खेलने को मजबूर कर देती हैं वो आत्माएं
खेतों, बाग-बगीचों में छिपी आत्माओं और उनसे जुड़े किस्से तो आप सभी ने सुने होंगे. ऐसी आत्माएं जो जंगल में आने और उस रास्ते को पार करने वाले लोगों के लिए घातक सिद्ध होती हैं. लेकिन यहां आत्माओं और प्रेतों से जुड़ी जिस सच्ची घटना का जिक्र मैं करने जा रही हूं वह डरावनी तो नहीं लेकिन दिलचस्प जरूर है. क्योंकि इस खेत का भूत डराता नहीं बल्कि अपने साथ खेलने के लिए मजबूर कर देता है और अगर उसके साथ खेल में शामिल ना हुआ जाए तो फिर निश्चित ही वह क्रोधित होकर नाक में दम कर देता है.
आम और महुआ के पेड़ों से भरा हुआ यह बगीचा अपनी सुंदरता के लिए आसपास के कई गांवों में मशहूर था. लेकिन एक वजह और थी जिसके कारण यह बाग अन्य बागीचों की अपेक्षा ज्यादा चर्चित था. वह वजह थी यहां आत्माओं का वास होना. लोग कहते थे कि इस बाग को दिन हो या रात कभी भी पार नहीं करना चाहिए. लेकिन जैसा की मैंने पहले आपको बताया कि यहां गांव वालों के आम के पेड़ लगे हुए हैं इसीलिए आना जाना लगा ही रहता था. लोग आते तो थे लेकिन जल्दी से जल्दी, शाम होने से पहले ही निकल जाते थे क्योंकि वह जानते थे कि अगर रात यहां हो गई तो सुबह तक क्या होगा कुछ नहीं पता. स्थानीय लोगों का कहना है कि आज से लगभग 30-35 साल पहले यह बाग और भी घना और भयावह हुआ करता था. यहां तक की दोपहर के समय भी कोई इस जंगल में अकेले जाने की हिम्मत नहीं करता था. शैतानी रूहों से आज भी लड़ रही हैं वो आत्माएं कुछ लोगों का तो यह भी कहना था कि उन्होंने इस बगीचे में उन्होंने भूत-प्रेतों को एक दूसरे के साथ खेलते हुए और एक दूसरे से झगड़ते हुए भी देखा है. जब जानवर करें रेप तो किसे सुनाएं बाग में रहने वाली आत्माओं से डरे-सहमे लोग यह स्पष्ट कहते थे कि अगर खेलती आत्माओं को किसी ने देख लिया तो वह उसे भी अपने साथ खेलने के लिए कहतीं और अगर कोई उनकी बात नहीं मानता तो वह उसे बहुत परेशान करतीं और यह सिलसिला तब तक चलता रहता जब तक वह उनके साथ खेलने के लिए तैयार ना हो जाए
एक दिन मेरे दादाजी ने सोचा कि बाग में जाकर सच और झूठ के बारे में पता लगाया जाए. वह रात के धुप्प अंधेरे में भूतों के उस भयानक डेरे में पहुंच गए. दादाजी ने एक पेड़ के पीछे एक व्यक्ति को बैठे देखा. उन्हें लगा यह कोई भटका हुआ मुसाफिर है इसीलिए उसके पास गए. जैसे ही उन्होंने उस व्यक्ति के कांधे पर हाथ रखा वह व्यक्ति पीछे मुड़ा. उसका चेहरा इतना विकराल और भयानक था कि मेरे दादाजी वहीं सुध-बुध खोकर बेहोश हो गए. सुबह जब आम तोड़ने के लिए लोग वहां पहुंचे तब उन्होंने मेरे दादाजी को घर पहुंचाया. इस घटना के बाद कई दिनों तक मेरे दादाजी बिस्तर से भी उठ नहीं पाए. उन्हें हर ओर वही चेहरा दिखाई देता था.
FROM SAFALTA KI RAAH
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें