नहीं अब पूजा ठीक से संपन्न होगी भी या नहीं

कितने भक्ती भाव से अंदर जाने कि सोच रहे थे, और इसने अरचन डाल दी

पंडित जी बोले शांत हो जाइये सेठ जी,इतना गुस्सा मत होईये

अरे क्या शांत हो जाइये पंडित जी
आपको पता पूरे शहर के सबसे महंगे फल और मिठाईयां हमने खरिदे थे प्रभु को चढानें के लिए

अभी चढायें भी नहीं और पहले ही अड़चन आ गई

सारा का सारा मूड ही खराब हो गया

अब बताओ भगवान को चढानें से पहले इसको दे दें क्या?

पंडित जी बोले अरे पागल है ये आदमी तो, आप इसके पीछे अपना मुड मत खराब करिये सेठ जी
चलिये आप अंदर चलिये, मैं इसको ठीक करता हूं
आप सेठानी जी के साथ अंदर जाईये

सेठ और सेठानी बुजुर्ग आदमी को कोसते हुये अंदर चले गये

पंडित जी बुजुर्ग आदमी के पास गए और बोले जा के कोने में बैठ जाओ, जब ये लोग चले जायेगें तब मैं तुम्हें कुछ खाने को दे जाऊंगा

बुजुर्ग आदमी आसूं बहाता हुआ कोने में बैठ गया

अंदर जाकर सेठ ने भगवान शिव को प्रणाम किया और जैसे ही आरती के लिए थाल लेकर आरती करने लगे

तो आरती का थाल उनके हाथ से छूट के नीचे गिर गया

वो हैरान रह गए

पर पंडित जी दूसरा आरती का थाल ले आये

जब पूजा समपंन हुई तो सेठ जी ने थाल मंगवाई भगवान को भेंट चढानें को

पर जैसे ही भेंट चढानें लगे वैसे ही तेज़ भूकंप आना शुरू हो गया

और सारे के सारे थाल ज़मीन पर गिर गए

सेठ जी थाल उठाने लगे, जैसे ही उन्होंने थाल ज़मीन से उठाना चाहा तो अचानक उनके दोनों हाथ टेडे़ हो गए

मानो हाथों को लखवा मार गया हो

ये देखते ही सेठानी फूट फूट कर रोने लगी

बोली पंडित जी देखा आपने, मुझे लगता है उस बाहर बैठे बूढें से नाराज़ होकर ही भगवान ने हमें दंड दिया है

उसी बूढे़ की अड़चन डालने की वजह से भगवान हमसे नाराज़ हो गए

सेठ जी बोले हां उसी की टोक लगाने की वजह से भगवान ने हमारी पूजा स्वीकार  नहीं की

सेठानी बोली, क्या हो गया है इनके दोनों हाथों
को, अचानक से हाथों को लखवा कैसे मार गया

इनके हाथ टेडे़ कैसे हो गए, अब क्या करूं मैं
ज़ोर जो़र से रोने लगी

पंडित जी हाथ जोड़ के सेठ और सेठानी से बोले

माफ करना एक बात बोलूं आप दोनों से

भगवान उस बुजुर्ग आदमी से नाराज़ नहीं हुए हैं

बलकी आप दोनों से रूष्ट होकर भगवान आपको ये दण्ड  दिया है

सेठानी बोली पर हमने क्या किया है

पंडित जी बोले क्या किया है आपने

मैं आपको बताता हूं

आप इतने महंगे उपहार लेके आये भगवान को चढानें के लिये

पर ये आपने नहीं सोचा के हर इंसान के अंदर भगवान बसते हैं

आप अंदर भगवान की मूर्ति पर भेंट चढ़ाना चाहते थे

पर यहां तो खुद उस बुजुर्ग आदमी के रूप में भगवान आपसे प्रसाद ग्रहण करने आये थे

उसी को अगर आपने खुश होकर कुछ खाने को दे दिया होता
तो आपके उपहार भगवान तक खुद ही पहुंच जाते

किसी गरीब को खिलाना तो स्वयं ईश्वर को भोजन कराने के सामान होता है

आपने उसका तरिस्कार कर दिया तो फिर ईश्वर आपकी भेंट कैसे स्वीकार  कर सकते थे़......

सब जानते है के श्री कृष्ण को सुदामा के प्रेम से चढा़ये एक मुटठी चावल सबसे ज़्यादा प्यारे प्यारे थे

*अरे भगवान जो पूरी दुनिया के स्वामी है, जो सबको सबकुछ देने वाले हैं, उन्हें हमारे किमती उपहार क्या करने हैं*
*वो तो प्यार से चढा़ये एक फूल, प्यार से चढा़ये एक बेल पत्र से ही खुश हो जाते हैं*
*उन्हें मंहगें फल और मिठाईयां चढा़ के उन के ऊपर ऐहसान करने की हमें कोइ आवश्यकता नहीं है*
*इससे अचछा तो किसी गरीब को कुछ खिला दिजिये,ईश्वर खुद ही खुश होकर आपकी झोली खुशियों से भर देगें*

*और हां, अगर किसी मांगने वाले को कुछ दे नहीं सकते तो उसका अपमान भी मत किजिए*
*कयोकिं वो अपनी मरजी़ से गरीब नहीं बना है*
*और कहते हैं ना के ईश्वर की लीला बडी़ न्यारी होती है, वो कब किसी भिखारी को राजा बना दें, और कब किसी राजा को भिखारी बना दें कोई नहीं कह सकता*

Deshpriya....

रविवार, 26 मई 2019

जाने सैनिक से बाबा बने हरभजन सिंह के बारे में


सिक्किम से सटी भारत-चीन सीमा पर एक सैनिक ऐसा भी है जो मौत के 48 साल बीत जाने के बाद आज भी सरहद की रक्षा कर रहा है।  जी हां, सुनने में बात ज़रूर हैरत में डालने वाली है लेकिन यह सच है।  

चौंकाने वाली बात तो यह है कि इस मृत सैनिक की याद में एक मंदिर भी बनाया गया है जो लोगों के लिए आस्था का केंद्र बन गया है और यहां रोज़ाना बड़ी संख्या में लोग इनके दर्शन के लिए दूर-दूर से पहुंचते हैं।  

यहां बात हो रही है सिक्किम की राजधानी गंगटोक में जेलेप्ला दर्रे और नाथुला दर्रे के बीच बने 'बाबा हरभजन सिंह' मंदिर की। लगभग 13 हज़ार फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर में बाबा हरभजन सिंह की एक फोटो और उनका सामान रखा हुआ है।



दरअसल, बाबा हरभजन सिंह कोई साधू-महात्मा नहीं थे जिनपर यहां मंदिर बनाया गया है, बल्कि हरभजन सिंह भारतीय सेना के जवान हुआ करते थे जिनकी एक हादसे में मौत हो गई थी।  

3 अगस्त, 1941 को पंजाब के कपूरथला में जन्मे इस सिपाही की मौत 11 सितम्बर,1968 को हुई थी।  माना जाता है कि यह सैनिक यह जांबाज़ सैनिक अपनी मौत के बाद आज भी देश की सरहद की रक्षा कर रहा है। इस सिपाही को अब लोग 'कैप्टन बाबा हरभजन सिंह' के नाम से पुकारते हैं। 

जानकारी के मुताबिक़ हरभजन सिंह की मौत नाथूला दर्रे में गहरी खाई में गिरने से हो गई थी। मान्यता है कि तब से लेकर आज तक यह सिपाही किसी न किसी तरह से सरहद की रक्षा कर रहा है। 

ख़ास बात यह है कि मान्यता अब इतनी बढ़ गई है कि भारत ही नहीं बल्कि चीन के सैनिक भी इस बात को मानते हैं कि सरहद पर एक ऐसा सैनिक है जो मौत के बाद भी यहां गश्त कर रखवाली करता है।  बताया यह भी जाता है कि चीनी सैनिकों ने बाकायदा हरभजन सिंह को मरने के बाद घोड़े पर सवार होकर सरहदों की गश्त करते हुए देखा है।



जाने सैनिक से बाबा बने हरभजन सिंह के बारे में 
कपूरथला में जन्मे हरभजन सिंह ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा गांव में रहकर ही हासिल की थी। मार्च 1955 में उन्होंने डीएवी हाई स्कूल, पट्टी से दसवीं कक्षा पास की। जून, 1956 में हरभजन सिंह ने अमृतसर में बतौर सैनिक दाखिल हुए और सिग्नल कोर में शामिल हो गए। 

30 जून,1965 को उन्हें एक कमीशन प्रदान की गई और वे '14 राजपूत रेजिमेंट' में तैनात हुए। वर्ष 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में उन्होंने अपनी यूनिट के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किया। इसके बाद उनका स्थानांतरण '18 राजपूत रेजिमेंट' के लिए हो गया।



ऐसे हुआ मौत से मिलन 
वर्ष 1968 में कैप्टन हरभजन सिंह '23वीं पंजाब रेजिमेंट' के साथ पूर्वी सिक्किम में तैनात थे। 4 अक्टूबर, 1968 को खच्चरों का एक काफिला लेकर वे पूर्वी सिक्किम के तुकुला से डोंगचुई की ओर जा रहे थे। इसी दौरान पांव फिसलने के कारण एक नाले में गिरने से उनकी मौत हो गई। 

पानी का तेज बहाव होने के कारण उनका पार्थिव शरीर बहकर घटना स्थल से करीब दो किलोमीटर की दूरी पर जा पहुंचा। जब भारतीय सेना ने बाबा हरभजन सिंह की खोज-खबर लेनी शुरू की गई, तो तीन दिन बाद उनका पार्थिव शरीर मिला।

ये है मान्यता 
ऐसी मान्यता है कि हरभजन सिंह ने अपने साथी सिपाही प्रीतम सिंह को सपने में आकर अपनी मौत की जानकारी दी और बताया कि उनका शव कहां पड़ा है। उन्होंने प्रीतम सिंह से उनकी समाधि बनाये जाने की भी इच्छा ज़ाहिर की। 

पहले प्रीतम सिंह की बात का किसी ने विश्वास नहीं किया, लेकिन जब उनका शव उसी स्थल पर मिला, जहां उन्होंने बताया था तो सेना के अधिकारियों को उनकी बात पर विश्वास हो गया। सेना के अधिकारियों ने उनकी 'छोक्या छो' नामक स्थान पर समाधि बनवाई।




मृत्युपरांत बाबा हरभजन सिंह अपने साथियों को नाथुला के आस-पास चीन की सैनिक गतिविधियों की जानकारी सपनों में देते, जो हमेशा सत्य होती थी। तभी से बाबा हरभजन सिंह का मृत शरीर भारतीय सेना की सेवा कर रहा है और इसी तथ्य के मद्देनज़र उनको मृत्युपरांत शरीर भारतीय सेना की सेवा में रखा गया है। 



उनकी समाधि को 9 किलोमीटर नीचे नवम्बर, 1982 को भारतीय सेना के द्वारा बनवाया गया। मान्यता यह है कि यहां रखे पानी की बोतल में चमत्कारिक गुण आ जाते हैं और इसका 21 दिन सेवन करने से श्रद्धालु अपने रोगों से छुटकारा पा जाते है।

आज भी करते हैं देशसेवा
बीते 48 सालों में बाबा हरभजन सिंह की पदोन्नति सिपाही से कैप्टन की हो गई है। आस्था का आलम ये है कि जब भी भारत-चीन की सैन्य बैठक नाथुला में होती है तो उनके लिए एक खाली कुर्सी रखी जाती है। इसी आस्था के चलते भारतीय सेना उनको सेवारत मानते हुए हर साल 15 सितम्बर से 15 नवम्बर तक की छुट्टी मंजूर करती है और बड़ी श्रद्धा के साथ स्थानीय लोग एवं सैनिक एक जुलुस के रूप में उनकी वर्दी, टोपी, जूते एवं साल भर का वेतन, दो सैनिकों के साथ, सैनिक गाड़ी में नाथुला से न्यू जलपाईगुड़ी रेलवे स्टेशन तक लाते हैं। 



वहां से डिब्रूगढ़-अमृतसर एक्सप्रेस से उन्हें जालंधर (पंजाब) लाया जाता है। यहां से सेना की गाड़ी उन्हें गांव में उनके घर तक छोडऩे जाती है। वहां सब कुछ उनकी माता जी को सौंप दिया जाता है। फिर उसी ट्रेन से उसी आस्था एवं सम्मान के साथ उनको समाधि स्थल, नाथुला लाया जाता है।

कुछ लोग इस आयोजान को अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाला मानते थे, इसलिए उन्होंने अदालत का दरवाज़ा खटखटाया, क्योंकि सेना में किसी भी प्रकार के अंधविश्वास की मनाही होती है। लिहाज़ा सेना ने बाबा हरभजन सिंह को छुट्टी पर भेजना बंद कर दिया। 



अब बाबा साल के बारह महीने ड्यूटी पर रहते है। मंदिर में बाबा का एक कमरा भी है, जिसमे बाकायदा हर रोज़ सफाई करके बिस्तर लगाया जाता है। 

बाबा की सेना की वर्दी और जूते रखे जाते हैं। कहा तो यहां तक ये भी जाता है कि रोज़ाना साफ़-सफाई होने के बाद भी उनके जूतों में कीचड़ और चद्दर पर सलवटे पाई जाती हैं।

शुक्रवार, 24 मई 2019

✨जीत पक्की है✨

✨जीत पक्की है✨
कुछ करना है, तो डटकर चल,
थोड़ा दुनियां से हटकर चल,
लीक पर तो सभी चल लेते है,
कभी इतिहास को पलटकर चल,
बिना काम के मुकाम कैसा ?
बिना मेहनत के, दाम कैसा ?
जब तक ना हाँसिल हो मंज़िल
तो राह में, राही आराम कैसा ?
अर्जुन सा, निशाना रख, मन में,
ना कोई बहाना रख !
लक्ष्य सामने है, बस उसी पे अपना ठिकाना रख !!
सोच मत, साकार कर,
अपने कर्मो से प्यार कर !
मिलेगा तेरी मेहनत का फल,
किसी ओर का ना इंतज़ार कर !!
जो चले थे अकेले उनके पीछे आज मेले है ...
जो करते रहे इंतज़ार उनकी
जिंदगी में आज भी झमेले है। 

एक 60 वर्षीय महिला ने अचानक ही मंदिर जान

एक 60 वर्षीय महिला ने अचानक ही मंदिर जाना छोड़कर स्विमिंग सीखने जाना शुरू कर दिया !

किसी ने कारण पूछा तो महिला ने बताया कि

अक्सर मेरे बेटे और बहू का झगड़ा होता रहता है
और बहू हमेशा पूछती रहती है कि
अगर तुम्हारी माँ और मैं दोनो पानी में डूब रहे हों तो
तुम पहले किसे बचाओगे !

