परिचय-
हमारे शरीर की सारी हड्डियां एक-दूसरे से मिलकर जो ढॉचा तैयार करती हैं उसे अस्थिपिंजर कहते हैं। इसी अस्थिपिंजर के द्वारा ही हमारा शरीर खड़ा होता है। एक व्यस्क व्यक्ति के शरीर में कुल मिलाकर 206 हड्डियां होती हैं।
हड्डियां तीन प्रकार की होती है-
लम्बी
छोटी
चपटी
हड्डियों का मुख्य कार्य-
शरीर को आकृति और मजबूती देना।
मांसपेशियों को चिपकाकर रखना।
अलग-अलग जोड़ों पर पुट्ठों को आपस में जोड़कर रखना।
शरीर के जरूरी अंगों की रक्षा करना जैसे- मस्तिष्क, फेफड़े, दिल आदि।
मज्जा के रक्त की लाल कोशिकाओं का निर्माण करना।
हड्डियों के जोड़- शरीर में जिस स्थान पर दो या उससे अधिक हड्डियां जुड़ती है उसको जोड़ कहते हैं। जोड़ दो प्रकार के होते हैं-
अचल जोड़- यह जोड सिर की हड्डियों में पाया जाता है।
सचल जोड़- यह गेंद और कटोरी के आकार का जोड़ होता है। इस प्रकार का जोड़ कंधे में पाया जाता है।
कम सचल जोड़- रीढ़ की हड्डियों के जोड़ को कम सचल जोड़ कहा जाता है।
कब्जेदार जोड़- यह जोड़ कोहनी व घुटने में पाया जाता है।
अस्थिबंध- जोड़ों को बांधने तथा सहारे का कार्य अस्थिबंध करते हैं।
मांसपेशियां- मांसपेशियां हड्डियों से जुड़ी होती है और सिकुड़ने पर गति पैदा करती है। मांसपेशियों के ऊपर चर्बी तथा जोड़ने वाले तंतु होते हैं जो मांसपेशियों को त्वचा से बांधते हैं। यह मुख्यतः दो प्रकार की होती है-
ऐच्छिक
अनैच्छिक।
मांसपेशियां तथा त्वचा के बीच रक्तवाहनियों का जाल बिछा हुआ है।
त्वचा- त्वचा के अंदर पसीने की ग्रंथियां, चर्बी की ग्रंथियां तथा बालों की जड़े होती है। पसीने की ग्रंथियां शरीर के तापमान को सामान्य रखने में सहायता करती है।
धड़ और उसके अंग-
धड़ का निर्माण छाती और पेट को मिलाकर होता है। इन दोनों को अलग रखने के लिए बीच में मध्यपट (Diaphragm) होती है।
छाती के अंदर दो मुख्य अंग होते हैं- हृदय और फेफड़े।
हृदय संख्या में एक होता है और छाती के बाईं तरफ स्थित होता है जबकि फेफड़े संख्या में दो होते हैं एक छाती के दाईं ओर और एक बाईं ओर।
पेट के अंदर आमाशय, छोटी आंत, बड़ी आंत, जिगर, पित्ती, अग्नाशय, गुर्दे तथा मूत्राशय होते हैं।
शरीर की कार्य प्रणाली-
स्नायु तंत्र- हमारा शरीर जो भी प्रतिक्रिया करता है या कोई भी शारीरिक हलचल होती है तो उसकी सूचना स्नायु तंत्र द्वारा मस्तिष्क तक जाती है और फिर मस्तिष्क उस सूचना के अनुसार अंगों को प्रतिक्रिया करने का आदेश देता है। अर्थात स्नायुतंत्र का काम है अंगों की सूचना मस्तिष्क तक पहुंचाना और मस्तिष्क की सूचना अंगों तक पहुंचाना।
रक्तसंचार तंत्र- हृदय जितने भी रक्त को पंप करता है वह रक्त रक्तसंचार तंत्र द्वारा ही पूरे शरीर में पहुंचता है और पूरे शरीर से दूषित खून को हृदय तक पहुंचाता है।
श्वास-प्रणाली- इसके द्वारा स्वच्छ वायु हमारे फेफड़ों में जाती है और फेफड़े पूरे शरीर से लाए गए दूषित खून को साफ करके हृदय में भेजता है।
पाचन प्रणाली- यह प्रणाली भोजन को पचाने, परिचालन और बचे-खुचे को पदार्थ को मल के रूप में बाहर निकालती है। इस क्रिया में मुंह, पाकाशय, पेट, आंते, मलाशय, जिगर, गॉल-ब्लेडर और मलद्वार सम्मिलित है।
दोनों गुर्दों का कार्य मल-मूत्र को बाहर निकालने का होता है।
ग्रंथियां शारीरिक विकास और हार्मोन्स बनाने में मदद करती है।
जननेन्द्रियों द्वारा मनुष्य का विकास क्रम चलता है।
ज्ञानेन्द्रियों का कार्य बाहरी वातावरण से संपर्क रखना और उसकी सूचना मस्तिष्क तक पहुंचाना है। ज्ञानेन्द्रिय पांच होती है- आंख, कान, नाक, जीभ, त्वचा।
