विष्णु पुराण वर्णन

प्राचीन काल से ही पुराण सभी का मार्गदर्शन करते आए हैं मानव मात्र को धर्म एवं नीति के बारे में ज्ञान देने का प्रयास किया है. तथा जीवन को योग्य रूप अनुसार व्यतीत करने की शिक्षा भी देते हैं. विष्णु महापुराण में भी कई महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख किया गया है इसमें ज्योतिष, कर्मकाण्ड आदि के विषय में राजवंशों तथा श्रीकृष्ण चरित्र के अतिरिक्त अन्य घटनाओं को बहुत ही उचित रूप से बताया गया है.
विष्णु पुराण को प्राचीन समय के ग्रथों में बहुत उपयोगी माना गया है. विष्णु पुराण भाषा की दृष्टि से भी उत्तम रहा है.विष्णु पुराण पूर्ण रूप से भगवान विष्णु को समर्पित किया गया है.
यह पुराण महाभारत काल के पूर्व का रचा मना जाता है इस पुराण में भगवान श्री कृष्ण की अनेकों लीलाओं का उल्लेख किया गया है. इसके साथ ही काल गणना एवं सृष्टि की रचना के विषय में बताया गया है. विष्णु पुराण में छह अध्याय हैं जिनमें सृष्टि की उत्पत्ति एवं कलियुग का आगमन व उसकी महाप्रलय तक की सभी परिस्थितियों का उल्लेख किया गया है. इसमें भारत के शासकों का वर्णन भी किया गया है.
विष्णु पुराण के प्रथम अध्याय में सृष्टि की उत्पत्ति, ध्रुव एवं पृथु आदि की कथाएं मिलती हैं. इसके दुसरे भाग में नक्षत्र, ज्योतिष आदि का वर्णन प्राप्त होता है तीसरे अध्याय में विचार, शि़क्षाएं, गृहस्थ धर्म आदि का उल्लेख किया गया है.
इसी प्रकार चौथे में वंशावलियों का विवरण, पांचवें भाग में श्रीकृष्ण लीलाओं का वर्णन और छठे भाग में महाप्रलय व मोक्ष प्राप्ति का वर्णन मिलता है.
विष्णु पुराण मुख्य रूप से कृष्ण चरित्र से जुड़ा हुआ है इसमें भगवान विष्णु के लगभग सभी अवतारों की कथाएं हैं. श्रीकृष्ण भगवान विष्णु पुराण के प्रमुख पात्र रहे हैं तथा इन्हीं के विषय में ज्यादा बताया गया है.
कृष्ण के जीवन की सार्थकता को बहुत ही प्रभावशाली तरीके से बताया गया है. एक मानव रूप में अलौकिक क्रिया क्रम करने की अदभूत कला का उल्लेख किया गया है तथा कृष्ण चरित्र के समाज सेवी स्वरूप को भी प्रकट किया गया
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