मैं अपने बेटे को किसी धर्मसंकट में नही डालना चाहती
इसीलिये मैंने स्विमिंग सीख ली !

कुछ दिनों बाद फिर से पति-पत्नी के बीच झगड़ा हुआ
और पत्नी ने फिर वही बात पूछी कि
अगर तुम्हारी माँ और मैं डूब रहे होंगे तो
तुम किसे पहले बचाओगे ?

पति ने जवाब दिया
मुझे पानी में उतरने की जरूरत ही नही पड़ेगी
क्योंकि मेरी माँ ने स्विमिंग सीख ली है,
वो तुम्हे बचा लेगी !

पत्नी ने हार नही मानी
और बोली नही-नही तुम्हे पानी में कूदकर
हम दोनों में से किसी एक को तो बचाना ही पड़ेगा !

पति ने जवाब दिया
फिर तो पक्का तुम ही डूबोगी

क्योंकि मुझे तो तैरना आता नही
और मेरी माँ
हम दोनों में से 100% मुझे ही बचायेगी !
😁😂🤣😜😛 

मंगलवार, 21 मई 2019

तरूण सागर जी महाराज के कहे कुछ पंक्तियों के अँश

तरूण सागर जी महाराज के कहे कुछ पंक्तियों के अँश

‬: सफलता के 20  मँत्र " 👏
👏1.खुद की कमाई  से कम
          खर्च हो ऐसी जिन्दगी
          बनाओ..!
👏2. दिन  मेँ कम  से कम
           3 लोगो की प्रशंसा करो..!
👏3. खुद की भुल स्वीकारने
         biेँ कभी भी संकोच मत
           करो..!
👏4. किसी  के सपनो पर  हँसो
           मत..!
👏5. आपके पीछे खडे व्यक्ति
           को भी कभी कभी आगे
           जाने का मौका दो..!
👏6. रोज हो सके तो सुरज को
           उगता हुए देखे..!
👏7. खुब जरुरी हो तभी कोई
          चीज उधार लो..!
👏8. किसी के पास  से  कुछ
           जानना हो तो विवेक  से
           दो बार...पुछो..!
👏9. कर्ज और शत्रु को कभी
           बडा मत होने दो..!
👏10. ईश्वर पर पुरा भरोसा
             रखो..!
👏11. प्रार्थना करना कभी
             मत भुलो,प्रार्थना मेँ
             अपार शक्ति होती है..!
👏12. अपने काम  से मतलब
             रखो..!
👏13. समय सबसे ज्यादा
             कीमती है, इसको फालतु
             कामो  मेँ खर्च मत करो..
👏14. जो आपके पास है, उसी
             मेँ खुश रहना सिखो..!
👏15. बुराई कभी भी किसी कि
             भी मत करो,
             क्योकिँ  बुराई नाव  मेँ
             छेद समान  है,बुराई
             छोटी हो बडी नाव तो
             डुबो ही देती  है..!
👏16. हमेशा सकारात्मक सोच
             रखो..!
👏17. हर व्यक्ति एक हुनर
             लेकर  पैदा होता है बस
             उस हुनर को दुनिया के
             सामने लाओ..!
👏18. कोई काम छोटा नही
             होता हर काम बडा होता
             है जैसे कि सोचो जो
             काम आप कर रहे हो
             अगर वह काम
             आप नही करते हो तो
             दुनिया पर क्या असर
             होता..?
👏19. सफलता उनको ही
             मिलती  है जो कुछ
             करते  है
👏20. कुछ पाने के लिए कुछ
             खोना नही बल्कि  कुछ
             करना पडता है....!

आप इस मंत्र को भेजीये,
क्यों की   ज्ञ।न
बाँटने से बढ़ाता है 

वाह रे मानव तेरा स्वभाव

वाह रे मानव तेरा स्वभाव....

।। लाश को हाथ लगाता है तो नहाता है ...

पर बेजुबान जीव को मार के खाता है ।।
😊😊😊😊😊😊
यह मंदिर-मस्ज़िद भी क्या गजब की जगह है दोस्तो.
जंहा गरीब बाहर और अमीर अंदर 'भीख' मांगता है..
😔विचित्र दुनिया का कठोर सत्य..👌👌
😊😊😊😊😊😊

      
बारात मे दुल्हे सबसे पीछे
      और दुनिया  आगे चलती है
मय्यत मे जनाजा आगे
        और दुनिया पीछे चलती है..

           यानि दुनिया खुशी मे आगे
          और दुख मे पीछे हो जाती है..!

😊😊😊😊😊😊😊

अजब तेरी दुनिया
गज़ब तेरा खेल

मोमबत्ती जलाकर मुर्दों को याद करना
और मोमबत्ती बुझाकर जन्मदिन मनाना...
Wah re duniya !!!!!

✴ लाइन छोटी है,पर मतलब बहुत बड़ा है ~

उम्र भर उठाया बोझ उस कील ने ...

और लोग तारीफ़ तस्वीर की करते रहे ..
〰〰〰〰〰〰
😊😊😊😊😊😊😊

✴  पायल हज़ारो रूपये में आती है, पर पैरो में पहनी जाती है

और.....

बिंदी 1 रूपये में आती है मगर माथे पर सजाई जाती है

इसलिए कीमत मायने नहीं रखती उसका कृत्य मायने रखता हैं.
😊😊😊😊😊😊😊
〰〰〰〰〰〰

✴  एक किताबघर में पड़ी गीता और कुरान आपस में कभी नहीं लड़ते,

और

जो उनके लिए लड़ते हैं वो कभी उन दोनों को नहीं पढ़ते....

😊😊😊😊😊😊😊😊
〰〰〰〰〰〰〰〰

✴  नमक की तरह कड़वा ज्ञान देने वाला ही सच्चा मित्र होता है,

मिठी बात करने वाले तो चापलुस भी होते है।

इतिहास गवाह है की आज तक कभी नमक में कीड़े नहीं पड़े।

और मिठाई में तो अक़्सर कीड़े पड़ जाया करते है...

😊😊😊😊😊😊😊😊
〰〰〰〰〰〰〰
✴  अच्छे मार्ग पर कोई व्यक्ति नही जाता पर बुरे मार्ग पर सभी जाते है......

*इसीलिये दारू बेचने वाला कहीं नही जाता ,*

*पर दूध बेचने वाले को घर-घर
गली -गली,कोने- कोने जाना पड़ता है*

😊😊😊😊😊😊😊😊
〰〰〰〰〰〰〰〰

✴  दूध वाले से बार -बार पूछा जाता है कि पानी तो नही डाला ?

पर दारू मे खुद हाथो से पानी मिला-मिला कर पीते है ।
😊😊😊😊😊😊😊😊_________________________
👇Very nice line 👌
अजबच आहे ना
ज्या शाळेत शिकवलं जातं....
"भारत माझा देश आहे,
सारे भारतीय माझे..बांधव आहेत
तीच शाळा जातीचा दाखला
मागते..!!!!😜😄

इंसान की समझ सिर्फ इतनी हैं
कि उसे "जानवर" कहो तो
नाराज हो जाता हैं और
"शेर" कहो तो खुश हो जाता हैं!

😊😊😊😊😊😊😊😊 (by EasyClip)

एक अफ्रीकी पर्यटक ऐसे शहर मे आया जो शहर उधारी में डूबा हुआ था।

एक अफ्रीकी पर्यटक ऐसे शहर मे आया जो शहर उधारी में डूबा हुआ था।

पर्यटक ने 1000/- रुपया होटल (जिसमे छोटा सा रेस्टोरेंट भी था) के काउंटर पर रखे और कहा मैं जा रहा हूँ कमरा पसंद करने।

होटल का मालिक फ़ौरन भागा कसाई के पास और उसको 1000/- रुपया देकर मटन मीट का हिसाब चुकता कर लिया।

कसाई भागा गोट फार्म वाले के पास और जाकर बकरों का हिसाब पूरा कर लिया।

गोट फार्म वाला भागा बकरों के चारे वाले के पास और चारे के खाते में 1000/-रुपया कटवा आया।

चारे वाला गया उसी होटल पर। वो वहां कभी कभी उधार में रेस्टोरेंट मे खाना खाता था। 1000/- रुपया देके हिसाब चुकता किया।

पर्यटक वापस आया और यह कहकर अपना 1000/- रुपया ले गया कि उसे कोई रूम पसंद नहीं आया।

न किसी ने कुछ लिया
न किसी ने कुछ दिया

सबका हिसाब चुकता।

बताओ गड़बड़ कहाँ है ?

कहीं गड़बड़ नहीं है बल्कि यह सभी की गलतफहमी है कि रुपये हमारे है।

खाली हाथ आये थे,
खाली हाथ ही जाना है।

विचार करें और जीवन का आनंद लें। 

रविवार, 19 मई 2019

ब्रम्हकपाल में पिंडदान का फल :----

ब्रम्हकपाल में पिंडदान का फल :----
भारत में एक ऐसा तीर्थ है जहां पर पिंडदान करने का फल गया से आठ गुणा आधिक प्राप्त होता है। कहा जाता है कि यहां पर भोलेनाथ को ब्रह्महत्या से मुक्ति मिली थी। यह स्थान उत्तराखंड के बदरीनाथ के पास स्थित है। जिसे ब्रह्मकपाल के नाम से जाना जाता है। इसके विषय में मान्यता है कि यहां पर पितरों का पिंडदान करने से उन्हें नर्क से मुक्ति मिलती है। स्कंद पुराण में भी ब्रह्मकपाल को गया से आठ गुणा अधिक फलदायी पितर कारक तीर्थ कहा गया है।
कहा जाता है कि सृष्टि उत्पति के समय भगवान ब्रह्मा मां सरस्वति के स्वरूप पर मोहित हो गए थे। भोलेनाथ ने क्रोधित होकर उनका एक सिर अपने त्रिशूल से काट दिया था। ब्रह्म हत्या के कारण उनका सिर त्रिशूल पर ही चिपका रह गया। इस पाप से मुक्ति हेतु भोलेनाथ पृथ्वी लोक गए। बद्रीनाथ से 500 मीटर की दूरी पर उनके त्रिशूल से ब्रह्मा का सिर धरती पर गिर गया। तभी से यह स्थान ब्रह्मकपाल के नाम से प्रसिद्ध हुआ। भगवान शिव ने इस स्थान को वरदान दिया कि जो भी व्यक्ति इस स्थान पर श्राद्ध करेगा, उसे प्रेत योनि से मुक्ति मिलेगी। उनकी कई पीढ़ियों के पितरों को भी मुक्ति मिल जाएगी।
महाभारत में कई लोगों की मृत्यु हुई थी। उनका अच्छे से अंतिम संस्कार भी नहीं हुआ था। उनकी अतृप्त आत्माअों को संतुष्ट करना जरुरी था इसलिए श्रीकृष्ण ने पांडवों को ब्रह्मकपाल में पितरों का श्राद करने को कहा। पांडवों ने श्रीकृष्ण की बात मानकर ब्रह्मकपाल में आकर श्राद्ध किया। जिससे अकाल मृत्यु के कारण प्रेत योनि में गए पितरों को मुक्ति मिल गई।
पुराणों में वर्णन है कि उत्तराखंड की धरती पर भगवान बद्रीनाथ के चरणों में ब्रह्मकपाल बसा है। यहां पर अलकनंदा नदी बहती है। कहा जाता है कि जिस व्यक्ति की अकाल मृत्यु होती है, उसकी आत्मा भटकती रहती है। ब्रह्मकपाल में उनका श्राद करने से आत्मा को शीघ्र शांति अौर प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है। (by EasyClip)

ब्रम्हकपाल में पिंडदान का फल :----

ब्रम्हकपाल में पिंडदान का फल :----
भारत में एक ऐसा तीर्थ है जहां पर पिंडदान करने का फल गया से आठ गुणा आधिक प्राप्त होता है। कहा जाता है कि यहां पर भोलेनाथ को ब्रह्महत्या से मुक्ति मिली थी। यह स्थान उत्तराखंड के बदरीनाथ के पास स्थित है। जिसे ब्रह्मकपाल के नाम से जाना जाता है। इसके विषय में मान्यता है कि यहां पर पितरों का पिंडदान करने से उन्हें नर्क से मुक्ति मिलती है। स्कंद पुराण में भी ब्रह्मकपाल को गया से आठ गुणा अधिक फलदायी पितर कारक तीर्थ कहा गया है।
कहा जाता है कि सृष्टि उत्पति के समय भगवान ब्रह्मा मां सरस्वति के स्वरूप पर मोहित हो गए थे। भोलेनाथ ने क्रोधित होकर उनका एक सिर अपने त्रिशूल से काट दिया था। ब्रह्म हत्या के कारण उनका सिर त्रिशूल पर ही चिपका रह गया। इस पाप से मुक्ति हेतु भोलेनाथ पृथ्वी लोक गए। बद्रीनाथ से 500 मीटर की दूरी पर उनके त्रिशूल से ब्रह्मा का सिर धरती पर गिर गया। तभी से यह स्थान ब्रह्मकपाल के नाम से प्रसिद्ध हुआ। भगवान शिव ने इस स्थान को वरदान दिया कि जो भी व्यक्ति इस स्थान पर श्राद्ध करेगा, उसे प्रेत योनि से मुक्ति मिलेगी। उनकी कई पीढ़ियों के पितरों को भी मुक्ति मिल जाएगी।
महाभारत में कई लोगों की मृत्यु हुई थी। उनका अच्छे से अंतिम संस्कार भी नहीं हुआ था। उनकी अतृप्त आत्माअों को संतुष्ट करना जरुरी था इसलिए श्रीकृष्ण ने पांडवों को ब्रह्मकपाल में पितरों का श्राद करने को कहा। पांडवों ने श्रीकृष्ण की बात मानकर ब्रह्मकपाल में आकर श्राद्ध किया। जिससे अकाल मृत्यु के कारण प्रेत योनि में गए पितरों को मुक्ति मिल गई।
पुराणों में वर्णन है कि उत्तराखंड की धरती पर भगवान बद्रीनाथ के चरणों में ब्रह्मकपाल बसा है। यहां पर अलकनंदा नदी बहती है। कहा जाता है कि जिस व्यक्ति की अकाल मृत्यु होती है, उसकी आत्मा भटकती रहती है। ब्रह्मकपाल में उनका श्राद करने से आत्मा को शीघ्र शांति अौर प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है। (by EasyClip)

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*50 वर्ष से अधिक उम्र वाले इस सन्देश को सावधानीपूर्वक पढ़ें, क्योंकि यह उनके आने वाले जीवन के लिए अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है।*👏👏👏

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*1* 🏠अपने स्वयं के स्थायी स्थान पर रहें ताकि स्वतंत्र जीवन bे का आनंद ले सकें!