हमारे शरीर की सारी हड्डियां एक-दूसरे से मिलकर जो ढॉचा तैयार करती हैं उसे अस्थिपिंजर कहते हैं। इसी अस्थिपिंजर के द्वारा ही हमारा शरीर खड़ा होता है। एक व्यस्क व्यक्ति के शरीर में कुल मिलाकर 206 हड्डियां होती हैं।
हड्डियां तीन प्रकार की होती है-
लम्बी
छोटी
चपटी
हड्डियों का मुख्य कार्य-
शरीर को आकृति और मजबूती देना।
मांसपेशियों को चिपकाकर रखना।
अलग-अलग जोड़ों पर पुट्ठों को आपस में जोड़कर रखना।
शरीर के जरूरी अंगों की रक्षा करना जैसे- मस्तिष्क, फेफड़े, दिल आदि।
मज्जा के रक्त की लाल कोशिकाओं का निर्माण करना।
हड्डियों के जोड़- शरीर में जिस स्थान पर दो या उससे अधिक हड्डियां जुड़ती है उसको जोड़ कहते हैं। जोड़ दो प्रकार के होते हैं-
अचल जोड़- यह जोड सिर की हड्डियों में पाया जाता है।
सचल जोड़- यह गेंद और कटोरी के आकार का जोड़ होता है। इस प्रकार का जोड़ कंधे में पाया जाता है।
कम सचल जोड़- रीढ़ की हड्डियों के जोड़ को कम सचल जोड़ कहा जाता है।
कब्जेदार जोड़- यह जोड़ कोहनी व घुटने में पाया जाता है।
अस्थिबंध- जोड़ों को बांधने तथा सहारे का कार्य अस्थिबंध करते हैं।
मांसपेशियां- मांसपेशियां हड्डियों से जुड़ी होती है और सिकुड़ने पर गति पैदा करती है। मांसपेशियों के ऊपर चर्बी तथा जोड़ने वाले तंतु होते हैं जो मांसपेशियों को त्वचा से बांधते हैं। यह मुख्यतः दो प्रकार की होती है-
ऐच्छिक
अनैच्छिक।
मांसपेशियां तथा त्वचा के बीच रक्तवाहनियों का जाल बिछा हुआ है।
त्वचा- त्वचा के अंदर पसीने की ग्रंथियां, चर्बी की ग्रंथियां तथा बालों की जड़े होती है। पसीने की ग्रंथियां शरीर के तापमान को सामान्य रखने में सहायता करती है।
धड़ और उसके अंग-
धड़ का निर्माण छाती और पेट को मिलाकर होता है। इन दोनों को अलग रखने के लिए बीच में मध्यपट (Diaphragm) होती है।
छाती के अंदर दो मुख्य अंग होते हैं- हृदय और फेफड़े।
हृदय संख्या में एक होता है और छाती के बाईं तरफ स्थित होता है जबकि फेफड़े संख्या में दो होते हैं एक छाती के दाईं ओर और एक बाईं ओर।
पेट के अंदर आमाशय, छोटी आंत, बड़ी आंत, जिगर, पित्ती, अग्नाशय, गुर्दे तथा मूत्राशय होते हैं।
शरीर की कार्य प्रणाली-
स्नायु तंत्र- हमारा शरीर जो भी प्रतिक्रिया करता है या कोई भी शारीरिक हलचल होती है तो उसकी सूचना स्नायु तंत्र द्वारा मस्तिष्क तक जाती है और फिर मस्तिष्क उस सूचना के अनुसार अंगों को प्रतिक्रिया करने का आदेश देता है। अर्थात स्नायुतंत्र का काम है अंगों की सूचना मस्तिष्क तक पहुंचाना और मस्तिष्क की सूचना अंगों तक पहुंचाना।
रक्तसंचार तंत्र- हृदय जितने भी रक्त को पंप करता है वह रक्त रक्तसंचार तंत्र द्वारा ही पूरे शरीर में पहुंचता है और पूरे शरीर से दूषित खून को हृदय तक पहुंचाता है।
श्वास-प्रणाली- इसके द्वारा स्वच्छ वायु हमारे फेफड़ों में जाती है और फेफड़े पूरे शरीर से लाए गए दूषित खून को साफ करके हृदय में भेजता है।
पाचन प्रणाली- यह प्रणाली भोजन को पचाने, परिचालन और बचे-खुचे को पदार्थ को मल के रूप में बाहर निकालती है। इस क्रिया में मुंह, पाकाशय, पेट, आंते, मलाशय, जिगर, गॉल-ब्लेडर और मलद्वार सम्मिलित है।
दोनों गुर्दों का कार्य मल-मूत्र को बाहर निकालने का होता है।
ग्रंथियां शारीरिक विकास और हार्मोन्स बनाने में मदद करती है।
जननेन्द्रियों द्वारा मनुष्य का विकास क्रम चलता है।
ज्ञानेन्द्रियों का कार्य बाहरी वातावरण से संपर्क रखना और उसकी सूचना मस्तिष्क तक पहुंचाना है। ज्ञानेन्द्रिय पांच होती है- आंख, कान, नाक, जीभ, त्वचा।
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