*2* अपना बैंक बेलेंस और भौतिक अमूल्य संपत्ति सदा अपने पास रखें! 💵

*3* अपने बच्चों के इस वादे पर निर्भर ना रहें कि वो वृद्धावस्था में आपकी सेवा करेंगे, क्योंकि समय बदलने के साथ उनकी प्राथमिकता भी बदल जाती है! 👬

*4*👥 उन लोगों को अपने मित्र समूह में शामिल करें जो आपके जीवन को प्रसन्न देखना चाहते हैं! 🙏

*5* 🙌किसी के साथ अपनी तुलना ना करें और ना ही किसी से कोई उम्मीद रखें!

*6* 👫अपनी संतानों के जीवन में दखल अन्दाजी ना करें, उन्हें अपने तरीके से अपना जीवन जीने दें और आप अपने तरीके से अपना जीवन जीएँ!

*7* 👳अपनी वृद्धावस्था को आधार बनाकर किसी से सेवा करवाने, सम्मान पाने का प्रयास ना करें।

*8* 🖐लोगों की बातें सुनें लेकिन अपने स्वतंत्र विचारों के आधार पर निर्णय लें।

*9*👏 प्रार्थना करें लेकिन भीख ना मांगे, यहाँ तक कि भगवान से भी नहीं। अगर भगवान से कुछ मांगे तो सिर्फ माफ़ी या हिम्मत! सबकुछ दिया ईश्वर का ही है और वह आपका सच्चा सहायक है।

*10* 💪अपने स्वास्थ्य का स्वयं ध्यान रखें, चिकित्सीय परीक्षण के अलावा अपने आर्थिक सामर्थ्य अनुसार अच्छा पौष्टिक भोजन खाएं और यथा सम्भव अपना काम अपने हाथों से स्वयं करें!

*11* 😎अपने जीवन से कभी थकें नहीं हमेशा प्रसन्न रहे!   

*12* 💏प्रति वर्ष अपने जीवन के साथी के साथ भ्रमण/ यात्रा पर एक या अधिक बार अवश्य जाएं,  इससे आपका जीने का नजरिया बदलेगा!

*13**  😖किसी भी टकराव को टालें एवं तनाव रहित जीवन जिऐं!
  
*14** 😫 जीवन में स्थायी कुछ भी नहीं है चिंताएं भी नहीं इस बात का विश्वास करें !

*15* 😃 अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को यथासंभव रिटायरमेंट से पहले पूरा कर लें, याद रखें जब तक आप जीना शुरू नहीं करते हैं तब तक आप जीवित नहीं हैं!

😀खुशनुमा जीवन की शुभकामनाओं के साथ आपका शुभाकॉंक्षी:

🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏 

भक्त धन्ना जाट

भक्त धन्ना जाट

धन्ना जाट एक ग्रामीण किसान का सीधा-सादा लड़का था। गाँव में आये हुए किसी पण्डित से भागवत की कथा सुनी थी। पण्डित जब सप्ताह पूरी करके, गाँव से दक्षिणा, माल-सामग्री लेकर घोड़े पर रवाना हो रहे थे तब धन्ना जाट ने घोड़े पर बैठे हुए पण्डित जी के पैर पकड़ेः

"महाराज ! आपने कहा कि ठाकुरजी की पूजा करने वाले का बेड़ा पार हो जाता है। जो ठाकुरजी की सेवा-पूजा नहीं करता वह इन्सान नहीं हैवान है। गुरु महाराज ! आप तो जा रहे हैं। मुझे ठाकुरजी की पूजा की विधि बताते जाइये।"

"जैसे आये वैसे करना।"

"स्वामी ! मेरे पास ठाकुरजी नहीं हैं।"

"ले आना कहीं से।"

"मुझे पता नहीं ठाकुरजी कहाँ होते हैं, कैसे होते हैं। आपने ही कथा सुनायी। आप ही गुरु महाराज हैं। आप ही मुझे ठाकुरजी दे दो।"

पण्डित जान छुड़ाने में लगा था लेकिन धन्ना जाट अपनी श्रद्धा की दृढ़ता में अडिग रहा। आखिर उस भँगेड़ी पण्डित ने अपने झोले में से भाँग घोटने का सिलबट्टा निकालकर धन्ना को दे दियाः "ले यह ठाकुर जी। अब जा।"

"पूजा कैसे करूँ गुरुदेव ! यह तो बताओ !''

गुरु महाराज ने कहाः "नहाकर नहलैयो और खिलाकर खइयो। स्वयं स्नान करके फिर ठाकुरजी को स्नान कराना। पहले ठाकुरजी को खिलाकर फिर खाना। बस इतनी ही पूजा है।"

धन्ना जाट ने सिलबट्टा ले जाकर घर में प्रस्थापित किया लेकिन उसकी नजरों में वह सिलबट्टा नहीं था। उसकी बुद्धि में वह साक्षात ठाकुर जी थे। पहले स्वयं स्नान किया। फिर भगवान को स्नान कराया। अब पहले उनको खिलाकर फिर खाना है। विधवा माई का लड़का। बाप मर चुका था। छोटा-सा खेत। उसमें जो मिले उसी से आजीविका चलानी थी। रोज एक रोटी हिस्से में आती थी। बाजरे का टिक्कड़ और प्याज या चटनी। छप्पन भोग नहीं। ठाकुरजी के आगे थाली रखकर हाथ जोड़े और प्रार्थना कीः "प्रभु ! खाओ। फिर मैं खाऊँ। मुझे बहुत भूख लगी है।

अब वह सिलबट्टा ! मूर्ति भी नहीं खाती तो सिलबट्टा कहाँ से खाय? लेकिन धन्ना की बुद्धि में ऐसा नहीं था।

"ठाकुरजी ! वे पण्डित जी तो चले गये। उनके पास खीर खाने को मिलती थी तो खाते थे। मुझ गरीब की रोटी आप नहीं  खाते? आप दयालु हो। मेरी हालत जानते हो। फिर आप ऐसा क्यों करते हो? खाओ न ! आप शरमाते हो? अच्छा मैं आँखें बन्द कर लेता हूँ, खाओ।"

फिर आँख खोलकर धन्ना देखता है कि रोटी पड़ी है। खायी नहीं। धन्ना भूखा सो गया। गुरु महाराज ने कहा है कि खिलाकर खइयो। ठाकुरजी नहीं खाते तो हम कैसे खायें? एक दिन बीता। दूसरे दिन ताजी रोटी लाकर धरी। 'चलो, पहले दिन पण्डित जी का वियोग हुआ इसकी याद में नहीं खाया होगा। आज तो खाओ।' लेकिन धन्ना को निराश होना पड़ा। चार दिन ऐसे ही बीत गये।

धन्ना जाट के मन में बस गया कि ये ठाकुर जी हैं और रोटी नहीं खाते। कभी न कभी रोटी खायेंगे... खायेंगे। एकाग्रता ही हुई, और क्या हुआ?

चार-चार दिन बीत गये। ठाकुरजी ने तो खाया नहीं। धन्ना भूखा-प्यासा बैठा रहा। रोज ताजी रोटी लाकर ठाकुरजी को भोग लगाता रहा। पाँचवें दिन भी सूर्योदय हुआ और अस्त हो गया। छठा दिन भी ऐसे ही बीत गया।

सातवें दिन धन्ना आ गया अपने जाटपने पर। छः दिन की भूख-प्यास ने उसे विह्वल कर रखा था। प्रभु की विराग्नि ने हृदय के कल्मषों को जला दिया था। धन्ना अपनी एवं ठाकुरजी की भूख-प्यास बरदाश्त नहीं कर सका। वह फूट-फूटकर रोने लगा, पुकारने लगा, प्यार भरे उलाहने देने लगाः

"मैंने सुना था कि तुम दयालु हो लेकिन तुममें इतनी कठोरता, हे नाथ ! कैसे आयी? मेरे कारण तुम छः दिन से भूखे प्यासे हो ! क्या  गरीब हूँ इसलिए ? रूखी रोटी है इसलिए ? मुझे मनाना नहीं आता इसलिए ? अगर तुम्हें आना नहीं है तो मुझे जीना भी नहीं है।"

उठाया छुरा। शुद्ध भाव से, सच्चे हृदय से ज्यों अपनी बलि देने को उद्यत हुआ त्यों ही उस सिलबट्टे से तेजोमय प्रकाश-पुञ्ज प्रकट हुआ, धन्ना का हाथ पकड़ लिया और कहाः

"धन्ना ! देख मैं खा रहा हूँ।"

ठाकुरजी रोटी खा रहे हैं और धन्ना उन्हें निहार रहा है। फिर बोलाः "आधी मेरे लिए भी रखो। मैं भी भूखा हूँ।"

"तू दूसरी खा लेना।"

"माँ एक रोटी देती मेरे हिस्से की। दूसरी लूँगा तो वह भूखी रहेगी।"

"ज्यादा रोटी क्यों नहीं बनाते?"

"छोटा-सा खेत है। कैसे बनायें?"

"और किसी का खेत जोतने को लेकर खेती क्यों नहीं करते?"

"अकेला हूँ। थक जाता हूँ।"

"नौकर क्यों नहीं रख लेते?"

"पैसे नहीं हैं। बिना पैसे का नौकर मिले तो आधी रोटी खिलाऊँ और काम करवाऊँ।"

"बिना पैसे का नौकर तो मैं ही हूँ।"

प्रभु ने कहीं नहीं कहा कि आप मुझे धन अर्पण करो, गहने अर्पण करो, फल-फूल अर्पण करो, छप्पन भोग अर्पण करो। जब कहीं कुछ कहा तो यही कहा है कि मैं प्यार का भूखा हूँ। प्यार गरीब और धनी, पढ़ा हुआ और अनपढ़, मूर्ख और विद्वान, सब प्रभु को प्यार कर सकते हैं। प्रभु को प्यार करने में आप स्वतंत्र हैं। अमेरिका जाने में आप स्वतंत्र नहीं। वीजा की गुलामी करनी पड़ती है लेकिन आत्मदेव में जाने के लिए किसी वीजा की जरूरत नहीं। परमात्मा को प्यार करने में आप नितान्त स्वतंत्र हैं।

कथा कहती है कि धन्ना जाट के यहाँ ठाकुरजी साथी के रूप में काम करने लगे। जहाँ उनके चरण पड़े वहाँ खेत छनाछन, रिद्धि-सिद्धि हाजिर। कुछ ही समय में धन्ना ने खूब कमाया। दूसरा खेत लिया, तीसरा लिया, चौथा लिया। वह एक बड़ा जमींदार बन गया। घर के आँगन में दुधारू गाय-भैंसे बँधी थीं। सवारी के लिए श्रेष्ठ घोड़ा था।

दो-चार-पाँच साल के बाद वह पण्डित आया गाँव में तो धन्ना कहता हैः "गुरु महाराज ! तुम जो ठाकुरजी दे गये थे न ! वे छः दिन तो भूखे रहे। तुम्हारी चिन्ता में रोटी नहीं खायी। बाद में जब मैंने उनके समक्ष 'नहीं' हो जाने की तैयारी की तब रोटी खायी। पहले मैं गरीब था लेकिन अब ठाकुर जी की बड़ी कृपा है।"

पण्डित ने सोचा कि अनपढ़ छोकरा है, बेवकूफी की बात करता है। बोलाः "अच्छा.... अच्छा, जा। ठीक है।"

"ऐसा नहीं गुरु महाराज ! आज से आपको घी-दूध जो चाहिए वह मेरे यहाँ से आया करेगा। और.... एक दिन आपको मेरे यहाँ भोजन करने आना पड़ेगा।"

पण्डित ने लोगों से पूछा तो लोगों ने बताया किः "हाँ महाराज ! जरूर कुछ चमत्कार हुआ है। बड़ा जमींदार बन गया है। कहता है कि भगवान उसका काम करते हैं। कुछ भी हो लेकिन वह रंक से राय हो गया है।

पण्डित ने धन्ना से कहाः "जो तेरा काम कराने आते हैं उन ठाकुरजी को मेरे पास लाना। फिर तेरे घर चलेंगे।"

दूसरे दिन धन्ना ने ठाकुरजी से बात की तो ठाकुरजी ने बतायाः
"उसको अगर लाया तो मैं भाग जाऊँगा।"

पण्डित की एकाग्रता नहीं थी, तप नहीं था, प्रेम नहीं था, हृदय शुद्ध नहीं था। जरूरी नहीं की पण्डित होने के बाद हृदय शुद्ध हो जाय। राग और द्वेष हमारे चित्त को अशुद्ध करते हैं। निर्दोषता हमारे चित्त को शुद्ध करती है। शुद्ध चित्त चैतन्य का चमत्कार ले आता है। (by EasyClip)

|| सरस्वती वंदना ||

|| सरस्वती वंदना ||
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हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥

जग सिरमौर बनाएं भारत,
वह बल विक्रम दे। वह बल विक्रम दे॥

हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥

साहस शील हृदय में भर दे,
जीवन त्याग-तपोमर कर दे,
संयम सत्य स्नेह का वर दे,
स्वाभिमान भर दे। स्वाभिमान भर दे॥1॥

हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥

लव, कुश, ध्रुव, प्रहलाद बनें हम
मानवता का त्रास हरें हम,
सीता, सावित्री, दुर्गा मां,
फिर घर-घर भर दे। फिर घर-घर भर दे॥2॥

हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥ 

⚛️ ईश्वर क्या देखता है ⚛️

⚛️ ईश्वर क्या देखता है ⚛️
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शबरी के घर भगवान गए और उससे माँग-माँगकर जूठे बेर खाए, यह प्रसंग उन दिनों संतजनों में सर्वत्र चर्चा का विषय बना हुआ था। अशिक्षित नारी, साधना-विधान से अपरिचित रहने पर भी उसे इतना श्रेय क्यों मिला? हम लोग उस श्रेय-सम्मान से वंचित क्यों रहे?

मतंग ऋषि ने चर्चारत भक्तजनों से कहा, "हम लोग संयम और पूजन मात्र में अपनी सद्गति के लिए किए गये प्रयासों को भक्ति मान बैठे है। जबकि भगवान् की दृष्टि में सेवा-साधना की प्रमुखता है। शबरी ही है, जो रात-रात भर जागकर आश्रम से लेकर सरोवर तक कँटीला रास्ता साफ करती रही और सज्जनों का पथ-प्रशस्त करने के लिए अपना अविज्ञात, निरहंकारी भावभरा योगदान प्रस्तुत करती रही।"

भक्तजनों का समाधान हो गया, उन्होंने जाना कि भक्त और भगवान् की दृष्टि में अंतर क्या है। #awgp

|| जय श्री राम || 

शनिवार, 18 मई 2019

लहेरी+लखा+लखपति+लखेरा+लखारा+लखवारा+लक्ष्कार…जाति का इतिहास…

लहेरी+लखा+लखपति+लखेरा+लखारा+लखवारा+लक्ष्कार…जाति का इतिहास…

_______________________वंशों की उत्पत्ति...__________________

सृष्टि के रचयिता परमपिता परमेश्वर ने शेषशय्या पर अपनी नाभि से जल के ऊपर कमल के पुष्पो को पैदा किया। पुष्प में से तीन देव सतो गुण वाले विष्णु, रजो गुण वाले ब्रह्मा तथा तमोगुण वाले शंकर प्रकट हुए। सृष्टि का रचयिता ब्रह्मा को माना है। ब्रह्मा के प्रथम पुत्र मनु है। मनु के तीन पुत्रियां व दो पुत्र प्रियव्रत और उत्तानपाद हुए। ब्रह्मा के दूसरे पुत्र मरीचि हुए। मरीचि के पुत्र कश्यप के तेरह रानियां थी। इनमें से एक रानी के 88 हजार ऋषि हुए, इनमें से गौतम ऋषि से गहलोद वंश की उत्पत्ति मानी गई तथा दधीचि ऋषि से दाहिमा वंश की उत्पत्ति हुई। कश्यप की दूसरी रानी के सूर्य हुए। सूर्य से सूर्य वंश की उत्पत्ति हुई। सूर्य से दस गौत्र बने। ब्रह्मा के तीसरे पुत्र अत्रेय ऋषि थे, इनके तीन पुत्र हुए 1. दत्तात्रेय 2. चन्द्रमा 3. भृगु। दत्तात्रेय से दस गौत्र बने जो ऋषि वंश कहलाते है तथा चन्द्रमा से भी दस गौत्र बने जो चन्द्रवंशी कहलाते है। ब्रह्माजी के चौथे पु्त्र वशिष्ठजी ने अग्निकुण्ड बनाकर उसमें से अग्निदेव को प्रकट कर चार पुत्र पैदा किए, उनसे अग्नि वंश बना। इनके भी चार गौत्र बने जिनकी कई शाखाएं है।

कश्यप की तेरह रानियों में से ही एक के नाग वंश भी बने लेकिन राजा परीक्षित के भय से नागवंशी अपने नाम को त्यागकर अन्य नाम से बस गए। इस प्रकार मानव जाति में कुल चार वंश व छत्तीक गौत्र माने गए है। ऋषि महर्षियों ने कर्म की तुलना करके जाति बनाई है। बीस कर्म करने वाले को ब्राह्मण कहा जाने लगा। छ: कर्म करने वाले को क्षत्रिय माना गया। सेवा रूपी कार्य करने वाले को शूद्र माना गया। इस प्रकार चार वर्ण बने। ब्राह्मण एक होते हुए भी इनमे छन्यात है और इनमें भी कर्म के अनुसार 84 तरह के ब्राह्मण है। क्षत्रिय वंश में कई काम करने से कर्म जाति के अनुसार क्षत्रिय से छत्तीस जातियां बन गई तथा इनमें भी कई उपजातियां बन गई। आपकी जाति क्षत्रिय वंश से है। लेकिन लाक्ष कार्य करने से आपको लक्षकार, लखेरा या लखारा कहा जाने लगा। पांच हजार पीढियों से आपका यही नाम है। द्वापर में लाक्ष का कार्य करने वाले को लाक्षाकार कहते थे।

लक्षकार जाति की मूल उत्पत्ति राजस्थान से ही है। राजस्थान से लक्षकार बन्धु दूसरे प्रान्तों में जाकर अपनी जाति का नाम व गौत्र भी भूल गए है। लाख के कार्य को छोडकर दूसरा काम करने से अपनी जाति का नाम ही बदल दिया है। राजस्थान से बाहर के प्रान्तों में गए हुए लक्षकार यजमानों के यहां हम जाते है। जो क्षत्रिय वंश से लाख का कार्य करने वाले हिन्दू है जिनका गौत्र छत्तीस गौत्र व 52 खांप में मिलता है, वहीं हमारे यजमान व आपके स्वजातीय बंधु है। इस समय राजस्थान में दस रावजी है जो आपके समान पीढियों की लिखापढी करते है।
दस सूर्य दस चन्द्रमा, द्वादस ऋषि प्रमाण।
चार अग्नि वंश पैदा भया, गौत्र छत्ती्सो जाण।।

श्री लक्षकार समाज की उत्पत्ति का संक्षिप्त इतिहास (2)

त्रेता युग में शैलागढ नाम का एक नगर था। वहां पर पर्वतों के राजा हिमांचल राज्य करते थे। उनके पार्वती नाम की एक कन्या का जन्म हुआ। कन्या बडी सुशील, रूपवान और गुणवान थी। साक्षात शक्ति ने ही आकर हिमाचल के घर जन्म लिया। इनकी माता का नाम मेनका था। समय बीतने पर पिता हिमांचल को पार्वती के विवाह की चिन्ता हुई। वर की खोज के लिए सारे दूतों को चारों तरफ भेजा लेकिन उन्हें कोई उचित वर नही मिला, योग्य वर नही मिलने पर राजा हिमांचल को और भी चिंता सताने लगी और वे उदास रहने लगे। इसी समय देवर्षि नारद भ्रमण करते शैलागढ जा पहुंचे। राजा हिमांचल को मालूम होते ही वे सेवकों सहित नारद के पास जा पहुंचे और महल में पधारने के लिए राजा से स्वयं नारदजी से निवेदन किया। नारदजी के महलों में पहुंचने पर पार्वती व माता मेनका ने देवर्षि को प्रणाम किया। नारदजी ने पर्वतराज के चेहरे पर उदासी का कारण पूछा तो पर्वतराज ने पार्वती के लिए योग्य वर न मिलने की व्यथा प्रकट की। उसी समय पार्वती को बुलाकर नारदजी ने समाधि लगाई और पार्वती की हस्तरेखा देखी।

हस्तरेखा देखकर नारदजी ने महाराज हिमांचल को सांत्वना देकर कहा कि आपको चिन्ता करने की कोई आवश्यकता नही, पार्वती के योग्य वर कैलाश पर्वत पर रहने वाले पार्वती के जन्म जन्मांतर के पति शंकर भगवान होंगे। यह कहकर नारदजी अंतर्ध्यान हो गए। पार्वती ने शंकर भगवान की वररूप में प्राप्ति के लिए कई वर्षो तक कठोर तपस्या की। राजा हिमांचल ने दूतों के साथ कैलाश पर्वत पर शंकर भगवान के पास पार्वती के साथ विवाह करने का सन्देश भेजा। शंकर भगवान ने सोच समझकर हिमांचल को प्रस्ताव मान लिया व कैलाश पर्वत पर विवाह की तैयारियां की जाने लगी। इधर शैलागढ मे भी बडे जोर शोर से विवाह की तैयारियां होने लगी। शंकर के विवाह की बारात कैलाश पर्वत से चल पडी। बारात से सभी देवताओं सहित स्वयं ब्रह्म व विष्णु भी अपने वाहनों पर आरूढ होकर शैलागढ की ओर चल निकले। शंकर की बारात में उनके गण, ताल बेताल, भूत प्रेत चल रहे थे। स्वयं शंकर भी नंदीश्वरर पर आरूढ होकर बडा ही विकराल रूप बनाकर बडी मस्त चाल से चल रहे थे।

बारात के शैलगढ में पहुंचने पर नगरवासी बारात देखने उमड पडे, लेकिन शंकर की डरावनी बारात देखकर नगरवासी भयभीत हो गए, कई तो वहीं गिर पडे एवं कई भाग भाग कर अपने घरों में घुस गए। यह चर्चा जब राजमहलों में पहुंची तो पार्वती ने शुद्ध मन से भगवान शंकर को यह रूप छोडकर मोहिनी रूप धारण करने की प्रार्थना की। शंकर ने पार्वती की प्रार्थना सुनकर मोहिनी रूप धारण किया। स्वयं ब्रह्मा ने शंकर और पार्वती का विवाह सम्पन्न कराया। तब पार्वती ने शंकर को जन्म जन्मांतर का पति मानकर शंकर से अमर सुहाग की याचना की। शंकर ने तत्कात बड और पीपल से लाक्ष प्रकट कर दी। ब्रह्म के पुत्र गौतमादिक रखेश्वर से गहलोत नामक क्षत्रिय वंश की उत्पत्ति हुई। इसी गहलोत वंश के क्षत्रिय राजा राहूशाह के पुत्र महादर गहलोत थे जो भगवान शंकर के बडे भक्त थे। भगवान शंकर ने महादर गहलोत को अपने पास बुलाया और अपने अस्त्र शस्त्र त्यागकर घरेलू व्यवसाय करने की आज्ञा दी। महादर गहलोत ने आज्ञा शिरोधार्य करके हाट लगाकर सर्वप्रथम लाख की चूडी बनाकर माता पार्वती को पहनाई। इस प्रकार लाख की चूडी बनाने का कार्य महादर गहलोत ने सर्वप्रथम किया। हाट लगाने से गहलोत गौत्र को हाटडिया भी कहते है।

लाख के व्यवसाय करने वालों की वंश बढोतरी के लिए भगवान शंकर की आज्ञा से महादर गहलोत (हाटडिया) ने छत्तीस कुलधारी क्षत्रियों को सामूहिक भोज में आमंत्रित किया। जिन जिन क्षत्रियों ने शस्त्रों को त्यागकर एक साथ बैठकर भोजन किया वे सब लखपति कहलाए बाकी क्षत्रिय रहे। इस प्रकार लक्षकार समाज की उत्पत्ति हुई। लाख का कार्य करने वाले लक्षकार, लखेरा, लखारा व लखपति आदि कहलाए। इस प्रकार त्रेता युग में ही हमारे समाज की उत्पत्ति हो गई थी तथा इसकी उत्पत्ति भी भगवान शंकर के द्वारा तथा क्षत्रिय कुल से हुई है। इससे हमारा कर्तव्य हो जाता है कि हमारे समाज को हम ऊपर उठाए इसको रसातल में ले जाने का दुस्साहस ने करे। कवि ने कहा है कि-
उत्तम जात रचि विधि ने, नाथ कृपा करि कीन्हा लखेरा।
भोजन पान करे न काहु के, मांगत दाम उधार ने केरा।।
जो त्रिया पति संग न जावत, आवत हाथ कहा मन मेरा।
सूर्य चंद्र और अग्नितवंश, इन तीनों वंश से भया लखेरा।।
*लखारा,लक्ष्कार" समाज की कुलदेवी_-
ॐ श्री जय लखेश्वरी माँ को लख-लख नमो: नम: नमस्कार...* (by EasyClip)

शिवलिंग को गुप्तांग की संज्ञा कैसे दी और

शिवलिंग को गुप्तांग की संज्ञा कैसे दी और अब हम  हिन्दू खुद शिवलिंग को शिव् भगवान का गुप्तांग समझने लगे हे और दूसरे हिन्दुओ को भी ये गलत जानकारी देने लगे हे।

प्रकृति से शिवलिंग का क्या संबंध है ..?
जाने शिवलिंग का वास्तविक अर्थ क्या है और कैसे इसका गलत अर्थ निकालकर हिन्दुओं को भ्रमित किया...??

कुछ लोग शिवलिंग की पूजा
की आलोचना करते हैं..।
छोटे छोटे बच्चों को बताते हैं कि हिन्दू लोग लिंग और योनी की पूजा करते हैं । मूर्खों को संस्कृत का ज्ञान नहीं होता है..और अपने छोटे'छोटे बच्चों को हिन्दुओं के प्रति नफ़रत पैदा करके उनको आतंकी बना देते हैं।संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है । इसे देववाणी भी कहा जाता है।

*लिंग*
लिंग का अर्थ संस्कृत में चिन्ह, प्रतीक होता है…
जबकी जनर्नेद्रीय को संस्कृत मे शिशिन कहा जाता है।

*शिवलिंग*
>शिवलिंग का अर्थ हुआ शिव का प्रतीक….
>पुरुषलिंग का अर्थ हुआ पुरुष का प्रतीक इसी प्रकार स्त्रीलिंग का अर्थ हुआ स्त्री का प्रतीक और नपुंसकलिंग का अर्थ हुआ नपुंसक का प्रतीक। अब यदि जो लोग पुरुष लिंग को मनुष्य की जनेन्द्रिय समझ कर आलोचना करते है..तो वे बताये "स्त्री लिंग "'के अर्थ के अनुसार स्त्री का लिंग होना चाहिए ।

*शिवलिंग"'क्या है ?*
शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है । स्कन्दपुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है।शिवलिंग वातावरण सहित घूमती धरती तथा सारे अनन्त ब्रह्माण्ड ( क्योंकि, ब्रह्माण्ड गतिमान है ) का अक्स/धुरी (axis) ही लिंग है।
शिव लिंग का अर्थ अनन्त भी होता है अर्थात जिसका कोई अन्त नहीं है और ना ही शुरुआत।

शिवलिंग का अर्थ लिंग या योनी नहीं होता ।
..दरअसल यह गलतफहमी भाषा के रूपांतरण और मलेच्छों यवनों  के द्वारा हमारे पुरातन धर्म ग्रंथों को नष्ट कर दिए जाने पर तथा बाद में षडयंत्रकारी अंग्रेजों के द्वारा इसकी व्याख्या से उत्पन्न हुआ है ।

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि एक ही शब्द के विभिन्न भाषाओँ में अलग-अलग अर्थ निकलते हैं ।
उदाहरण के लिए
यदि हम हिंदी के एक शब्द "सूत्र" को ही ले लें तो
सूत्र का मतलब डोरी/धागा गणितीय सूत्र कोई भाष्य अथवा लेखन भी हो सकता है। जैसे कि नासदीय सूत्र ब्रह्म सूत्र इत्यादि ।
उसी प्रकार "अर्थ" शब्द का भावार्थ : सम्पति भी हो सकता है और मतलब (मीनिंग) भी ।
ठीक बिल्कुल उसी प्रकार शिवलिंग के सन्दर्भ में लिंग शब्द से अभिप्राय चिह्न, निशानी, गुण, व्यवहार या प्रतीक है । धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है।तथा कई अन्य नामों से भी संबोधित किया गया है। जैसे : प्रकाश स्तंभ/लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग, उर्जा स्तंभ/लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंग (cosmic pillar/lingam)

ब्रह्माण्ड में दो ही चीजे हैं: ऊर्जा और प्रदार्थ। हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है और आत्मा ऊर्जा है।
इसी प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते हैं।
ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा ऊर्जा शिवलिंग में निहित है। वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की आकृति है.

The universe is a sign of Shiva Lingam

शिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-आनादी एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतिक भी है। अर्थात इस संसार में न केवल पुरुष का और न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है अर्थात दोनों सामान हैं।

*अब बात करते है योनि शब्द पर-*
मनुष्ययोनि "पशुयोनी"पेड़-पौधों की योनी'जीव-जंतु योनि
योनि का संस्कृत में प्रादुर्भाव ,प्रकटीकरण अर्थ होता है....जीव अपने कर्म के अनुसार विभिन्न योनियों में जन्म लेता है। किन्तु कुछ धर्मों में पुर्जन्म की मान्यता नहीं है नासमझ बेचारे। इसीलिए योनि शब्द के संस्कृत अर्थ को नहीं जानते हैं। जबकी हिंदू धर्म मे 84 लाख योनि बताई जाती है।यानी 84 लाख प्रकार के जन्म हैं। अब तो वैज्ञानिकों ने भी मान लिया है कि धरती में 84 लाख प्रकार के जीव (पेड़, कीट,जानवर,मनुष्य आदि) है।

*मनुष्य योनि*
पुरुष और स्त्री दोनों को मिलाकर मनुष्य योनि होता है।अकेले स्त्री या अकेले पुरुष के लिए मनुष्य योनि शब्द का प्रयोग संस्कृत में नहीं होता है। तो कुल मिलकर अर्थ यह है:-

लिंग का तात्पर्य प्रतीक से है शिवलिंग का मतलब है पवित्रता का प्रतीक ।
दीपक की प्रतिमा बनाये जाने से इस की शुरुआत हुई, बहुत से हठ योगी दीपशिखा पर ध्यान लगाते हैं | हवा में दीपक की ज्योति टिमटिमा जाती है और स्थिर ध्यान लगाने की प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न करती है। इसलिए दीपक की प्रतिमा स्वरूप शिवलिंग का निर्माण किया गया। ताकि निर्विघ्न एकाग्र होकर ध्यान लग सके | लेकिन कुछ विकृत मुग़ल काल व गंदी मानसिकता बाले गोरे अंग्रेजों के गंदे दिमागों ने इस में गुप्तांगो की कल्पना कर ली और झूठी कुत्सित कहानियां बना ली और इसके पीछे के रहस्य की जानकारी न होने के कारण अनभिज्ञ भोले हिन्दुओं को भ्रमित किया गया |
आज भी बहुतायत हिन्दू इस दिव्य ज्ञान से अनभिज्ञ है।
हिन्दू सनातन धर्म व उसके त्यौहार विज्ञान पर आधारित है।जोकि हमारे पूर्वजों ,संतों ,ऋषियों-मुनियों तपस्वीयों की देन है।आज विज्ञान भी हमारी हिन्दू संस्कृति की अदभुत हिन्दू संस्कृति व इसके रहस्यों को सराहनीय दृष्टि से देखता है व उसके ऊपर रिसर्च कर रहा है।

*नोट÷* सभी शिव-भक्तों हिन्दू सनातन प्रेमीयों से प्रार्थना है, यह जानकारी सभी को भरपूर मात्रा में इस पोस्ट को शेयर करें ताकि सभी को यह जानकारी मिल सके जो कि मुस्लिम और गोरे अंग्रेजों ने षड्यंत्र 

Jai Shankar ki 🇮🇳 

*💒Ⓜइन कारणों से मंदिर जाना स्वास्थ्य के लिए होता है अच्छाⓂ💒*

*💒Ⓜइन कारणों से मंदिर जाना स्वास्थ्य के लिए होता है अच्छाⓂ💒*
✍आमतौर पर मंदिर में जाना धर्मिक से जोड़ा जाता है। लेकिन मंदिर जाने के कुछ साइंटिफिक हेल्थ बेनिफिट्स भी हैं। अगर हम रोज मंदिर जाते हैं तो इससे कई तरह की हेल्थ प्रॉब्लम्स कंट्रोल की जा सकती हैं। यहां जानिए ऐसे 7 फायदे जो हमें रोज मंदिर जाने से मिलते हैं।

*💒हाई BP कंट्रोल करने के लिए*

मंदिर के अंदर नंगे पैर जाने से यहां की पॉजिटिव एनर्जी पैरों के जरिए हमारी बॉडी में प्रवेश करती है। नंगे पैर चलने के कारण पैरों में मौजूद प्रेशर प्वाइंट्स पर दवाब भी पड़ता है, जिससे हाई BP की प्रॉब्लम कंट्रोल होती है।

*💒कॉन्सेंट्रेशन बढ़ाने के लिए*

रोज़ मंदिर जाने और भौहों के बीच माथे पर तिलक लगाने से हमारे ब्रेन के ख़ास हिस्से पर दवाब पड़ता है। इससे कॉन्सेंट्रेशन बढ़ता है।

*💒एनर्जी लेवल बढ़ाने के लिए*

रिसर्च कहती है, जब हम मंदिर का घंटा बजाते हैं, तो 7 सेकण्ड्स तक हमारे कानों में उसकी आवाज़ गूंजती है। इस दौरान बॉडी में सुकून पहुंचाने वाले 7 प्वाइंट्स एक्टिव हो जाते हैं। इससे एनर्जी लेवल बढ़ाने में हेल्प मिलती है।

*💒इम्युनिटी बढ़ाने के लिए*

मंदिर में दोनों हाथ जोड़कर पूजा करने से हथेलियों और उंगलियों के उन प्वॉइंटस पर दवाब बढ़ता है, जो बॉडी के कई पार्ट्स से जुड़े होते हैं। इससे बॉडी फंक्शन सुधरते हैं और इम्युनिटी बढ़ती है।

*💒बैक्टीरिया से बचाव के लिए*

मंदिर में मौजूद कपूर और हवन का धुआं बैक्टीरिया ख़त्म करता है। इससे वायरल इंफेक्शन का खतरा टलता है।

*💒स्ट्रेस दूर करने के लिए*

मंदिर का शांत माहौल और शंख की आवाज़ मेंटली रिलैक्स करती है। इससे स्ट्रेस दूर होता है।

*💒डिप्रेशन दूर होता है*

रोज़ मंदिर जाने और भगवान की आरती गाने से ब्रेन फंक्शन सुधरते हैं। इससे डिप्रेशन दूर होता हैं।।
✍,,,,,,,, (by EasyClip)

शुक्रवार, 17 मई 2019

किस चीज की कमी के कारण कौन सा रोग होता है



१.रोगी के रोग की चिकित्सा करने वाले निकृष्ट , रोग के कारणों की चिकित्सा करने वाले औसत और रोग-मुक्त रखने वाले श्रेष्ठ चिकित्सक होते हैं ।

👉  लकवा - सोडियम की कमी के कारण होता है ।

👉 हाई वी पी में -  स्नान व सोने से पूर्व एक गिलास जल का सेवन करें तथा स्नान करते समय थोड़ा सा नमक पानी मे डालकर स्नान करे ।

👉 लो वी पी - सेंधा नमक डालकर पानी पीयें ।

👉  कूबड़ निकलना- फास्फोरस की कमी ।
👉  कफ - फास्फोरस की कमी से कफ बिगड़ता है , फास्फोरस की पूर्ति हेतु आर्सेनिक की उपस्थिति जरुरी है गुड व शहद खाएं

👉  दमा, अस्थमा - सल्फर की कमी ।

👉  सिजेरियन आपरेशन - आयरन , कैल्शियम की कमी ।

👉 सभी क्षारीय वस्तुएं दिन डूबने के बाद खायें ।

👉  अम्लीय वस्तुएं व फल दिन डूबने से पहले खायें ।

👉  जम्भाई - शरीर में आक्सीजन की कमी ।

👉 जुकाम - जो प्रातः काल जूस पीते हैं वो उस में काला नमक व अदरक डालकर पियें ।

👉 ताम्बे का पानी - प्रातः खड़े होकर नंगे पाँव पानी ना पियें ।

👉  किडनी - भूलकर भी खड़े होकर गिलास का पानी ना पिये ।

👉 गिलास एक रेखीय होता है तथा इसका सर्फेसटेन्स अधिक होता है । गिलास अंग्रेजो ( पुर्तगाल) की सभ्यता से आयी है अतः लोटे का पानी पियें,  लोटे का कम  सर्फेसटेन्स होता है ।

👉  अस्थमा , मधुमेह , कैसर से गहरे रंग की वनस्पतियाँ बचाती हैं ।

👉  वास्तु के अनुसार जिस घर में जितना खुला स्थान होगा उस घर के लोगों का दिमाग व हृदय भी उतना ही खुला होगा ।

👉 परम्परायें वहीँ विकसित होगीं जहाँ जलवायु के अनुसार व्यवस्थायें विकसित होगीं ।

👉 पथरी - अर्जुन की छाल से पथरी की समस्यायें ना के बराबर है ।

👉  RO का पानी कभी ना पियें यह गुणवत्ता को स्थिर नहीं रखता । कुएँ का पानी पियें । बारिस का पानी सबसे अच्छा , पानी की सफाई के लिए सहिजन की फली सबसे बेहतर है ।

👉 सोकर उठते समय हमेशा दायीं करवट से उठें या जिधर का स्वर चल रहा हो उधर करवट लेकर उठें ।

👉  पेट के बल सोने से हर्निया, प्रोस्टेट, एपेंडिक्स की समस्या आती है ।

👉  भोजन के लिए पूर्व दिशा , पढाई के लिए उत्तर दिशा बेहतर है ।

👉  HDL बढ़ने से मोटापा कम होगा LDL व VLDL कम होगा ।

👉  गैस की समस्या होने पर भोजन में अजवाइन मिलाना शुरू कर दें ।

👉  चीनी के अन्दर सल्फर होता जो कि पटाखों में प्रयोग होता है , यह शरीर में जाने के बाद बाहर नहीं निकलता है। चीनी खाने से पित्त बढ़ता है ।

👉 शुक्रोज हजम नहीं होता है फ्रेक्टोज हजम होता है और भगवान् की हर मीठी चीज में फ्रेक्टोज है ।

👉 वात के असर में नींद कम आती है ।

👉   कफ के प्रभाव में व्यक्ति प्रेम अधिक करता है ।

👉 कफ के असर में पढाई कम होती है ।

👉 पित्त के असर में पढाई अधिक होती है ।

👉 योग-प्राणायाम-  कफ प्रवृति वालों को नहीं करना चाहिए , वात प्रवृति वालों को थोडा,  पित्त प्रवृति वालों को ज्यादा करना चाहिए ।

👉 आँखों के रोग - कैट्रेक्टस, मोतियाविन्द, ग्लूकोमा , आँखों का लाल होना आदि ज्यादातर रोग कफ के कारण होता है ।

👉  शाम को वात-नाशक चीजें खानी चाहिए ।

👉 पित्त प्रवृति वालों को प्रातः 4 बजे जाग जाना चाहिए ।

👉 सोते समय रक्त दवाव सामान्य या सामान्य से कम होता है ।

👉  व्यायाम - वात रोगियों के लिए मालिश के बाद व्यायाम , पित्त वालों को व्यायाम के बाद मालिश करनी चाहिए । कफ के लोगों को स्नान के बाद मालिश करनी चाहिए ।

👉  भारत की जलवायु वात प्रकृति की है दौड़ की बजाय सूर्य नमस्कार करना चाहिए ।

👉  जो माताएं घरेलू कार्य करती हैं उनके लिए व्यायाम जरुरी नहीं ।

👉  निद्रा से पित्त शांत होता है , मालिश से वायु शांति होती है , उल्टी से कफ शांत होता है तथा उपवास ( लंघन ) से बुखार शांत होता है ।

👉  भारी वस्तुयें शरीर का रक्तदाब बढाती है , क्योंकि उनका गुरुत्व अधिक होता है ।

👉 दुनियां के महान वैज्ञानिक का स्कूली शिक्षा का सफ़र अच्छा नहीं रहा, चाहे वह 8 वीं फेल न्यूटन हों या 9 वीं फेल आइस्टीन हों ,

👉 माँस खाने वालों के शरीर से अम्ल-स्राव करने वाली ग्रंथियाँ प्रभावित होती हैं ।

👉  तेल हमेशा गाढ़ा खाना चाहिएं सिर्फ लकडी वाली घाणी का , दूध हमेशा पतला पीना चाहिए ।

👉 छिलके वाली दाल-सब्जियों से कोलेस्ट्रोल हमेशा घटता है ।

👉 कोलेस्ट्रोल की बढ़ी हुई स्थिति में इन्सुलिन खून में नहीं जा पाता है । ब्लड शुगर का सम्बन्ध ग्लूकोस के साथ नहीं अपितु कोलेस्ट्रोल के साथ है ।

👉 मिर्गी दौरे में अमोनिया या चूने की गंध सूँघानी चाहिए ।

👉 सिरदर्द में एक चुटकी नौसादर व अदरक का रस रोगी को सुंघायें ।

👉 भोजन के पहले मीठा खाने से बाद में खट्टा खाने से शुगर नहीं होता है ।

👉 भोजन के आधे घंटे पहले सलाद खाएं उसके बाद भोजन करें ।

👉 अवसाद में आयरन , कैल्शियम , फास्फोरस की कमी हो जाती है । फास्फोरस गुड और अमरुद में अधिक है ।

👉  पीले केले में आयरन कम और कैल्शियम अधिक होता है । हरे केले में कैल्शियम थोडा कम लेकिन फास्फोरस ज्यादा होता है तथा लाल केले में कैल्शियम कम आयरन ज्यादा होता है । हर हरी चीज में भरपूर फास्फोरस होती है, वही हरी चीज पकने के बाद पीली हो जाती है जिसमे कैल्शियम अधिक होता है ।

👉  छोटे केले में बड़े केले से ज्यादा कैल्शियम होता है

👉 रसौली की गलाने वाली सारी दवाएँ चूने से बनती हैं

👉  हेपेटाइट्स A से E तक के लिए चूना बेहतर है ।

👉 एंटी टिटनेस के लिए हाईपेरियम 200 की दो-दो बूंद 10-10 मिनट पर तीन बार दे ।

👉 ऐसी चोट जिसमे खून जम गया हो उसके लिए नैट्रमसल्फ दो-दो बूंद 10-10 मिनट पर तीन बार दें । बच्चो को एक बूंद पानी में डालकर दें ।

👉  मोटे लोगों में कैल्शियम की कमी होती है अतः त्रिफला दें । त्रिकूट ( सोंठ+कालीमिर्च+ मघा पीपली ) भी दे सकते हैं ।

👉  अस्थमा में नारियल दें । नारियल फल होते हुए भी क्षारीय है ।दालचीनी + गुड + नारियल दें ।

👉  चूना बालों को मजबूत करता है तथा आँखों की रोशनी बढाता है ।
👉  दूध का सर्फेसटेंसेज कम होने से त्वचा का कचरा बाहर निकाल देता है ।

👉  गाय की घी सबसे अधिक पित्तवर्धक व कफ व वायुनाशक है ।

👉  जिस भोजन में सूर्य का प्रकाश व हवा का स्पर्श ना हो उसे नहीं खाना चाहिए । जैसे - प्रेशर कूकर

👉  गौ-मूत्र अर्क आँखों में ना डालें ।

👉  गाय के दूध में घी मिलाकर देने से कफ की संभावना कम होती है लेकिन चीनी मिलाकर देने से कफ बढ़ता है ।

👉  मासिक के दौरान वायु बढ़ जाता है , 3-4 दिन स्त्रियों को उल्टा सोना चाहिए इससे  गर्भाशय फैलने का खतरा नहीं रहता है । दर्द की स्थति में गर्म पानी में देशी घी दो चम्मच डालकर पियें ।

👉  रात में आलू खाने से वजन बढ़ता है ।

👉 भोजन के बाद बज्रासन में बैठने से वात नियंत्रित होता है ।

👉 भोजन के बाद कंघी करें कंघी करते समय आपके बालों में कंघी के दांत चुभने चाहिए । बाल जल्द सफ़ेद नहीं होगा ।

👉  अजवाईन अपान वायु को बढ़ा देता है जिससे पेट की समस्यायें कम होती है ।

👉  अगर पेट में मल बंध गया है तो अदरक का रस या सोंठ का प्रयोग करें ।

👉  कब्ज होने की अवस्था में सुबह पानी पीकर कुछ देर एडियों के बल चलना चाहिए ।

👉 रास्ता चलने, श्रम कार्य के बाद थकने पर या धातु गर्म होने पर दायीं करवट लेटना चाहिए ।

👉 जो दिन मे दायीं करवट लेता है तथा रात्रि में बायीं करवट लेता है उसे थकान व शारीरिक पीड़ा कम होती है ।

👉  बिना कैल्शियम की उपस्थिति के कोई भी विटामिन व पोषक तत्व पूर्ण कार्य नहीं करते है ।

👉  स्वस्थ्य व्यक्ति सिर्फ 5 मिनट शौच में लगाता है ।

👉 भोजन करते समय डकार आपके भोजन को पूर्ण और हाजमे को संतुष्टि का संकेत है ।

👉  सुबह के नाश्ते में फल , दोपहर को दही व रात्रि को दूध का सेवन करना चाहिए ।

👉  रात्रि को कभी भी अधिक प्रोटीन वाली वस्तुयें नहीं खानी चाहिए । जैसे - दाल , पनीर , राजमा , लोबिया आदि ।

👉  शौच और भोजन के समय मुंह बंद रखें , भोजन के समय टी वी ना देखें ।

👉  मासिक चक्र के दौरान स्त्री को ठंडे पानी से स्नान , व आग से दूर रहना चाहिए ।

👉 जो बीमारी जितनी देर से आती है , वह उतनी देर से जाती भी है ।

👉 जो बीमारी अंदर से आती है , उसका समाधान भी अंदर से ही होना चाहिए ।

👉  एलोपैथी ने एक ही चीज दी है , दर्द से राहत । आज एलोपैथी की दवाओं के कारण ही लोगों की किडनी , लीवर , आतें , हृदय ख़राब हो रहे हैं । एलोपैथी एक बिमारी खत्म करती है तो दस बिमारी देकर भी जाती है ।

👉  खाने की बस्तु में कभी भी ऊपर से नमक नहीं डालना चाहिए , ब्लड-प्रेशर बढ़ता है ।

👉  रंगों द्वारा चिकित्सा करने के लिए इंद्रधनुष को समझ लें, पहले जामुनी , फिर नीला ..... अंत में लाल रंग ।

👉  छोटे बच्चों को सबसे अधिक सोना चाहिए , क्योंकि उनमें वह कफ प्रवृति होती है , स्त्री को भी पुरुष से अधिक विश्राम करना चाहिए ।

👉 जो सूर्य निकलने के बाद उठते हैं , उन्हें पेट की भयंकर बीमारियां होती है , क्योंकि बड़ी आँत मल के चूसने लगता है ।

👉 बिना शरीर की गंदगी निकाले स्वास्थ्य शरीर की कल्पना निरर्थक है , मल-मूत्र से 5% , कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ने से 22 %, तथा पसीना निकलने लगभग 70 % शरीर से विजातीय तत्व निकलते हैं ।

👉 चिंता , क्रोध , ईष्या करने से गलत हार्मोन्स का निर्माण होता है जिससे कब्ज , बबासीर , अजीर्ण, अपच , रक्तचाप , थायरायड की समस्या उतपन्न होती है ।
👉  गर्मियों में बेल , गुलकंद , तरबूजा , खरबूजा व सर्दियों में सफ़ेद मूसली , सोंठ का प्रयोग करें ।

👉  प्रसव के बाद माँ का पीला दूध बच्चे की प्रतिरोधक क्षमता को 10 गुना बढ़ा देता है । बच्चो को टीके लगाने की आवश्यकता नहीं होती  है ।

👉 रात को सोते समय सर्दियों में देशी मधु लगाकर सोयें त्वचा में निखार आएगा ।

👉 दुनिया में कोई चीज व्यर्थ नहीं , हमें उपयोग करना आना चाहिए ।

👉 जो अपने दुखों को दूर करके दूसरों के भी दुःखों को दूर करता है , वही मोक्ष का अधिकारी है ।

👉 सोने से आधे घंटे पूर्व जल का सेवन करने से वायु नियंत्रित होती है , लकवा , हार्ट-अटैक का खतरा कम होता है ।

👉 स्नान से पूर्व और भोजन के बाद पेशाब जाने से रक्तचाप नियंत्रित होता है ।

👉 तेज धूप में चलने के बाद , शारीरिक श्रम करने के बाद , शौच से आने के तुरंत बाद जल का सेवन निषिद्ध है ।

👉 त्रिफला अमृत है जिससे वात, पित्त , कफ तीनो शांत होते हैं । इसके अतिरिक्त भोजन के बाद पान व चूना ।  देशी गाय का घी , गौ-मूत्र भी त्रिदोष नाशक है ।

👉 इस विश्व की सबसे मँहगी दवा लार है , जो प्रकृति ने तुम्हें अनमोल दी है ,  इसे ना थूके  नहीं।

बहुत समय पहले की बात है वृन्दावन में

बहुत समय पहले की बात है वृन्दावन में
श्रीबांके
बिहारी जी के मंदिर में रोज
पुजारी जी बड़े भाव से सेवा
करते थे। वे रोज बिहारी जी की
आरती करते , भोग
लगाते और उन्हें शयन कराते और रोज चार लड्डू
भगवान के बिस्तर के पास रख देते थे। उनका यह भाव
था कि बिहारी जी को यदि रात में भूख
लगेगी तो वे उठ
कर खा लेंगे। और जब वे सुबह मंदिर के पट खोलते थे
तो भगवान के बिस्तर पर प्रसाद बिखरा मिलता था।
इसी भाव से वे रोज ऐसा करते थे।
एक दिन बिहारी जी को शयन कराने के बाद
वे चार
लड्डू रखना भूल गए। उन्होंने पट बंद किए और चले
गए। रात में करीब एक-दो बजे , जिस दुकान से वे
बूंदी
के लड्डू आते थे , उन बाबा की दुकान
खुली थी। वे घर
जाने ही वाले थे तभी एक छोटा सा बालक
आया और
बोला बाबा मुझे बूंदी के लड्डू चाहिए।
बाबा ने कहा - लाला लड्डू तो सारे ख़त्म हो गए। अब
तो मैं दुकान बंद करने जा रहा हूँ। वह बोला आप अंदर
जाकर देखो आपके पास चार लड्डू रखे हैं। उसके हठ
करने पर बाबा ने अंदर जाकर देखा तो उन्हें चार लड्डू
मिल गए क्यों कि वे आज मंदिर नहीं गए थे। बाबा ने
कहा - पैसे दो।
बालक ने कहा - मेरे पास पैसे तो नहीं हैं और तुरंत
अपने हाथ से सोने का कंगन उतारा और बाबा को देने
लगे। तो बाबा ने कहा - लाला पैसे नहीं हैं तो रहने दो
,
कल अपने बाबा से कह देना , मैं उनसे ले लूँगा। पर वह
बालक नहीं माना और कंगन दुकान में फैंक कर भाग
गया। सुबह जब पुजारी जी ने पट खोला तो
उन्होंने देखा
कि बिहारी जी के हाथ में कंगन
नहीं है। यदि चोर भी
चुराता तो केवल कंगन ही क्यों चुराता। थोड़ी
देर बाद
ये बात सारे मंदिर में फ़ैल गई।
जब उस दुकान वाले को पता चला तो उसे रात की बात
याद आई। उसने अपनी दुकान में कंगन ढूंढा और
पुजारी
जी को दिखाया और सारी बात सुनाई। तब
पुजारी जी
को याद आया कि रात में , मैं लड्डू रखना ही भूल गया
था। इसलिए बिहारी जी स्वयं लड्डू लेने
गए थे।
🌿यदि भक्ति में भक्त कोई सेवा भूल भी जाता है तो
भगवान अपनी तरफ से पूरा कर लेते हैं।
शुभ-दिवस
राधे-राधे.
मांगी थी इक कली उतार कर
हार दे दिया
चाही थी एक धुन अपना सितार दे दिया
झोली बहुत ही छोटी
थी मेरी "कृष्णा"
तुमने तो कन्हैया हंस कर सारा संसार दे दिया
"""""""जय जय श्री राधे कृष्णा""""" 

*स्नान कब और कैसे करें घर की समृद्धि बढ़ाना हमारे हाथ में है।

*स्नान कब और कैसे करें घर की समृद्धि बढ़ाना हमारे हाथ में है।
सुबह के स्नान को धर्म शास्त्र में चार उपनाम दिए हैं।

*1*  *मुनि स्नान।*
जो सुबह 4 से 5 के बीच किया जाता है।
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*2*  *देव स्नान।*
जो सुबह 5 से 6 के बीच किया जाता है।
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*3*  *मानव स्नान।*
जो सुबह 6 से 8 के बीच किया जाता है।
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*4*  *राक्षसी स्नान।*
जो सुबह 8 के बाद किया जाता है।

▶मुनि स्नान सर्वोत्तम है।
▶देव स्नान उत्तम है।
▶मानव स्नान सामान्य है।
▶राक्षसी स्नान धर्म में निषेध है।
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किसी भी मानव को 8 बजे के बाद स्नान नहीं करना चाहिए।
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*मुनि स्नान .......*
👉🏻घर में सुख ,शांति ,समृद्धि, विद्या , बल , आरोग्य , चेतना , प्रदान करता है।
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*देव स्नान ......*
👉🏻 आप के जीवन में यश , कीर्ती , धन, वैभव, सुख ,शान्ति, संतोष , प्रदान करता है।
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*मानव स्नान.....*
👉🏻काम में सफलता ,भाग्य, अच्छे कर्मों की सूझ, परिवार में एकता, मंगलमय , प्रदान करता है।
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*राक्षसी स्नान.....*
👉🏻 दरिद्रता , हानि , क्लेश ,धन हानि, परेशानी, प्रदान करता है ।
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किसी भी मनुष्य को 8 के बाद स्नान नहीं करना चाहिए।
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पुराने जमाने में इसी लिए सभी सूरज निकलने से पहले स्नान करते थे।

*खास कर जो घर की स्त्री होती थी।* चाहे वो स्त्री माँ के रूप में हो, पत्नी के रूप में हो, बहन के रूप में हो।
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घर के बड़े बुजुर्ग यही समझाते सूरज के निकलने से पहले ही स्नान हो जाना चाहिए।
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*ऐसा करने से धन, वैभव लक्ष्मी, आप के घर में सदैव वास करती है।*
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उस समय...... एक मात्र व्यक्ति की कमाई से पूरा हरा भरा परिवार पल जाता था, और आज मात्र पारिवार में चार सदस्य भी कमाते हैं तो भी पूरा नहीं होता।
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उस की वजह हम खुद ही हैं। पुराने नियमों को तोड़ कर अपनी सुख सुविधा के लिए हमने नए नियम बनाए हैं।
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प्रकृति ......का नियम है, जो भी उस के नियमों का पालन नहीं करता, उस का दुष्परिणाम सब को मिलता है।
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इसलिए अपने जीवन में कुछ नियमों को अपनायें और उन का पालन भी करें ।
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आप का भला हो, आपके अपनों का भला हो।
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मनुष्य अवतार बार बार नहीं मिलता।
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अपने जीवन को सुखमय बनायें।

जीवन जीने के कुछ जरूरी नियम बनायें।
☝🏼 *याद रखियेगा !* 👇🏽
*संस्कार दिये बिना सुविधायें देना, पतन का कारण है।*
*सुविधाएं अगर आप ने बच्चों को नहीं दिए तो हो सकता है वह थोड़ी देर के लिए रोएं।*
*पर संस्कार नहीं दिए तो वे जिंदगी भर रोएंगे।*
मृत्यु उपरांत एक सवाल ये भी पूछा जायेगा कि अपनी अँगुलियों के नाम बताओ ।
जवाब:-
अपने हाथ की छोटी उँगली से शुरू करें :-
(1)जल
(2) पथ्वी
(3)आकाश
(4)वायु
(5) अग्नि
ये वो बातें हैं जो बहुत कम लोगों को मालूम होंगी ।

5 जगह हँसना करोड़ों पाप के बराबर है
1. श्मशान में
2. अर्थी के पीछे
3. शोक में
4. मन्दिर में
5. कथा में

सिर्फ 1 बार ये message भेजो बहुत लोग इन पापों से बचेंगे ।।

अकेले हो?
परमात्मा को याद करो ।

परेशान हो?
ग्रँथ पढ़ो ।

उदास हो?
कथाएं पढ़ो।

टेन्शन में हो?
भगवत् गीता पढ़ो ।

फ्री हो?
अच्छी चीजें  करो
हे परमात्मा हम पर और समस्त प्राणियों पर कृपा करो......

*सूचना*
क्या आप जानते हैं ?
हिन्दू ग्रंथ रामायण, गीता, आदि को सुनने,पढ़ने से कैन्सर नहीं होता है बल्कि कैन्सर अगर हो तो वो भी खत्म हो जाता है।

व्रत,उपवास करने से तेज बढ़ता है, सरदर्द और बाल गिरने से बचाव होता है ।
आरती----के दौरान ताली बजाने से दिल मजबूत होता है ।

ये मैसेज असुर भेजने से रोकेगा मगर आप ऐसा नहीं होने दें और मैसेज सब नम्बरों को भेजें ।

श्रीमद् भगवद्गीता, भागवत्पुराण और रामायण का नित्य पाठ करें।
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''कैन्सर"
एक खतरनाक बीमारी है...
बहुत से लोग इसको खुद दावत देते हैं ...
बहुत मामूली इलाज करके इस
बीमारी से काफी हद तक बचा जा सकता है ...
अक्सर लोग खाना खाने के बाद "पानी" पी लेते हैं ...
खाना खाने के बाद "पानी" ख़ून में मौजूद "कैन्सर "का अणु बनाने वाले '''सैल्स'''को '''आक्सीजन''' पैदा करता है...

''हिन्दु ग्रंथों में बताया गया है कि...
खाने से पहले 'पानी' पीना
अमृत" है...

खाने के बीच मे 'पानी' पीना शरीर की 'पूजा' है ...

खाना खत्म होने से पहले 'पानी'
पीना "औषधि'' है...

खाने के बाद 'पानी' पीना
बीमारियों का घर है...

बेहतर है खाना खत्म होने के कुछ देर बाद 'पानी' पीयें ...

ये बात उनको भी बतायें जो आपको 'जान' से भी ज्यादा प्यारे हैं ...

हरि हरि जय जय श्री हरि !!!

रोज एक सेब
नो डाक्टर ।

रोज पांच बादाम,
नो कैन्सर ।

रोज एक निंबू,
नो पेट बढ़ना ।

रोज एक गिलास दूध,
नो बौना (कद का छोटा)।

रोज 12 गिलास पानी,
नो चेहरे की समस्या ।

रोज चार काजू,
नो भूख ।

रोज मन्दिर जाओ,
नो टेन्शन ।

रोज कथा सुनो
मन को शान्ति मिलेगी ।

"चेहरे के लिए ताजा पानी"।

"मन के लिए गीता की बातें"।

"सेहत के लिए योग"।

और खुश रहने के लिए परमात्मा को याद किया करो ।

अच्छी बातें फैलाना पुण्य का कार्य है....किस्मत में करोड़ों खुशियाँ लिख दी जाती हैं ।
जीवन के अंतिम दिनों में इन्सान एक एक पुण्य के लिए तरसेगा ।

जब तक ये मैसेज भेजते रहोगे मुझे और आपको इसका पुण्य मिलता रहेगा...

हरे कृष्ण हरि हरि !!! 

बुधवार, 15 मई 2019

सफलता क्या है

सफलता क्या है ? ?
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4 वर्ष की उम्र में सफलता यह है कि आप अपने कपड़ों को गीला नहीं करते।

8  वर्ष की उम्र में सफलता यह है कि आप अपने घर वापिस आने का रास्ता जानते है।

12  वर्ष की उम्र में सफलता यह है कि आप अपने अच्छे मित्र बना सकते है।

18  वर्ष की उम्र में मदिरा और सिगरेट से दूर रह पाना सफलता है।

25  वर्ष की उम्र तक नौकरी पाना सफलता है।

30  वर्ष की उम्र में एक पारिवारिक व्यक्ति बन जाना सफलता है।

35  वर्ष की उम्र में आपने कुछ जमापूंजी बनाना सीख लिया ये सफलता है।

45  वर्ष की उम्र में सफलता यह है कि आप अपना युवापन बरकरार रख पाते हैं।

55  वर्ष की उम्र में सफलता यह है कि आप अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करने में सक्षम हैं।

65  वर्ष की आयु में सफलता है निरोगी रहना।

70  वर्ष की उम्र में सफलता यह है कि आप आत्मनिर्भर हैं किसी पर बोझ नहीं।

75  वर्ष की उम्र में सफलता यह है कि आप अपने पुराने मित्रों से रिश्ता कायम रखे हैं।

80  वर्ष की उम्र में सफलता यह है कि आपको अपने घर वापिस आने का रास्ता पता है।

और 85  वर्ष की उम्र में फिर सफलता ये है कि आप अपने कपड़ों को गीला नहीं करते।

अंततः यही तो जीवन चक्र है.. जो घूम फिर कर वापस वहीं आ जाता है जहाँ से उसकी शुरुवात हुई है। और यही जीवन का परम सत्य है। 

हमें कम से कम कितने पैसे कमाने की जरुरत है

हमें कम से कम कितने पैसे कमाने की जरुरत है?
Money we need to earn, दोस्तों, ये कहने की बिलकुल जरूरत नहीं कि हमें एक बेहतर जीवन जीने के लिए, हमारे पास पर्याप्त Money होना कितना जरुरी है, और हमारे पास हमारी आवश्यकता के अनुसार धन हो, इसके लिए बहुत जरुरी है कि हम अपने कमाए हुए पैसो की बचत करे,

"हम सभी पैसे कमाते है, लेकिन हमें ये ठीक ठीक पता नहीं होता कि हमारे लिए कम से कम कितने पैसे कमाना बहुत जरुरी है, जिस से हम पैसो की बचत और निवेश कर सके"

तो आज के इस टॉपिक में हम इस बात की चर्चा करेंगे की कम से कम हमारी इनकम कितनी होनी चाहिए, और किस तरह पैसो की बचत कर सकते है,ताकि बचत के पैसो से हम बेहतर निवेश करके अपने सभी फाइनेंसियल गोल को पूरा कर सके,

आइये सबसे पहले जानते है कि –हमें कम से कम कितने पैसे कमाने की जरुरत है?

How much least money we need to earn? इस सवाल के ठीक ठीक जवाब के लिए सबसे पहले हमें ये समझना होगा कि हमारे पैसे किस तरह खर्च होते है,

कमाई से होने वाले खर्चे–
हम अपने पैसे से मुख्य रूप से दो तरह के खर्च करने होते है – एक जो हमारी बुनियादी जरुरत need और दूसरी wishes,

आइये इसे थोडा डिटेल में समझते है-

बुनियादी जरूरत (Basic necessitates) – जैसे घर का राशन, घर का किराया या EMI, लाइट बिल, पानी बिल, फ़ोन बिल,अख़बार बिल, टीवी विल, और किसी तरह के लोंन का इन्स्टालमेन्ट तथा मेडिकल दवाये और अन्य,
हमारी इक्क्षाओ (Our Wishes)– जैसे घर का नया सामान, नया टीवी, फर्नीचर, नया मोबाइल, नए कपडे, और अन्य चीजे
दोस्तों, हम सभी के जीवन की परिस्थितियां बिलकुल अलग अलग है, ऐसे में हम सभी की बुनियादी जरुरत और हमारी इक्क्षाओ में थोडा अंतर हो सकता है, लेकिन ज्यादातर आम आदमी अपनी कमाई अपनी जरूरतों और अपने इक्क्षाओ को पूरा करने में ही खर्च कर देता है,

कम से कम कितना कमाए – आइए जाने
अब ऐसे में अगर आप ये पता करना चाहते है कि आप कि कम से कम कमाई कितनी होनी चाहिए, तो सबसे पहले आपको ये पता करना होगा कि आपकी बुनियादी जरुरत कितनी है?

बुनियादी जरुरत जैसे – घर का राशन, घर का किराया या EMI, लाइट बिल, पानी बिल, फ़ोन बिल,अख़बार बिल, टीवी विल, और किसी तरह के लोंन का इन्स्टालमेन्ट तथा मेडिकल दवाये, बच्चो की पढाई की फ़ीस और अन्य खर्चे,

एक बार जब आप समझ लेते है कि आपकी बुनियादी जरुरत कितनी है, तो आप आसानी से ये जान सकते है कि आपकी कम से कम कितनी आमदनी यानि Income होनी चाहिए,

कम से कम कमाई = बुनियादी खर्च x 2

यानी आपकी कम से कम आमदनी, आपकी कुल बुनियादी जरुरत की दोगुनी होनी चाहिए,

जैसे – मान लीजिए अगर आपकी कुल बुनियादी जरुरत 15 हजार महीने का है, तो आपकी कम से कम आमदनी होनी चाहिए, इसका दोगुना यानी 30 हजार 

बिगड़ते लाइफस्टाइल जैसे खराब और दूषित खानपान

बिगड़ते लाइफस्टाइल जैसे खराब और दूषित खानपान, तनाव और भागदौड़ भरे जीवन के चलते लोगों को कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं को सामना पड़ रहा है। इन समस्याओं में पेट दर्द की समस्या भी बहुत आम हो गई है। जिन लोगों को पेट दर्द होता है वही इसके दर्द को पहचानते हैं। वैसे तो पेट दर्द के लिए कई तरह की अंग्रेजी दवाएं मार्किट में मिलती है। लेकिन जितना हो सके हमें पेट दर्द के लिए घरेलू नुस्खे या औषधियों को ही इस्तेमाल करना चाहिए। कई औषधियां ऐसी हैं जिनका प्रयोग करके आप पेट की बीमारी को आसानी से दूर कर सकते हैं। आइए जानते हैं क्या हैं वो औषधियां-

तुलसी
तुलसी एक ऐसा पौधा है जिसे धरती पर अमृत कहा जाता है। तुलसी के सेवन से कई बीमारियों को सफाया होता है। पेट दर्द के लिए भी तुलसी बहुत असरकारी है। मात्र 1 चम्मच तुलसी का रस पीने से पेट का दर्द और पेट में मरोड़ की समस्या ठीक होती है। तुलसी के पत्‍तों का काढ़ा बनाकर पीने से दस्‍त और कब्ज जैसी परेशानी से छुटकारा मिलता है। तुलसी के 4 पत्‍तों का नियमित सेवन करने से पेट की बीमारियां दूर होती हैं।

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त्रिफला
अनियमित खानपान और बढ़ते फास्ट फूड के चलन के चलते लोगों में कान्स्टपेशन का रोग बढ़ता जा रहा है। त्रिफला आयुर्वेद का अनमोल उपहार है। यह इस समस्या में बहुत फायदा करता है। त्रिफला तीन जड़ी-बूटियों का मिश्रण है। जिसमें अमलकी यानि कि एमबलिका ऑफीसीनालिस, हरीतकी यानि कि टरमिनालिया छेबुला और विभीतकी यानि कि टरमिनालिया बेलीरिका शामिल होता है। त्रिफला का 100 ग्राम चूर्ण और 60 ग्राम चीनी मिलाकर दिन में दो बार सेवन करने से पेट की सभी बीमारियां दूर होती हैं।

बथुआ
बथुआ भी पेट की समस्याओं से निजात दिलाता है। यह आमाशय को ताकत देता है और कब्ज की शिकायत को दूर करता है। बथुए की सब्जी कब्ज और अन्य पेट की समस्या वालों के लिए बहुत अच्छी रहती है। इससे कब्‍ज दूर होती है और शरीर में ताकत आती है और स्फूर्ति बनी रहती है। बथुए का रस, उबाला हुआ पानी पीएं, इससे पेट के हर प्रकार के रोग यकृत, तिल्ली, अजीर्ण, गैस, कृमि, दर्द आदि ठीक हो जाते हैं। 

क्या है कायाकल्प योग (What Is Kayakalpa Yoga)

क्या है कायाकल्प योग (What Is Kayakalpa Yoga)
कायाकल्प योग  एक बेहद प्रसिद्ध योग आसन हैं जो हमारी लाइफ में एनर्जी को बढ़ाने का कार्य करता है। कायाकल्प योग का सबसे पहला कार्य बढ़ती उम्र की गति को धीमा करके उसका विस्तार करना होता है। इतना ही नहीं कायाकल्प योग का अभ्यास करने से संभोग शक्ति और आत्मशक्ति भी बढ़ती है।


क्या है कायाकल्प योग (What is Kayakalpa yoga)
कायाकल्प योग, योग की एक पुरानी तकनीक है जिसका प्रयोग दक्षिण भारत के संतो द्वारा जीवन में शक्तियों को बढ़ाने के लिए किया जाता था।


कायाकल्प योग के तीन मुख्य लक्ष्य (Three main Objective of Kayakalpa yoga)
कायाकल्प योग के वैसे तो कई फायदे हैं लेकिन इसके तीन मुख्य लक्ष्य  हैं-
• व्यक्ति की सुंदरता एंव स्वास्थ्य के साथ-साथ लंबे समय तक उन्हें जवानी को बरकरार बनाए रखना। 
• नेचुरल एजिंग प्रोसेस को धीमा करना
• आयु बढ़ाना  


कायाकल्प योग के लाभ (Benefit of Kayakalpa Yoga)
कायाकल्प योग करने के कई लाभ हैं जिन्हें निम्नलिखित रूप में महसूस किया जा सकता है:
• इससे दिमाग और सोचने समझने की क्षमता बढ़ती है।
• यह इंफेक्शन और बीमारियों से बचाने के लिए इम्यून सिस्टम(Immune system) को मजबूत करता है।
• कायाकल्प योग आसन में फिजिकल एक्टिविटी शामिल होती है जो हमारा वजन कंट्रोल करने में मदद करता है।
• यह हमें मानसिक शांति और आध्यात्मिक संतुष्टि प्रदान करता है।
• कायाकल्प योग आसन के नियमित रूप से करने पर नर्व सिस्टम के कार्य क्षमता का विस्तार होता है।
• यह हमारे दिमाग को एक सजीव अवस्था में अधिक से अधिक देर तक रखता है और यह सुनिश्चित करता है कि वह अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सके।
• इसके अलावा कायाकल्प योग के अभ्यास से अस्थमा, डायबटीज, पाइल्स और त्वचा संबंधी अन्य रोगों से भी मुक्ती मिलती है।
• यह महिलाओं की प्रजनन क्षमता को बढ़ाता है और इसमें मौजूद विभिन्न विकारों को दूर करता है।  

कैसे स्पीड रीडिंग सीखें



चाहे आप किसी दर्शन शास्त्र की कक्षा में टेक्स्ट्बुक पढ़ रहे हों या सुबह का अखबार, पढ़ना एक कठिन कार्य लग सकता है। इन कामों को जल्दी करने के लिए अपने को स्पीड रीडिंग के लिए ट्रेन करिए। तेज़ी से पढ़ने से समझ में तो कम आयेगा, मगर अभ्यास से आप इसका असर कुछ कम कर सकते हैं।



3की विधि 1:
स्पीड रीड करना सीखना
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1
स्वयं से बातें करना बंद करिए: लगभग सभी पाठक "सबवोकलाइज़" (subvocalize) करते हैं या अपने गले को ऐसे हिलाते हैं जैसे वे शब्दों को बोल रहे हों।[१] इससे पाठकों को विचार याद रखने में सहायता मिल सकती है, मगर गति के लिए यह मुख्य बाधा भी है।[२][३] इस आदत को कम से कम रखने के ये कुछ तरीके हैं:
पढ़ते समय गम चबाइए या गुनगुनाइए। इससे वे पेशियाँ व्यस्त हो जाती हैं जो सबवोकलाइज़ करती हैं।
यदि आप पढ़ते समय अपने होंठ हिलाते हैं तब उन पर अंगुली रख लीजिये।
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जो शब्द आप पढ़ चुके हों उनको ढक लीजिये: पढ़ते समय आपकी दृष्टि अक्सर पिछले शब्दों पर चली जाती है। अधिकांश समय, ये ऐसे छोटे छोटे मूवमेंट्स होते हैं जो कि शायद समझने में कुछ सुधार नहीं करते हैं।[४] शब्दों को पढ़ने के तुरंत बाद उनको छुपाने के लिए इंडेक्स कार्ड का उपयोग करिए, जिससे आप स्वयं को ट्रेन कर सकें कि आप इस आदत का अत्याधिक उपयोग न करें।
ये "रिग्रेशन" (regression) तब भी होते हैं जबकि आप किसी चीज़ को समझने में असफल रहते हैं। अगर आपकी दृष्टि कई शब्द या पंक्तियाँ पीछे कूद जाती है, तब यह इस बात का संकेत है कि आपको धीमे हो जाने की आवश्यकता है।
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3
अपनी दृष्टि के मूवमेंट्स को समझिए: पढ़ते समय आपकी आँखें झटके से मूव करती हैं, कुछ शब्दों पर ठहरती हैं और कुछ को यूं ही पार कर जाती हैं। आप पढ़ तो तभी सकते हैं जब आपकी दृष्टि ठहर जाती है। यदि आप प्रत्येक पंक्ति पर कुछ कम मूवमेंट्स करना सीख लेंगे तब आप कहीं ज़्यादा तेज़ पढ़ सकेंगे। मगर सावधान रहिए – शोध से उन सीमाओं का पता चला है जितना अंग्रेज़ी पाठक एक बार में देख सकते हैं:[५]
आप अपनी दृष्टि की स्थिति से दाहिनी ओर आठ अक्षर देख सकते हैं परंतु बाईं ओर केवल चार। इससे बन पाते हैं एक बार में करीब दो या तीन शब्द।
आप दाहिनी ओर 9-15 स्पेसेस तक के अक्षर देख सकते हैं, मगर उनको स्पष्ट पढ़ नहीं सकते हैं।
सामान्य पाठक अन्य पंक्तियों के शब्दों को प्रोसेस नहीं करते हैं। अपने आप को ऐसे ट्रेन करना कि आप पंक्तियाँ स्किप करके भी उनको समझ सकें, बहुत कठिन होगा।
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अपनी दृष्टि को ऐसे ट्रेन करिए कि वह कुछ कम मूवमेंट करे: आपका मस्तिष्क आने वाले शब्द की लंबाई और आप उनसे कितने परिचित हैं, उसके आधार पर, यह निर्णय करता है कि आपकी दृष्टि कहाँ ठहरेगी।[६] यदि आप अपनी दृष्टि को पेज पर विशिष्ट जगहों तक मूव करने के लिए ट्रेन कर लेंगे तब आप तेज़ी से पढ़ सकेंगे। इस अभ्यास को करने का प्रयास करिए:[७]
टेक्स्ट की पंक्ति के ऊपर इंडेक्स कार्ड रखिए।
कार्ड पर, पहले शब्द के ऊपर X लिखिए।
उसी पंक्ति में एक और X लिखिए। अच्छी समझदारी के लिए उसे तीन शब्द आगे लिखिए, सरल टेक्स्ट के लिए 5 शब्द आगे और केवल मुख्य मुद्दे समझने के लिए 7 शब्द आगे लिखिए।
उतनी ही स्पेसिंग पर और भी X तब तक लिखिए, जब तक कि आप पंक्ति के अंत तक न पहुँच जाएँ।
जब आप इंडेक्स कार्ड को नीचे ले जाएँ, तब जल्दी जल्दी पढ़िये, और प्रत्येक X के नीचे फ़ोकस करने का प्रयास करते रहिए।
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5
जितना आप समझ सकते हैं उससे अधिक तेज़ गति तय करिए: अनेक कार्यक्रम दावा करते हैं कि वे आपके रेफ़्लेक्सेज़ को पहले ट्रेन करके, और फिर तब तक अभ्यास कराके, जब तक कि आपका मस्तिष्क उस तक पहुँच न जाये, पढ़ने की स्पीड को बढ़ा सकते हैं। इसका पूरी तरह अध्ययन नहीं हुआ है। इससे निश्चय ही आपकी टेक्स्ट के इधर से उधर जाने की गति तो बढ़ जाती है, मगर शायद आप बहुत ही कम या कुछ भी नहीं समझ पाएंगे। इसको तभी ट्राई करिए जब आपका लक्ष्य अत्यंत स्पीड से पढ़ने का हो, और आप "शायद" कुछ दिनों के अभ्यास के बाद कुछ अधिक समझ पाएंगे। यह ऐसे होगा:
टेक्स्ट के साथ साथ अपनी पेंसिल मूव करिए। इसको टाइम करिए ताकि आप आराम से कह सकें "एक एक हज़ार" और जब आप पंक्ति के अंत तक पहुँचें तब समाप्त करें।
पेंसिल की रफ्तार से पढ़ने में दो मिनट लगाइये। चाहे आपको कुछ भी समझ में न आए टेक्स्ट पर फोकस्ड रहिए और अपनी दृष्टि को पूरे दो मिनटों तक मूव कराते रहिए।
एक मिनट आराम करिए, और तब और भी तेज़ जाइए। तीन मिनट लगा कर कलम की उस गति पर पढ़ने का प्रयास करिए जिसमें वह, हर बार जब आप "एक एक हज़ार" कहें तब वह दो पंक्तियाँ पार कर ले।
6
RSVP सॉफ्टवेयर को ट्राई करिए: यदि आप ऊपर दी गई तकनीक से अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँच पाते हैं, तब RSVP या Reading Rapid Serial Visual Presentation ट्राई करिए। इस विधि में, फ़ोन ऐप या कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर टेक्स्ट को एक बार में एक शब्द के हिसाब से फ्लैश करता है। इससे आप अपनी मनचाही स्पीड चुन सकते हैं। वैसे अगर आप इसको बहुत अधिक बढ़ा देंगे, तब तो आप अधिकांश शब्द याद भी नहीं रख पाएंगे।[८] यह किसी समाचार का सारांश शीघ्रता से पाने के लिए तो उपयोगी हो सकता है, मगर जब आप मज़े के लिए पढ़ रहे होंगे तब नहीं।


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3की विधि 2:
टेक्स्ट पर नज़र दौड़ाना
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1
जानिए कि कब नज़र दौड़ानी है: किसी टेक्स्ट की उथली जानकारी प्राप्त करने के लिए नज़रें दौड़ाई जा सकती हैं। इसका उपयोग किसी समाचारपत्र में छपे लेख में इंट्रेस्टिंग सामग्री की खोज के लिए किया जा सकता है, या किसी टेस्ट की तैयारी के लिए किसी टेक्स्ट्बुक से महत्वपूर्ण विचार प्राप्त करने के लिए। यह गहन अध्ययन के लिए अच्छा तरीका नहीं है।
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2
शीर्षकों और सेक्शनों के हेडिंग पढ़िये: अध्यायों के शीर्षकों तथा बड़े सेक्शनों के प्रारम्भ में दिये गए सबहेडिंग्स को देखने से शुरुआत करिए। समाचारपत्र के हर लेख की हैडलाइन पढ़िये या मैगज़ीन की कंटैंट टेबल।[९]
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3
किसी भी सेक्शन की शुरुआत और उसके अंत को पढ़िये: टेक्स्ट्बुक्स में आम तौर पर इन जगहों पर प्रत्येक चैप्टर की भूमिका और सारांश दिया होता है। अन्य टेक्स्ट्स में, किसी भी चैप्टर या लेख का बस पहला और अंतिम पैरा पढ़िये।
यदि आप विषय से परिचित होंगे तब तो आप जल्दी से पढ़ लेंगे, मगर यथासंभव तेज़ पढ़ने का प्रयास मत ही करिए। आप सेक्शन का अधिकांश भाग कूद कर पार कर लेने पर समय तो अवश्य ही बचा लेंगे, मगर आपको वह समझना भी तो है, जो आप पढ़ रहे हैं।
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4
पूरे टेक्स्ट में महत्वपूर्ण शब्दों पर निशान लगा लीजिये: अगर आप अभी भी और कुछ सीख ही लेना चाहते हैं तब सामान्य रूप से पढ़ने के स्थान पर, तेज़ी से अपनी दृष्टि उस पेज पर फिराइए। अब जब आपको उस सेक्शन का सारांश मालूम है तब आप महत्वपूर्ण भागों को पहचानने के लिए प्रमुख शब्द चुन सकते हैं। ठहरिए और इन शब्दों को घेर दीजिये:[१०]
वे शब्द जिनको अनेक बार दोहराया गया हो
मुख्य विचार – जिनमें अक्सर शीर्षक या सेक्शन हेडर के शब्दों का उपयोग किया जाता है
व्यक्तिवाचक संज्ञा
इटालिक्स, बोल्ड टेक्स्ट, या अंडरलाइन
वे शब्द जिनसे आप परिचित नहीं हैं
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5
चित्रों और डायग्राम्स की जांच करिए: इनमें अक्सर ही बहुत सी जानकारी दी जाती है, जिसको बहुत अधिक पढ़ने की आवश्यकता नहीं होती है। एक दो मिनट का समय निकाल कर सुनिश्चित करिए कि आप हर डायग्राम को पूरी तरह से समझ लेते हैं।
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6
कन्फ़्यूज्ड होने पर प्रत्येक पैरा का पहला वाक्य पढ़िये: यदि आप विषय को भूल से गए हों, तब हर पैरा की शुरुआत को पढ़िये। पहले एक या दो वाक्य आपको मुख्य मुद्दों के बारे में सिखा देंगे।[११]
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7
अपने निशानों का उपयोग करके पढ़ाई करिए: वापस जाइए और उन शब्दों को देखिये जिन्हें आपने घेर दिया था। क्या आप इनको "पढ़" कर आम तौर पर यह विचार कर सकते हैं कि टेक्स्ट किस विषय में है? अगर आप किसी शब्द पर कनफ्यूज़ हो जाते हैं तब उस विषय की याद ताज़ा करने के लिए, उस शब्द के आस पास के कुछ वाक्यों को पढ़ डालिए। जब आप यह कर रहे हों, तब और शब्दों को भी घेर दीजिये।


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3की विधि 3:
अपनी पढ़ने की स्पीड को मापना
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1
अपनी पढ़ने की स्पीड को टाइम करिए: प्रतिदिन या हर बार जब भी आप ये अभ्यास करें, अपने पढ़ने को टाइम करके अपनी प्रगति की जानकारी रखिए। अपनी सर्वाधिक स्पीड को पीछे छोड़ पाना बहुत बड़ा मोटिवेशन हो सकता है। इस प्रकार से आप अपने पढ़ने को वर्ड्स प्रति मिनट (wpm) के हिसाब से टाइम कर सकते हैं:[१२]
किसी भी पेज के शब्दों की संख्या गिन लीजिये, या एक पंक्ति में कितने शब्द हैं वह गिन लीजिये, और तब उसे पंक्तियों की संख्या से मल्टीप्लाइ कर दीजिये।
दस मिनट का टाइमर लगा दीजिये और देखिये कि उतने समय में आप कितने शब्द पढ़ पाते हैं।
आप जितने पेज पढ़ते हैं, उसको पेज के शब्दों की संख्या से मल्टीप्लाइ करिए। इसको दस से भाग दीजिये तब आपको पता चल जाएगा कि प्रति मिनट आप कितने शब्द पढ़ पाते हैं।
आप ऑनलाइन "स्पीड रीडिंग टेस्ट" भी ले सकते हैं, मगर शायद आपकी स्क्रीन पर पढ़ने की गति छपे हुये पेजों को पढ़ने की गति से भिन्न होगी।[१३]
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2
अपने लिए लक्ष्य निर्धारित करिए: यदि आप इनमें से कोई एक या अनेक अभ्यास प्रतिदिन करेंगे तब आपकी रीडिंग स्पीड सुधरनी चाहिए। अनेक व्यक्ति अपनी रीडिंग स्पीड को कई हफ्तों के अंदर दोगुनी कर चुके हैं। अपने को अभ्यास करने के लिए मोटिवेट करने के लिए कुछ माइलस्टोन तय कर लीजिये:
12 साल या उससे बड़े लोगों के लिए 200-250 शब्द प्रति मिनट की रीडिंग स्पीड की अपेक्षा की जाती है।[१४]
किसी सामान्य कॉलेज स्टूडेंट की रीडिंग स्पीड 300 शब्द प्रति मिनट होती है।
450 शब्द प्रति मिनट की स्पीड से पढ़ने पर आप उतनी तेज़ पढ़ रहे होते हैं जितनी तेज़ कि कोई कॉलेज स्टूडेंट जो मुख्य मुद्दों की खोज के लिए स्किम कर रहा होता है। आदर्श रूप से आप सब कुछ पूरी तरह से समझते हुये यह कर सकते हैं।
600-700 शब्द प्रति मिनट पर आप उतनी ही तेज़ पढ़ रहे होते हैं जितनी तेज़ कि कोई कॉलेज स्टूडेंट जो किसी शब्द की खोज कर रहा होता है। अधिकांश लोग अपनी सामान्य समझदारी के 75% स्तर पर रहते हुये, इस स्पीड पर पढ़ना सीख सकते हैं।[१५]
1000 शब्द प्रति मिनट या उससे ऊपर की गति पर पहुँचने से आप कोंपिटिटिव स्पीड रीडर्स के स्तर पर पहुँच जाते हैं। इसके लिए आपको एक्सट्रीम तकनीकों की आवश्यकता होती है जिसमें कि अधिकांश टेक्स्ट के ऊपर से कूद जाया जाता है। अधिकांश लोग इस स्पीड पर याद नहीं रख पाते हैं।


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सलाह
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हर 30-60 मिनट पर ब्रेक लीजिये। इससे आप फ़ोकस्ड रहेंगे और आँखों को भी स्ट्रेन नहीं होगा।
किसी शांत और भली भांति प्रकाशित वातावरण में अभ्यास करिए। यदि आवश्यक हो तो इयरप्लग का उपयोग करिए।
अपने पढ़ने के तरीकों को बदलना और उसकी एनालिसिस करना, कठिनाई भरा काम हो सकता है, क्योंकि तब आपका ध्यान टेक्स्ट को समझने के स्थान पर पढ़ने की तकनीकों पर फ़ोकस होने लगता है। सुनिश्चित करिए कि आप बहुत तेज़ न पढ़ रहे हों और आप जो भी पढ़ रहे हों उसे ठीक से समझ भी रहे हों।
यदि आप अपनी रीडिंग स्पीड बढ़ा नहीं पाते हैं, तब अपनी आँखें चेक करवाइए।
महत्वपूर्ण टेक्स्ट तब पढ़िये जब आप अलर्ट हों और ठीक से आराम कर चुके हों। कुछ लोग सुबह बढ़िया काम कर पाते हैं और कुछ लोग दोपहर में ठीक से सोच पाते हैं।[१६]
पेज को आँखों से दूर रखने से शायाद पढ़ने की गति नहीं बढ़ेगी। अधिकांश लोग औटोमेटिकली दूरी को ऐसा एडजस्ट कर लेते हैं जहां पर सबसे तेज़ पढ़ा जा सकता है।[१७]
"Zig zag" अभ्यास, जो आपकी दृष्टि को बाएँ से दायें से बाएँ मूव कराने का प्रयास करती हैं, काम नहीं करेंगे। अधिकांश लोग जो इस प्रकार से ट्रेन करते हैं, तब भी अपनी आँखें एक एक लाइन करके बाएँ से दायें ही चलाते हैं।[१८]


(by EasyClip)